संघर्ष के रूपों के प्रश्न पर मार्क्‍सवादी नज़रिया

लेनिन

I.I.Brodsky Vladimir Ilich Lenin…संघर्ष के रूपों के प्रश्न के विवेचन से हर मार्क्‍सवादी को क्या बुनियादी अपेक्षाएँ करनी चाहिए? पहली चीज़, मार्क्‍सवाद समाजवाद के तमाम अपरिष्कृत रूपों से इस बात में भिन्न है कि वह आन्दोलन को संघर्ष के किसी एक विशेष रूप के साथ नहीं बाँधता। वह संघर्ष के सर्वथा विविध रूपों को मान्यता देता है, इसके अलावा वह उन्हें ”गढ़ता” नहीं, बल्कि मात्र क्रान्तिकारी वर्गों के संघर्ष के उन रूपों का सामान्यीकरण करता है, उन्हें संगठित करता है तथा उन्हें सचेतन अभिव्यक्ति देता है, जो आन्दोलन के दौरान स्वयं जन्म लेते हैं। समस्त अमूर्त फार्मूलों और समस्त मताग्रहवादी नुस्ख़ों का असंदिग्ध शत्रु मार्क्‍सवाद चल रहे उस जन-संघर्ष की ओर सावधनीभरा रुख़ अपनाने की अपेक्षा करता है, जो आन्दोलन के विकसित होने के साथ, जन-साधारण की वर्ग चेतना की वृद्धि के साथ, आर्थिक तथा राजनीतिक संकटों के तीक्ष्ण होने के साथ बचाव और धावे की नयी तथा अधिक विविध विधियों को जन्म देता है। इसलिए, मार्क्‍सवाद संघर्ष के केवल संबद्ध घड़ी में संभव तथा विद्यमान रूपों तक अपने को किसी भी सूरत में सीमित नहीं रखता, यह तो इसे मान्यता देता है कि संघर्ष के नये रूप, जो संबद्ध कालावधि में कार्यकर्ताओं के लिए अज्ञात होते हैं, संबद्ध सामाजिक परिस्थिति में परिवर्तन के साथ अनिवार्यत: उत्पन्न होते हैं। इस मामले में मार्क्‍सवाद जन-साधारण के अमल से सीखता है – अगर ऐसा कहना संभव हो – और अपने बन्द अध्ययनकक्षों में ”व्‍यवस्थापनकर्ताओं” द्वारा गढ़े गए संघर्ष के रूप जन-साधारण को सिखाने का दावा करने से वह कोसों दूर रहता है। हम जानते हैं – उदाहरण के लिए, काउत्स्की ने सामाजिक क्रान्ति के रूपों पर विचार करते समय कहा था  क़ि आनेवाला संकट हमारे सामने संघर्ष के ऐसे नये रूप प्रस्तुत करेगा, जिनका हम इस समय पूर्वानुमान नहीं कर सकते।

दूसरी चीज़, मार्क्‍सवाद संघर्ष के रूपों के प्रश्न पर बिल्कुल ऐतिहासिक ढंग से विचार करने की अपेक्षा करता है। इस प्रश्न को ठोस ऐतिहासिक स्थिति से बाहर रहने का अर्थ द्वन्‍द्वात्मक भौतिकवाद के ककहरे को नहीं समझना है। आर्थिक विकासक्रम की विभिन्न अवधियों में, राजनीतिक, जातीय, सांस्कृतिक अवस्थाओं, जीवन-यापन, आदि की अवस्थाओं में अन्तरों के अनुसार संघर्ष के विभिन्न रूप उभरकर सामने आते हैं, संघर्ष के प्रमुख रूप बन जाते हैं और इस सिलसिले में संघर्ष के द्वितीयक, आनुषंगिक रूप अपनी बारी में परिवर्तन के बीच से गुज़रते हैं। संबद्ध आन्दोलन के विकास की संबद्ध मंज़िल में इस आन्दोलन की ठोस स्थिति पर विस्तारपूर्वक विचार किए बिना संघर्ष के किसी ख़ास साधन के बारे में हाँ या ना में उत्तर देने की कोशिश का अर्थ मार्क्‍सवादी स्थिति को पूर्ण तिलांजलि देना है।

ये हैं दो आधारभूत सैद्धान्तिक प्रस्थापनाएँ, जिनसे हमें निर्देशित होना चाहिए। पश्चिम यूरोप में मार्क्‍सवाद का इतिहास का अन्‍त हमें अनन्‍त उदाहरण देता है, जो उस बयान में की गई बात की पुष्टि करते हैं।

‘छापामार युद्ध’ लेख के अंश

यह शीर्षक हमारे द्वारा दिया गया है। सं.

(‘प्रोलेतारी’, अंक 5, 30 सितम्बर, 1906, व्ला.इ. लेनिन, संग्रहीत रचनाएँ, पाँचवा रूसी संस्करण, खण्ड 14, पृष्ठ 1-2)


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments