मारुति सुजुकी मज़दूरों की “जनजागरण पदयात्रा” जन्तर-मन्तर पर रस्मी कार्यक्रम के साथ समाप्त हुई
केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और “क्रान्तिकारी-इंकलाबी कॉमरेडों” की निम्नस्तरीय एकता ने रची आन्दोलन के विफलता की त्रासदी!
अजय
31 जनवरी को मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के मज़दूर और उनके परिवारजन कैथल से पदयात्रा चलाते हुए नई दिल्ली के जन्तर-मन्तर पहुँचे। यहाँ यूनियन तथा मज़दूरों के परिजनों ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा जिसमें उन्होंने माँग की है कि पिछले 18 महीने से जेल में बन्द 148 बेगुनाह मज़दूरों को रिहा किया जाये तथा बर्खास्त मज़दूरों की बहाली की जाये। ज़ाहिर तौर पर बिगुल मज़दूर दस्ता मज़दूरों पर चल रहे राजकीय दमन और प्रबन्धन की तानाशाही के ख़िलाफ़ मारुति मज़दूरों के साथ खड़ा है। साथ ही ‘बिगुल’ एक बार फिर इस आन्दोलन के बारे में अपने समीक्षा-समाहार को पाठकों के सामने रखना चाहेगा ताकि मज़दूर आन्दोलन भविष्य के संघर्षा में भ्रमों-भटकावों से मुक्त हो सके। वैसे ज्यादातर मारुति मज़दूर भी जानते हैं कि जन्तर-मन्तर पर हुआ कार्यक्रम सिर्फ एक धरना-प्रदर्शन की रस्मादयगी रह गया इसलिए अधिकांश मज़दूर एक बार फिर निराश होकर घर लौट गये।
जन्तर-मन्तर कार्यक्रम की रपटः मारुति मज़दूर व उनके परिवार जन 300 किलोमीटर की लम्बी यात्रा करते हुए 31 जनवरी को दिल्ली पहुँचे। एक दिवसीय धरने का कार्यक्रम लेकर वे ऐसे समय राष्ट्रीय राजधानी पहुँचे जब भारत सरकार जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे को पूरे आदर-सत्कार के साथ गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाकर जापानी पूँजी के साथ अपने रिश्तों को बेहतर करने की तैयारी में लगी हुई है। जन्तर-मन्तर पर गुड़गांव की 16 सदस्यीय कमेटी के एटक, सीटू, मुकू के पदाधिकारियों समेत विभिन्न संगठनों के लोग भी शामिल थे जो अपने लम्बे-चौड़े भाषणों से मज़दूरों को सिर्फ आश्वासन ही दे रहे थे। कार्यक्रम में छोटे मदारियों के बीच एक बड़ा मदारी भी धरना स्थल पर आ पहुँचा। ये थे आम आदमी पार्टी के रणनीतिकार योगेंद्र यादव, जिनको शायद याद आया हो कि हरियाणा चुनाव के वोटरों की जनसभा को सम्बोधित करने का बढ़िया मौका है। वैसे योगेन्द्र यादव अपनी सारी सहानुभूति मारुति सुजुकी के मृत मैनेजर अवनीश देव को पहले ही समर्पित कर चुके थे। मारुति मज़दूरों को उन्होंने नसीहत दी कि मारुति मज़दूर हत्या के दोषी हैं इसलिए उन्हें सख़्त सज़ा होनी चाहिए, दूसरे मज़दूरों को हिंसा के लिए माफी माँगनी चाहिए। तभी मज़दूरों को न्याय की माँग उठानी चाहिए। साफ़ है कि योगेन्द्र यादव के चुनावी भाषण से हरियाणा के पूँजीपति-मालिक ज़रूर खुश हुए होंगे लेकिन मज़दूर के लिए तो ये जले पर नमक छिड़कना था। “आम आदमी” बनने वाले योगेन्द्र यादव ने मारुति में हुई “हिंसा” के कारण के बारे में एक शब्द नहीं बोला। जबकि ज्ञानी योगेन्द्र यादव को पता ही होगा कि देश के जेलरूपी कारख़ानों में मज़दूर कैसे गुलामों की तरह खटते हैं। क्या ये हिंसा नहीं है? देश में रोज़ाना दर्जनों मज़दूर मालिकों के मुनाफे की हवस के चलते मौत का शिकार होते हैं, तब ‘आप’ के योगेन्द्र यादव कितने मालिकों को सज़ा दिलवाने और माफी माँगने के लिए धरना देते हैं। योगेन्द्र यादव के मज़दूर विरोधी बयान पर पत्रकार पाणिनी आनन्द ने तीखी प्रतिक्रिया करते हुए ‘आप’ के मज़दूर विरोधी चरित्र पर बोलना शुरू ही किया था कि यूनियन के नेतृत्व व संचालक ने ही पाणिनी आनन्द को बात रोकने के लिए कह दिया।
साफ है कि चुनावी मदारियों के वादों से मारुति मज़दूरों को कुछ हासिल नहीं होने वाला है लेकिन इस घटना ने एम.एस.डब्ल्यू.यू. के नेतृत्व के अवसरवादी चरित्र को फिर सामने ला दिया, जिनके मंच पर मज़दूरों को बिना जाँच-सबूत हत्या का दोषी ठहराने वाले योगेन्द्र यादव को कोई नहीं रोकता लेकिन मज़दूरों का पक्ष रखने वाले पत्रकार-समर्थक को रोक दिया जाता है। शायद मारुति मज़दूरों का नेतृत्व आज भी मज़दूरों की ताक़त से ज्यादा चुनावी दलालों से उम्मीद टिकाये बैठा है। तभी मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के मंच पर सीपीआई, सीपीएम से लेकर आप के नेता भी मज़दूरों को बहकाने में सफल हो जाते हैं।
इसलिए आज हमें मारुति मज़दूरों के आन्दोलन की विफलता के पीछे के कारणों की पहचान करनी होगी वरना हम भविष्य में भी ऐसे आन्दोलन की ताक़त और ऊर्जा को चुनावी पार्टियों और दलाल ट्रेड यूनियनों की गोद में सौंपते रहेंगे। मारुति आन्दोलन की विफलता का सबसे बड़ा कारण था, यूनियन नेतृत्व का अवसरवादी चरित्र जो कभी भी सही समय पर सही रणनीति और फैसला नहीं ले सका। साथ ही यूनियन नेतृत्व “प्रधानी” की संस्कृति का पालन करते हुए मीटिंगों में मज़दूरों को केवल “क्रान्तिकारी-इंकलाबी कामरेडों” का फैसला सुनाता है जो यूनियन के नेतृत्व के साथ बन्द कमरों में गुपचुप तरीके से पहले ही बना लिये जाते हैं। ट्रेड यूनियन जनवाद कहीं भी लागू नहीं किया जाता ताकि आम सभा में तमाम सहयोगी संगठनों के राय-सुझाव रखने के बाद मज़दूर स्वयं निर्णय लेने में समक्ष हो सकें। लेकिन ये “क्रान्तिकारी-इंकलाबी कामरेड” मज़दूरों के “स्वतस्फूर्त” फैसला लेने की क्षमता को बाधित नहीं करना चाहते थे। इसलिए इन “क्रान्तिकारी-इंकलाबी कामरेडों” ने नेतृत्व को सलाह दी की आम सभा में ‘बिगुल’ के प्रवक्ताओं के बोलने पर रोक लगा दी जाये। इसकी वजह बस यही है कि बिगुल मज़दूर दस्ता के साथी हमेशा आन्दोलन में आगे के रास्ते पर अपनी ठोस राय रखते रहे हैं जो कि “क्रान्तिकारी-इंकलाबी कामरेड” के संकीर्ण सांगठनिक हितों के लिए खतरा है। क्योंकि इनका मुख्य उद्देश्य आन्दोलन को सफल बनाना नहीं बल्कि किसी भी कीमत पर गुड़गाँव-मानेसर के केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के गैंग में शमिल होना है। तभी तो “क्रान्तिकारी-इंकलाबी कामरेड” केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की ग़द्दारी पर एक शब्द भी नहीं बोलते। साफ है कि केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और “क्रान्तिकारी-इंकलाबी कामरेडों” की निम्नस्तरीय एकता या अपवित्र गठबन्धन ने गुड़गाँव के मज़दूर आन्दोलन को कारख़ाने की चौहद्दी में बाँधे रखने पर मौन सहमति बना ली है। दूसरी तरफ मारुति का यूनियन नेतृत्व भी अवसरवादी तरीके से केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों से लेकर चुनावी पार्टियों के दलालों तक से लाभ उठाने की कोशिश में लगा रहता है जबकि ज़्यादातर मज़दूर भी जानते हैं कि आज केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों का मुख्य धन्धा ही यही है कि कैसे मज़दूर आन्दोलन के आक्रोश की धार कुन्द की जाये। ये कुछ बुनियादी कारण हैं जो मारुति आन्दोलन की विफलता के लिए जिम्मेदार हैं। इन कारणों को दूर किये बिना हम भविष्य के संघर्षो की तैयारी नहीं कर सकते है।
मज़दूर बिगुल, जनवरी-फरवरी 2014
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन