डिलीवरी बॉय का काम करने वाले मज़दूरों का शोषण
– सचिन कुमार, करावल नगर, दिल्ली
मैं सचिन कुमार, उम्र 21 साल, उत्तर पूर्वी दिल्ली के करावल नगर इलाक़े में रहता हूँ। मैं अलग-अलग कम्पनियों के बिस्कुट, सेवईं, मैक्रोनी और पास्ता दुकानों पर सप्लाई करने का काम करता हूँ। मैं सुबह 10 बजे तक काम पर पहुँच जाता हूँ, वहाँ पहुँचने पर मालिक मुझे दुकानों पर पहुँचाने वाले सामान की लिस्ट देता है और फिर मुझे गोदाम से सारा सामान बाहर निकालना होता है, जिसका वज़न लगभग 150 से 200 किलो होता है। इस सारे सामान को दुकानों पर पहुँचाने के लिए स्कूटी, जो मालिक द्वारा दी जाती है, पर लादना होता है। इतना वज़न लेकर स्कूटी चलाना बड़ा मुश्किल होता है, पर मालिक इस परेशानी को नहीं समझता। गाड़ी इतनी ओवरलोड हो जाती है कि इस पर बैठने की जगह भी ठीक से नहीं होती। इतना वज़न लेकर रोड पर चलते हुए हमेशा एक्सीडेण्ट होने का डर बना रहता है। मैं प्रतिदिन 25 से 30 हज़ार का सामान दुकानों पर ले जाता हूँ। मुझे इस काम के महीने में मात्र 8,000 हज़ार रुपये मिलते हैं। मेरे जैसे कई डिलीवरी बॉय हैं जो बहुत कम वेतन में काम करते हैं। अक्सर ही मालिक और दुकानदार बदतमीज़ी से पेश आते हैं। पहले मुझे इस पर बहुत ग़ुस्सा आता था, मैं समझ नहीं पाता था कि हम मज़दूरों की ज़िन्दगी ऐसी ही क्यों होती है, पर जब से मैं बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों से मिला और उनके द्वारा चलाये जा रहे शहीद भगतसिंह पुस्तकालय गया, तब मुझे समझ आने लगा कि हम मज़दूरों की ज़िन्दगी बदतर होने का कारण ये मुनाफ़े पर टिकी व्यवस्था है और हम मज़दूरों को ही इस जनद्रोही व्यवस्था को बदलने की लड़ाई में शामिल होना होगा।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2021
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन