हरियाणा में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का आन्दोलन : सीटू और अन्य संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की इसमें भागीदारी या फिर इस आन्दोलन से गद्दारी?!
वृषाली
फ़रवरी माह की 12 तारीख़ से हरियाणा की लगभग 50,000 आँगनवाड़ी महिलाकर्मी अपनी कई माँगों को लेकर हड़ताल पर बैठी हुई थीं। अब 11 मार्च से इस हड़ताल को स्थगित कर दिया गया है, या यूँ कहें कि इस हड़ताल को गड्ढे में धकेला जा चुका है। हरियाणा में आँगनवाड़ी महिलाकर्मी मानदेय बढ़ोत्तरी, कर्मचारी के दर्जे़ की माँग तथा अन्य सुविधाओं की माँगों को लेकर आन्दोलनरत थी। इस आन्दोलन में सीटू के अलावा आँगनवाड़ी एम्प्लाइज फ़ेडरेशन ऑफ़ इण्डिया, भारतीय मज़दूर संघ समेत एसयूसीआई से सम्बन्धित यूनियन तथा अन्य कई संगठन शामिल थे। भारतीय मज़दूर संघ और एसयूसीआई ने आन्दोलन से 1 मार्च की वार्ता के बाद ही अपने हाथ वापस खींच लिये थे। मैदान में बचे हुए दो खिलाड़ी भी 10 दिनों के भीतर ही बिना किसी लिखित समझौते के वापस पवेलियन को लौट गये! हड़ताल को लेकर सभी यूनियनों के अपने-अपने संस्करण मौजूद हैं। जहाँ सीटू के अनुसार हड़ताल 19 फ़रवरी को शुरू हुई थी, आँगनवाड़ी एम्प्लाइज फ़ेडरेशन ऑफ़ इण्डिया के अनुसार इसकी शुरुआत 12 फ़रवरी को ही हो गयी थी।
12 फ़रवरी से हड़ताल पर बैठी हरियाणा की आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की माँग थी कि उनका मानदेय बढ़ाया जाये और उन्हें कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाये। समेकित बाल विकास विभाग और आँगनवाड़ी की देशभर में खस्ता हालत से शायद ही कोई अनजान होगा। हरियाणा की आँगनवाड़ी भी अव्यवस्था से अछूती नहीं है। आँगनवाड़ियों में खाने की गुणवत्ता का निम्न स्तर, राशन की आपूर्ति में देरी के साथ-साथ तमाम समस्याएँ सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करती हैं। आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों पर काम का दबाव निश्चय ही योजना को प्रभावित करता है। हरियाणा में आँगनवाड़ी में काम करने वाली महिलाकर्मियों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है – आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता (जिन्हें 10 वर्षों से ज़्यादा का अनुभव है), मिनी आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता और आँगनवाड़ी सहायिका। आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता व मिनी आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता के काम का बोझ बराबर होने के बावजूद उनके मानदेय में 50 प्रतिशत का अन्तर है, जोकि निश्चित तौर पर अनुचित है।
हरियाणा में काम कर रहीं तक़रीबन 50,000 आँगनवाड़ी महिलाकर्मी अपनी जायज़ माँगों को लेकर 12 फ़रवरी से आन्दोलनरत थीं। लेकिन आन्दोलन पर अपना वर्चस्व जताने के लिए सभी यूनियनों में हड़ताल को शुरू करने के श्रेय को लेने की होड़ मची है। आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की माँगों से उनका कितना सरोकार है अपने-आप में यह एक सवाल है! 1 मार्च को दो यूनियनों से हुई समझौता वार्ता के बाद सीटू और आँगनवाड़ी एम्प्लाइज फ़ेडरेशन ऑफ़ इण्डिया के नेतृत्व में 5 मार्च को क्रमशः करनाल और चण्डीगढ़ में बड़े रोष प्रदर्शन किये गये। हरियाणा की आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का सरकार के प्रति गुस्सा और अपनी माँगों को लेकर लड़ने की ज़िद कितनी प्रबल थी, यह उनकी संख्या बल से ही पता चल जाता है। पर किसी क्रान्तिकारी नेतृत्व के अभाव में उनकी मेहनत पर पानी फेरते हुए “लाल झण्डा” यूनियनों ने अपनी 10 मार्च की ‘सफल’ वार्ता में हरियाणा सरकार से बिना किसी लिखित आश्वसान लिये इस पूरे आन्दोलन को गड्ढे में धकेलने का काम किया है! शायद सीटू के ‘मासूम’ नेताओं को भाजपा सरकार के वायदों पर भरोसा ज़्यादा है! या शायद जिस पार्टी की जुमलेबाज़ी से पूरा देश वाकि़फ़ है, सीटू के नेतागण उसकी जुमलेबाजी से अनभिज्ञ हैं! या हो सकता है कि सीटू के ‘तजुर्बेकार’ नेताओं ने धूप में अपने बाल सफ़ेद कर लिये हों! लुब्बेलुबाब यह है कि एक ऐसे संघर्ष को 10 अप्रैल तक ‘स्थगित’ कर दिया गया है जिसमें जीत की बड़ी सम्भावना मौजूद थी। एक सम्भावनासम्पन्न आन्दोलन का दलाल यूनियनों के हत्थे चढ़ जाना वाक़ई अफ़सोसजनक है।
साल 2017 में ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ के नेतृत्व में लड़ा गया दिल्ली की आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का संघर्ष किसी मौखिक आश्वासन पर नहीं रुका था। दिल्ली में आँगनवाड़ी की 2015 में चली हड़ताल में हुए ‘लिखित’ समझौते को भी केजरीवाल सरकार ने यूँ ही लागू नहीं कर दिया था। 2017 में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की दोबारा हुई हड़ताल के बाद ही यह सम्भव हो सका था। 58 दिनों तक चली इस ऐतिहासिक हड़ताल के बाद दिल्ली सरकार को सरकारी राजपत्र निकाल कर मानदेय बढ़ा कर दोगुना करना पड़ा था! यह साफ़ है कि किसी भी आन्दोलन को सही दिशा एक क्रान्तिकारी नेतृत्व ही दे सकता है। बग़ैर किसी क्रान्तिकारी नेतृत्व के बड़े से बड़ा आन्दोलन भी आसानी से बिखर जाता है। मसलन दिल्ली में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने तब तक अपना संघर्ष जारी रखा जब तक सरकारी राजपत्र जारी नहीं कर दिया गया। उप-राज्यपाल के मानदेय बढ़ोत्तरी के प्रस्ताव को पारित कर देने के बाद भी हड़ताल जारी रही थी। अगर दिल्ली में महिलाकर्मी डटी न रहतीं, अगर यूनियन ने हड़ताल जारी न रखी होती तो ज़ाहिरा तौर पर केजरीवाल सरकार ऐन मौक़े पर किसी नये बहाने के साथ मानदेय बढ़ोत्तरी की माँग को खटाई में डाल जाती!
हरियाणा की आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों के संघर्ष में सीटू की दलाली का यह कोई नया उदाहरण नहीं है! सीटू के इतिहास पर नज़र दौड़ाई जाये तो इसका काम ही बन्द कमरों में मैनेजमेण्ट के साथ दलाली करने का रहा है। इनकी यूनियन में ‘जनवादी’ तौर-तरीक़ों की परम्परा का कोई अंश नज़र नहीं आता है। यूनियन की आम सभाओं में निर्णय पारित करवाने का शायद ही इनका कोई इतिहास रहा हो! यूनियन के सभी फ़ैसले ऊपरी तौर पर ‘प्रधानों’ के हिसाब से थोप दिये जाते हैं। अभी पिछले ही दिनों 17 जनवरी से हरियाणा में ही आशा वर्करों की हड़ताल चल रही थी, उसका अन्त भी एक ऐसी ही वार्ता में कर दिया गया था। अब तक भी आशा वर्करों की “जीत” का कोई नतीजा नहीं निकल पाया है! 1 फ़रवरी को सीटू के नेतृत्व में जब आशा वर्करों की वार्ता सरकारी महक़मे के साथ हुई तब भी जीत की घोषणा तो कर दी गयी पर अब तक बढ़ा हुआ मानदेय, स्मार्टफ़ोन, अलमारी व अन्य माँगों पर सरकार की तरफ़ से कोई कार्यवाही होना तो दूर इस पूरी वार्ता के सम्बन्ध में कोई अधिसूचना तक जारी नहीं की गयी है! इससे दो ही निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं – पहला यह कि सीटू ने अपने पिछले आन्दोलन से कोई सबक़ नहीं लिया और दूसरा यह कि सीटू ने इस देश के मज़दूर आन्दोलनों का बेड़ा गर्क करने का ठेका अपने ‘संशोधनवादी कन्धों’ पर उठा रखा है!
आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने जब ज़मीनी स्तर पर आशा वर्करों की हड़ताल के निष्कर्ष को देखते हुए लिखित समझौते की माँग की तो मजबूरन सीटू के नेतृत्व ने 15 मार्च की तारीख़ का झुनझुना थमा दिया। 10 मार्च की वार्ता में शामिल होने वाली दोनों ही यूनियनों के वार्ता को लेकर अपने भिन्न संस्करण मौजूद हैं। जहाँ सीटू इस हड़ताल को 1 महीने के लिए स्थगित करने की बात कर रही है जबकि आँगनवाड़ी एम्प्लाइज फ़ेडरेशन ऑफ़ इण्डिया ने 10 मई तक इन्तज़ार करने की बात कही है। यह तो वक़्त बतायेगा कि इस वार्ता में ‘सफलता’ कितनी है और ‘दलाली’ कितनी!
मज़दूर बिगुल, मार्च 2018
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