मज़दूर एकता ज़िन्दाबाद!
घनश्याम पाल लुधियाना
साथियो, सन् 1992 के पहले लुधियाना के पावरलूम कारख़ानों में तरह-तरह की यूनियनें बनी। जैसे कि पहले कामरेड भजन सिंह थे, और उनके बाद चन्नी आये। ये लोग कारीगरों से कारख़ानों में हड़ताल करवा देते थे, लेकिन बाद में मालिकों से मिल जाते थे और नाकामयाब-सा समझौता कर लेते थे और कहते थे कि अब कारख़ाना चलाओ। उन दिनों मज़दूरों को छुट्टी-बोनस मिला करता था। 17 सितम्बर, सन् 1992 में सीटू वालों ने यहाँ आकर पावरलूम कारख़ानों में हड़ताल करवायी। यह हड़ताल 45 दिन तक चली। इतनी लम्बी हड़ताल की वजह से और संगठन के मज़बूत न होने की वजह से बीच-बीच में कारीगर काम पर वापस चले गये। इसी बीच मालिकों व यूनियन नेताओं ने आपस में मिलकर समझौता कर लिया और हड़ताल वापस ले ली। ग़रीब मज़दूर करे तो क्या करे। लाचार होकर जो जहाँ काम करता था वहीं काम पर वापस लौट गया। हड़ताल टूटने के बाद तो मज़दूरों पर जैसे कहर ही टूट पड़ा। मालिकों ने छुट्टी का पैसा, सर्विस, बोनस देना बन्द कर दिया। कोई कारीगर विरोध करता तो उसे काम से निकालने की धमकी दी जाती। ज़्यादा बोलता तो काम से निकाल दिया जाता। कारीगरों की मेहनत को और ज़्यादा निचोड़ने के लिए मालिक नये-नये हथकण्डे अपनाने लगे। धागे कम कर दिये जाते और पिच बढ़ा दिये जाते – जहाँ पहले 25 पीस बनते थे वहीं अब उतने ही समय में 20 पीस बन पाते। बढ़ती महँगाई व दिहाड़ी पूरी न पड़ने की वजह से कारीगर दो मशीनों की जगह एक वक़्त में तीन-तीन, चार-चार मशीन चलाने लगे। 12 घण्टे की जगह पर 14 से 16 घण्टे ड्यूटी करने लगे ताकि किसी तरह ख़र्चे पूरे हो सकें।
कारख़ाना मज़दूर यूनियन के आने से पावरलूम कारीगरों में कुछ हिम्मत और एकता बनी। 24 अगस्त से 31 अगस्त तक शक्तिनगर के कारख़ानों और 16 सितम्बर से 30 सितम्बर तक गौशाला, कश्मीर नगर, माधेफरी के पावरलूम कारख़ानों में मज़दूरों ने शानदार हड़तालें लड़ी हैं। इस दौरान काम तेज़ी पर था। मज़दूरों का पलड़ा इस वजह से भी भारी था लेकिन यह मज़दूरों की एकता ही थी जिसने उन्हें जिताया। मालिक पहले तो झुकने को तैयार ही नहीं हो रहे थे लेकिन 18 वर्षों से खीझे मज़दूरों ने प्रण कर लिया था कि बेशक अन्य कोई काम पकड़ना पड़े, लेकिन हार करके इन मालिकों के पास वापस नहीं जाना है। आखि़रकार मालिकों को मज़दूरों के आगे झुकना ही पड़ा और मज़दूरों के साथ लिखित समझौता करके पीस रेट बढ़ाना पड़ा। शक्तिनगर के मज़दूरों के संघर्ष की जीत की ख़बर ने अन्य इलाक़ों के मज़दूरों को भी जगाया और उन्हें भी हड़ताल के लिए प्रेरित किया। इस संघर्ष ने हमें सिखाया कि एकजुटता में इतनी ताक़त होती है कि नामुमक़िन काम मुमक़िन हो जाते हैं। हमने सीखा कि सीटू जैसे दलालों से दूर रहो, और क्रान्तिकारी यूनियन बनाओ।
मज़दूर एकता ज़िन्दाबाद!
मज़दूर बिगुल, मार्च 2011
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन