भारत में बढ़ रही बेरोज़गारी
सिकन्दर
पिछले दिनों ‘लेबर ब्यूरो’ द्वारा जारी नयी रोज़गार-बेरोज़गारी सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक़ बेरोज़गारी पिछले 5 वर्षों के शिखर पर है। बेरोज़गारी की दर 2011 में 3.8 फ़ीसदी, 2013 में 4.9 फ़ीसदी और 2015-16 में बढ़ कर 7.3 फ़ीसदी पर पहुँच गयी है। रोज़गार-प्राप्त व्यक्तियों में से भी एक-तिहाई को पूरे वर्ष काम नहीं मिलता, जबकि कुल परिवारों में से 68 फ़ीसदी परिवारों की आमदनी 10,000 रुपये महीने से भी कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में हालत और भी ख़राब है। यहाँ 42 फ़ीसदी व्यक्तियों को वर्ष के पूरे 12 महीने काम नहीं मिलता। ग्रामीण क्षेत्र में 77 फ़ीसदी परिवार 10,000 मासिक से कम कमाने वाले हैं।
ये हैं वे असल कुरूप सच्चाइयाँ जिन्हें छिपाने के लिए ही मोदी मण्डली तमाम तरह के फ़ालतू मुद्दे उभार रही है। एक तरफ़ तो विकास की 7-8 फ़ीसदी की रफ़्तार को छूने के दावे किये जा रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ़ बेरोज़गारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ज़ाहिरा तौर पर इस विकास का फ़ायदा सिर्फ़ ऊपर बैठे अमीर वर्गों को ही हुआ है। आम घरों के नौजवान तो अब भी दो वक़्त की रोटी जुटाने के लिए भटक रहे हैं। इसलिए आज हमें समझना होगा कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और देशभक्ति के नाम पर अन्धराष्ट्रवाद को उभारने के पीछे भारत और पाकिस्तान के हुक्मरानों की क्या साजि़श है। आज हमारे वास्तविक मसले अपने घर में ही हैं और ज़रूरत है कि हम बेहतर शिक्षा और रोज़गार देने के लिए अपनी सरकारों से ज़ोरदार माँग करें और जनान्दोलन को इस मक़सद के लिए संगठित करें।
मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2016
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