लिब्रहान रिपोर्ट – फिर दफनाए जाने के लिए पेश की गई एक और रिपोर्ट

सुखदेव

Liberhanभारत एक ऐसा देश है, जहाँ अनेक राष्ट्रीयताओं, जातियों और धर्मों के लोग रहते हैं। भारतीय जनता की यह राष्ट्रीयता, जाति और धार्मिक विभिन्नता इस देश के लुटेरे हुक्मरानों द्वारा, यहाँ की जनता की एकता तोड़ने के लिए एक हथियार की तरह हमेशा इस्तेमाल की जाती रही है। हमारे हुक्मरानों ने यह ख़ूबी, फिरंगियों से विरासत में हासिल की है, जिन्होंने ‘बाँटो और राज करो’ की रणनीति के तहत लगभग 100 वर्ष से भी अधिक समय तक देश को ग़ुलाम बनाये रखा। 1947 में देश की राज्यसत्ता पर काबिज हुए नये हुक्मरानों ने भी भारतीय जनता को राष्ट्रीयता, जाति, धर्म के आधार पर आपस में लड़ाने में महारत हासिल की है और इस मामले में वे फिरंगियों के योग्य वारिस साबित हुए हैं। जनता की राष्ट्रीय, जातीय और धार्मिक भावनाओं को भड़काने, जगह-जगह दंगे-फसाद करवाने और लोगों की लाशों पर पैर रखकर राजसिंहासन तक पहुँचने का धन्धा किसी न किसी रूप में सभी पूँजीवादी संसदीय पार्टियाँ करती रहती हैं। लेकिन इनमें से संघ परिवार का अंग भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है। संघ परिवार का हिन्दू साम्प्रदायिक फासीवाद पिछले ढाई-तीन दशकों से भारत के मेहनतकश लोगों, धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बड़ा खतरा बनकर उभरा है। कम्युनिस्ट, मुस्लिम, और ईसाई इस संघी फासीवाद के मुख्य निशाने पर हैं।

धार्मिक अल्पसंख्यकों को भले ही आजाद भारत में हमेशा डरे-सहमे माहौल में रहना पड़ा है, लेकिन संघ परिवार के उभार ने भारत में अल्पसंख्यकों का जीना और भी मुश्किल कर दिया है।

संघ परिवार के काले कारनामों की सूची बहुत लम्बी है। 2002 में गुजरात में मुसलमानों के कत्लेआम और पिछले वर्ष उड़ीसा में ईसाइयों के कत्लेआम के तो अभी जख्म भी हरे हैं। लेकिन 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्‍या में बाबरी मस्जिद के गिराये जाने का स्थान संघ परिवार के काले कारनामों में सबसे ऊपर है। 6 दिसम्बर 1992 का दिन भारतीय इतिहास का काला दिन है।

देश में पूँजीवादी राजनीतिज्ञों की ओर से घपलों-घोटालों के जरिये जनता की ख़ून-पसीने की कमाई हड़प ली जाती है, धर्म-जाति-राष्ट्रीयता के नाम पर दंगे-फसाद करवाये जाते हैं, बेगुनाह लोगों का ख़ून पानी की तरह बहाया जाता है, फिर सरकार इसकी जाँच के लिए एक कमीशन बैठाती है। कमीशन अपनी रिपोर्ट देता है और संसदीय सुअरबाड़े में इस पर कुछ दिन शोर-शराबा होता है। इसके बाद इस रिपोर्ट को चूहों के कुतरने के लिए छोड़ दिया जाता है।

हर बार ऐसा ही होता है। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद सरकार ने इस घटना की जाँच के लिए जस्टिसएम.एस. लिब्रहान के नेतृत्व में 16 दिसम्बर 1992 को एक जाँच कमीशन कायम किया। इस कमीशन को तीन महीने के भीतर अपनी जाँच रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी। लेकिन हद दर्जे की बेशर्मी दिखाते हुए इस कमीशन ने 17 वर्ष में अपनी ‘जाँच’ मुकम्मल की। इन 17 वर्षों में इस कमीशन ने 48 बार अपने कार्यकाल का समय बढ़वाया और 8 करोड़ से ऊपर रुपये खर्च किये।

आइये देखें कि लिब्रहान कमीशन ने करोड़ों रुपये खर्च करके 17 वर्षों में क्या खोजा। लिब्रहान कमीशन की जाँच रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ ने कई दशक पहले ही बाबरी मस्जिद गिराने की तैयारियाँ शुरू कर दी थीं और अपनी इन कोशिशों को यह संगठन तब ही ठोस रूप दे सका, जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, जिसका मुख्यमन्त्री कल्याण सिंह था। 1992 की शुरुआत से ही आर.एस.एस. और बीजेपी ने अयोध्‍या और फैजाबाद में अपने आदमियों की तैनाती शुरू कर दी। इन शहरों में कई अफसरों को हटाया गया और संघ के पसन्दीदा अफसरों को तैनात किया गया। इस हालत में ‘कानून’ लागू करने वाला कोई नहीं रहा और पुलिस को भी वर्दीधारी कारसेवकों में बदल दिया गया। पुलिस के हथियार ले लिये गये और उन्हें डण्डे पकड़ा दिये गये। सरकार की तरफ से सख्त हिदायतें दी गयीं कि कारसेवकों के विरुध्द कोई कार्रवाई न की जाये। 6 दिसम्बर 1992 की कई दिन पहले से ही तैयारियाँ शुरू की दी गयीं। संघ ने 5 लाख कारसेवकों को अयोध्‍या पहुँचाया। उनकी रिहायश, भोजन, पानी आदि का इन्तजाम किया गया। यह सब राज्य सरकार की सक्रिय भागीदारी के बिना सम्भव नहीं था। मुख्यमन्त्री कल्याण सिंह इन तैयारियों का जायजा लेने के लिए बार-बार अयोध्‍या के चक्कर काटता रहा।

कमीशन का कहना है कि भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने बाबरी मस्जिद गिराये जाने के लिए माहौल बनाया। रिपोर्ट में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, बजरंग दल के मुखी विनय कटियार सहित आर.एस.एस., विश्व हिन्दू परिषद के कुछ नेताओं को बाबरी मस्जिद गिराये जाने का दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट का यह भी कहना है कि केन्द्र में पी.वी. नरसिंह राव के नेतृत्व वाली सरकार ने भी इस घटना को रोकने के लिए पर्याप्त इन्तजाम नहीं किये।

ये हैं लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट के कुछ अहम खुलासे, जिनमें कुछ भी नया नहीं है। संघियों ने राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मीडिया के सामने सरेआम बाबरी मस्जिद गिरायी थी। सारी दुनिया में करोड़ों लोगों ने टेलीविजन पर इसका सीधा प्रसारण भी देखा था। करोड़ों लोगों ने वे वहशी चेहरे देखे थे, जो बाबरी मस्जिद गिरा रहे थे।

बाबरी मस्जिद को गिराये जाने की जाँच बहुत पहले ही सी.बी.आई. भी कर चुकी है। बाबरी मस्जिद गिराये जाने के बाद अयोध्‍या के एक थाने में जाँच के लिए दो एफ.आई.आर. दर्ज की गयी थीं : पहली (केस नम्बर 197) लाखों अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ, जबकि दूसरी (केस नम्बर 198) आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित आठ व्यक्तियों के खिलाफ थी, जिन पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप थे। बाद में ये केस सी.बी.आई. को सौंप दिये गये थे। सी.बी.आई. ने 5 अक्टूबर 1993 को दायर की गयी चार्जशीट में न सिर्फ अडवाणी और अन्य को दोषी माना था, बल्कि इसमें 5 दिसम्बर 1992 को बजरंग दल के अध्‍यक्ष विनय कटियार की रिहायश पर हुई गुप्त मीटिंग का भी जिक्र था, जिसमें बाबरी मस्जिद गिराये जाने का अन्तिम फैसला लिया गया था।

तो फिर लिब्रहान कमीशन ने 17 वर्षों में जनता के करोड़ों रुपये खर्च करके नया क्या ढूँढ़ा? कुछ भी नहीं। सभी जानते हैं कि बाबरी मस्जिद गिराने वाले कौन हैं। सभी जानते हैं कि 2002 में गुजरात में हजारों मुसलमानों और पिछले वर्ष उड़ीसा में हजारों इसाइयों पर जुल्म करने वाले कौन हैं। यह जनता भी जानती है और हुक्मरान भी। यह सब जानने के लिए जाँच कमीशनों की जरूरत नहीं होती। यह जाँच कमीशन तो सिर्फ जनता की ऑंखों में धूल डालने का साधन ही हैं।

1984 में दिल्ली में हुए सिक्खों के कत्लेआम के दोषियों को सभी जानते हैं, लेकिन आज तक दिल्ली दंगों के किसी भी दोषी का बाल तक बाँका नहीं हुआ। गुजरात 2008 में कन्धमाल में ईसाइयों के कातिलों का भी कुछ नहीं बिगड़ने वाला। लिब्रहान कमीशन की रिपोर्ट पर भी कुछ दिन संसद में बहसबाजी का नाटक खेला जायेगा। उसके बाद इसे भी कहीं गहरा दफना दिया जायेगा। हुक्मरानों के सभी हिस्से इस हमाम में नंगे हैं। कौन किसे सजा देगा? हुक्मरान वर्ग के सभी हिस्से जनता को बाँटने, लड़वाने, मरवाने, लूटने और पीटने में एक-दूसरे से आगे हैं। इनसे इंसाफ की उम्मीद करना सबसे बड़ी मूर्खता है। इंसाफ तो एक दिन देश की मेहनतकश जनता करेगी। जब एकजुट होकर मेहनतकश जनता उठेगी तो जनता के इन कातिलों के मुकदमों की सुनवाई होगी।

 

बिगुल, जुलाई 2009

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments