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भुखमरी का शिकार देश : ये मौतें व्यवस्था के हाथों हुई हत्याएँ हैं!

आँकड़े यह साफ़ बताते हैं कि दुनिया-भर में हो रहे खाद्यान उत्पाद से दुनिया-भर की मौजूदा आबादी की दोगुनी संख्या को पर्याप्त पोषाहार दिया जा सकता है! वहीं ‘इकनोमिक टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आबादी के हिसाब से खाद्यान ज़रूरत लगभग 25.5-23.0 करोड़ टन है और उत्पादन लगभग 27.0 करोड़ टन है। वह भी तब जब 88.8 फ़ीसदी जोत का अाकार 2 एकड़ से भी कम है, मतलब उत्पादकता को पूर्ण रूप से बढ़ाया भी नहीं जा सका है। फिर भी पिछले दो दशकों में खाद्यान्न उत्पादन दोगुना हो चुका है। भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय के अनुसार इस वर्ष सरकार द्वारा लगभग 27.95 करोड़ टन उत्पादन की सम्भावना दर्शायी गयी है, जो पिछले पाँच सालों के औसत उत्पादन से 1.73 करोड़ टन ज़्यादा है।

हरियाणा में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का आन्दोलन : सीटू और अन्य संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की इसमें भागीदारी या फिर इस आन्दोलन से गद्दारी?!

12 फ़रवरी से हड़ताल पर बैठी हरियाणा की आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की माँग थी कि उनका मानदेय बढ़ाया जाये और उन्हें कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाये। समेकित बाल विकास विभाग और आँगनवाड़ी की देशभर में खस्ता हालत से शायद ही कोई अनजान होगा। हरियाणा की आँगनवाड़ी भी अव्यवस्था से अछूती नहीं है। आँगनवाड़ियों में खाने की गुणवत्ता का निम्न स्तर, राशन की आपूर्ति में देरी के साथ-साथ तमाम समस्याएँ सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करती हैं। आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों पर काम का दबाव निश्चय ही योजना को प्रभावित करता है।