कारख़ाने में हादसे में मारे गये मज़दूर को मुआवज़ा दिलाने के लिए  टेक्सटाईल-हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में संघर्ष

19 सितम्बर 2016 की शाम 6 बजे महाजन टेक्सटाइल (मेहरबान, लुधियाना) में देव बहादुर नाम के एक मज़दूर की पावरलूम मशीन पर से उस समय गिरकर मौक्त हो गयी जब वह मशीन पर डिजाइन चेन चढ़ा रहा था। यह काम दो या तीन मज़दूरों के बस का था लेकिन उसे अकेले को ही यह काम करना पड़ रहा था। कारखानों में मज़दूरों की जिन्दगियों के साथ जिस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है, उनकी लूट-खसोट हो रही है, यह इसका एक और उदाहरण है। पूँजीपतियों द्वारा अन्य सारे श्रम क़ानूनों सहित सुरक्षा के इन्तज़ामों की सरेआम धज्जियाँ उड़ाये जाने के कारण भयंकर हालात पैदा हो गये हैं। मज़दूरों के साथ रोज़ाना हादसे हो रहे हैं। मज़दूर अपाहिज हो रहे हैं, उनके परिवार तबाह बरबाद हो रहे हैं। सरकार, श्रम विभाग, पुलिस प्रशासन, मज़दूरों की बाजू पकड़ने के लिए तैयार नहीं है। मज़दूरों को खुद ही लड़ना होगा।

देव बहादुर मूल रूप से नेपाल का रहने वाला था। बीस वर्ष पहले वह लुधियाना में मज़दूरी करने के लिए आया। इस समय वह अपनी बीवी, तीन वर्ष से लेकर बारह वर्ष की उम्र के पाँच बच्चों के साथ किराये के कमरे में रह रहा था। दो बच्चे गूँगे हैं। सबसे बड़ी लड़की का दिमागी संतुलन भी ठीक नहीं है। ऐसी हालत में देव बहादुर की मौत से इस ग़रीब परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। मालिक परिवार को महज़ कुछ हज़ार रुपये देकर पीछा छुड़ाने की कोशिश में था लेकिन टेक्सटाईल हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में सैकड़ों मज़दूर तीन दिनों तक दिहाड़ियाँ छोड़कर पीड़ित परिवार के साथ खड़े रहे।

कई कारखानों के मज़दूर हड़ताल करके धरने-प्रदर्शन में शामिल हुए। लुधियाना में किसी कारखाने में हादसा होने पर मज़दूर के मारे जाने पर आम तौर पर मालिक पुलिस व श्रम विभाग के अफसरों से मिलीभगत से, दलालों की मदद से पीड़ित परिवारों को 20-25 हज़ार देकर मामला रफा दफा करने में कामयाब हो जाते हैं। लेकिन जब मज़दूर एकजुट होकर लड़ते हैं तो उन्हें अधिक मुआवजा देना पड़ता है। इस मामले में भी मालिक ने यही कोशिश की। लेकिन टेक्सटाईल हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में एकजुट हुए मज़दूरों ने पुलिस और मालिक को एक हद तक झुकने के लिए मज़बूर कर दिया। पुलिस को मालिक को हिरासत में लेने पर मज़बूर होना पड़ा। मालिक को पीड़ित परिवार को दो लाख रुपये मुआवजा देना पड़ा।

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2016

 

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