बिहार विधानसभा चुनाव में दीघा विधानसभा सीट पर भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी को मिले समर्थन के लिए इन्क़लाबी अभिवादन
– RWPI, बिहार इकाई की ओर से
भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) ने पहली दफ़ा बिहार के विधानसभा चुनाव में भागीदारी की। चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। चुनाव में एनडीए की सरकार को बहुमत मिला है। दूसरी तरफ़ महागठबन्धन 110 सीटों पर सिमट कर रह गया। इस जीत के प्रति भी संशय का माहौल बना हुआ है क्योंकि कई सीटों पर कुछ मामूली वोटों के ही अन्तर से जीत हासिल हुई है। इस विधानसभा चुनाव में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी द्वारा भागीदारी एक रणकौशलात्मक हस्तक्षेप था, जिसके तहत चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने समाजवादी कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार किया गया। साथ ही जनता के बीच मौजूद पूँजीपति वर्ग की नुमाइन्दगी करने वाली तमाम चुनावबाज़ पार्टियों और पूँजीपतियों के रिश्ते का भी भण्डाफोड़ किया गया। इस अत्यन्त ज़रूरी कार्यभार के साथ ही हमारा यह प्रचार सीमित आबादी तक ही पहुँच सका। प्रचार व्यापक नहीं हो सका इसका एक कारण आर्थिक कारण रहा और साथ ही छोटा संगठन होने के कारण भी ज़्यादा विस्तारित रूप से प्रचार अभियान नहीं चल सका। पार्टी ने ज़ोरदार ढंग से ख़ुद को मज़दूर वर्ग के स्वतंत्र पक्ष के रूप में प्रस्तुत किया। चुनाव प्रचार में विभिन्न इलाक़ों से पार्टी को मज़दूरों, ग़रीब किसानों एवं निम्न मध्यवर्गीय तबक़ों और आम नौकरीपेशा लोगों व घरेलू कामगारों में अच्छा समर्थन मिला। इस दौरान कई नए इलाक़ों में पार्टी के वॉलिंटियर्स के तौर पर टीम भी खड़ी हुई l प्रचार के दौरान कई सारे सकारात्मक व नकारात्मक अनुभव हमें हासिल हुए। हमें तमाम नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलुओं पर बात करनी होगी ताकि आने वाले दौर में रणकौशलनात्मक हस्तक्षेप को और अधिक कारगर बनाया जा सके।
प्राप्त हुए वोटों की संख्या भी हमारे प्रचार और पार्टी के विस्तार व कामों का मूल्यांकन करने में एक उपकरण है। जैसाकि लेनिन ने कहा है जनसमर्थन को मापने का पैमाना सिर्फ़ वोट नहीं होता बल्कि वह कई पैमानों में से एक पैमाना होता है, उसके बावजूद भी वह मुख्य पैमाना नहीं होता। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की उम्मीदवार वारुणी पूर्वा को बिहार विधानसभा चुनाव में दीघा विधानसभा क्षेत्र से 410 वोट मिले। पूरे प्रचार के दौरान पार्टी जिन इलाक़ों में कार्यरत थी वहाँ पर काफ़ी समर्थन मिला।
दीघा क्षेत्र में पार्टी मुख्य रूप से गोसाई टोला और बिन्द टोली इलाके में कार्यरत थी । गोसाई टोला एक ऐसा इलाक़ा है जहाँ पर घरेलू कामगार महिलाएँ, दिहाड़ी मज़दूर, छोटे दुकानदार, छोटे व्यापारी, बटाई पर खेती करने वाले छोटे किसान, सफ़ाईकर्मी एवं ऑटो रिक्शा ड्राइवर आदि मुख्य रूप से निवास करते हैं। शुरुआत में यहाँ मुख्य रूप से सुधार कार्य किया जा रहा था। पिछले कुछ महीनों से यहाँ के लोगों को संगठित कर उनकी माँगों पर आन्दोलनात्मक गतिविधियाँ शुरू की गईं। गोसाई टोला में पिछले कुछ महीनों से पार्टी की मौजूदगी रही है। सुधार कार्य के कारण इस इलाक़े से हमें अच्छा समर्थन मिला। पार्टी के दूसरे कार्यक्षेत्र के तौर पर बिन्द टोली इलाक़ा है। यह इलाक़ा थोड़ा पिछड़ा हुआ है यहाँ रहने वाले लोग बटाई पर खेती, मछली पकड़ने, सब्ज़ी बेचने, बालू खनन में मज़दूरी, दिहाड़ी खटने, छोटे-मोटे दुकानदारी एवं कुछ लोग ऑटो चलाने आदि का काम करते हैं। पार्टी इस इलाक़े के मुद्दों पर कुछ महीनों से लगातार संघर्षरत थी। यहाँ पर चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी को भारी समर्थन मिला। प्रचार के दौरान बहुतायत आबादी हमारे साथ खड़ी थी, हालाँकि मतदान के ठीक एक दिन पहले पूरे इलाक़े में हर जगह तमाम चुनावबाज़ पार्टियों के दलाल सक्रिय थे। इस दौरान चुनाव की प्रक्रिया में यह साफ़ देखने को मिला कि मतदान के एक रात पहले खुले रूप से पैसे बाँटे गये, धमकाया गया और जाति के नाम पर ध्रुवीकरण किया गया। बिन्द टोली से भारी समर्थन के बावजूद भी वोट में वह तब्दील नहीं हो सका इसका एक बड़ा कारण लोगों की तात्कालिक फ़ायदा देखने की मानसिकता थी। अन्य इलाक़ों में भी और पार्टी के कार्यरत इलाक़ों में भी एक बड़ी आबादी यह सोच रही थी या सोचने को मजबूर हुई कि मज़दूर पार्टी वाले बात सही कह रहे हैं लेकिन चुनाव में यह जीतेंगे नहीं तो हम अपना वोट क्यों बर्बाद करें, यह मानसिकता भी बड़े पैमाने पर काम कर रही थी।
लेनिन ने यह पहले ही बताया था कि वोट जनसमर्थन को मापने का मुख्य पैरामीटर नहीं होता है, असल में किसी पार्टी को कितना जनसमर्थन प्राप्त है यह जनान्दोलनों, हड़तालों और पार्टी द्वारा चलाए जा रहे अभियानों में जनता की भागीदारी से तय होता है। इसके साथ ही पूरे प्रचार अभियान में आर्थिकी और लोगों की कमी के कारण एक बड़े क्षेत्र में हमारा प्रचार पहुँच ही नहीं सका। तय नीति के तहत हम लोगों ने पहले से कार्यरत इलाके में सघन तौर पर प्रचार अभियान चलाया परन्तु अन्य कई मज़दूर वर्गीय इलाक़ों तथा झुग्गीवासी व मेहनतकश आबादी के बीच व्यापक प्रचार अभियान नहीं चलाया जा सका। यह भी एक कारण था कि हमारी बात एक बड़ी आबादी तक पहुँच ही नहीं सकी। अपने कार्य क्षेत्र में भी सघन रूप से जो प्रचार अभियान चलाया गया उसमें भी धनबल, बाहुबल और जाति-धर्म की राजनीति को चुनौती देते हुए हमने मज़दूर वर्ग के स्वतंत्र पक्ष को मज़बूती से रखा। हमें पटना घरेलू कामगार यूनियन द्वारा समर्थन भी दिया गया। हमारे इलाक़ों में ज़्यादातर घरेलू कामगार महिलाओं द्वारा हमें समर्थन प्राप्त हुआ।
पूरे प्रचार अभियान की यदि सकारात्मक अनुभव पर बात करें तो इस पूरे अभियान के ज़रिये चुनाव के दौरान राजनीतिक तौर पर सक्रिय आबादी के बीच हमने पार्टी के कार्यक्रम का ज़बरदस्त प्रचार प्रसार किया। यह प्रचार सिर्फ़ मज़दूर वर्ग तक केन्द्रित नहीं था बल्कि आम जनता के हर तबक़े तक हमारी बात पहुँची l इस प्रचार के ज़रिये पूँजीपति वर्ग की पार्टियों का बेहतरीन भण्डाफोड़ भी किया गया। परिणामस्वरूप कई सारे नए इलाक़ों के ऐसे उन्नत चेतना के तत्व सम्पर्क में आये जो पार्टी के वॉलिंटियर कोर के तौर पर खड़े हो रहे हैं। इसके साथ ही इस पूरे चुनाव प्रचार अभियान में संसदीय वामपन्थी पार्टियों का भण्डाफोड़ भी किया गया। उनके अवसरवादी गठबन्धन का भण्डाफोड़ किया गया जो कि एक हद तक सफल रहा। लोगों के बीच नक़ली कम्युनिस्ट पार्टियों को लेकर भ्रम भी एक स्तर तक टूटा। तमाम पूँजीवादी पार्टियों का भण्डाफोड़ करते हुए अपना विकल्प देने की पूरी कोशिश की गयी। विकल्प के तौर पर कई सारे लोगों ने हमें स्वीकारा और प्रचार अभियान के दौरान लोगों की यह भी राय बनी कि हम आने वाले वक़्त में एक मुख्य ताक़त के तौर पर उभरेंगे। यह आम जनता की तरफ़ से एक प्रतिक्रिया थी। वहीं दूसरी ओर नकारात्मक अनुभव के तौर पर जो बात उभरकर आई, वह यह थी कि हमें अपने कार्यरत इलाक़े और आसपास के इलाक़े तक ही सीमित नहीं रह जाना चाहिए था। यदि समय का अभाव न होता तो पूरे प्रचार अभियान को जनता के व्यापक हिस्से में फैलाया जा सकता था और इससे परिणाम बेहतर हो सकते थे और इसके साथ ही पार्टी के विस्तार की भी सम्भावना बनती।
आगे जिन मुद्दों को लेकर हमने विधानसभा चुनाव में हस्तक्षेप किया है उन मुद्दों को लेकर ही हमें फिर से जनता के बीच निरन्तर मौजूद रहना होगा। चाहे वह घरेलू कामगारों का मुद्दा हो या शिक्षा का मुद्दा हो या रोज़गार का मुद्दा हो या आमजन से जुड़े हुए बिजली पानी, नाली इन तमाम तात्कालिक जो भी मुद्दे हो उनको लेकर पार्टी हर इलाक़े में मोहल्ला सभाओं का आयोजन करेगी और इन सवालों को लेकर आन्दोलन करेगी। भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी सभी साथियों का आह्वान करती है कि पार्टी से जुड़ें और सभी इंसाफ़पसन्द लोगों को भी जोड़ें। अभी यह पार्टी के लिए अपनी पहचान स्थापित करने की मंज़िल थी। अभी व्यापक जनसमुदाय तक पार्टी का नाम पहुँचाने और इसके साथ ही पार्टी के कार्यक्रम को पहुँचाने में समय लगेगा। यह बिहार विधानसभा चुनाव का हमारा पहला अनुभव था। यह पार्टी किसी भी पूँजीवादी घराने या चुनावी ट्रस्ट, एनजीओ या फ़ण्डिंग एजेंसी के वित्त पोषण पर निर्भर नहीं थी। हमने पूरा प्रचार अभियान जनता के बीच से जुटाए और प्रगतिशील व्यक्तियों के बीच से जुटाए सहयोग से चलाया। इसलिए समझा जा सकता है कि आर्थिकी भी एक बड़ा कारण था, जिसके कारण हमारा प्रचार अभियान कुछ इलाक़ों तक सिमट कर रह गया। इसके साथ ही मीडिया द्वारा कहीं पर भी कोई कवरेज ना मिलना भी आर्थिकी से ही जुड़ा हुआ प्रश्न था। इस पूरे चुनाव में धनबल, बाहुबल और जाति आधारित राजनीति को चुनौती देते हुए और तमाम ऐसी सीमाओं के बावजूद पार्टी ने अपना प्रचार अभियान बहुत बेहतरीन तरीक़े से चलाया और जनता के बीच से भी बड़ा समर्थन प्राप्त हुआ। लोगों के द्वारा व्यक्त किए गये प्रतिक्रिया के आधार पर कहे तो आने वाले वक्त में हम लोग तमाम पार्टियों के लिए चुनौती और जनता के समक्ष विकल्प होंगे। हम आने वाले वक़्त में इन तमाम पूँजीवादी पार्टियों के बरक्स एक विकल्प के तौर पर ज़रूर उभरेंगे।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2020
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन