‘मज़दूर बिगुल’ के बारे में मज़दूर परिवार की एक बच्ची के विचार
कोमल, पांचवी कक्षा, सरकारी स्कूल, ताजपुर रोड, लुधियाना
लुधियाना के मज़दूर पुस्तकालय में मज़दरों के बच्चों को मुफ़्त ट्यूशन पढ़ाया जाता है। बच्चे वहाँ स्कूल की किताबों के अलावा अन्य किताबें, अखबार, पत्रिकाएँ आदि भी पढ़ते हैं। एक दिन बच्चों की दीदी ने उन्हें ‘मज़दूर बिगुल’ के बारे में कुछ लिखने के लिए कहा। पाँचवी कक्षा की कोमल ने कुछ इस तरह से लिखा-
यह मज़दूरों का अखबार है। यह चन्दा इकठ्ठा करके छपता है। इस अखबार में कुछ भी छिपाया नहीं जाता। इसमें कोई भी बात छिपाई नहीं जाती। इसमें यह छपता है कि मज़दूर अपना घर कैसे चलाता है। कैसे मज़दूर दिन भर काम करके घर आता है तो रोटी के साथ नमक खाकर सो जाता है। किस तरह मज़दूर फैक्ट्रियों में काम करता है पर मालिक उनकी तनख्वाह नहीं देता है। सिटी अखबार में वो कुछ भी नहीं बताते। सिटी अखबार में छपता है क्रीम और पाऊडर के बारे में और फिल्मों के बारे में छपता है। फैक्ट्री में आग लगने से 300 मज़दूर मर गये तो अखबार वालों को पैसे दिये जाते हैं। वे 300 की जगह 10 मज़दूर लिख देते हैं। इसलिए मज़दूरों का बिगुल अखबार सही है।
मज़दूर बिगुल, अगस्त-सितम्बर 2016
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन