दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेलपर्स यूनियन ने वर्करों के प्रमोशन के मसले को लेकर सौंपा ज्ञापन

बिगुल संवाददाता

‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ ने 9 मई को दिल्ली के महिला एवं बाल विकास विभाग को आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के पदोन्नति के मसले को लेकर एक ज्ञापन सौंपा। दिल्ली के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा 2 मई को जारी एक अधिसूचना के अनुसार सुपरवाइज़र के पद पर भर्ती के लिए आवेदन मँगवाए गये थे। भर्ती की इस प्रक्रिया में 50 फ़ीसदी पद आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के पदोन्नति के लिए तय किये गये हैं, लेकिन शैक्षणिक योग्यता पिछली भर्ती से बदल दी गयी है। ‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ से प्रियम्वदा ने बताया कि “इस अधिसूचना में भर्ती की प्रक्रिया के बारे में कोई जानकारी नहीं है, मसलन क्या भर्ती किसी परीक्षा के ज़रिये होगी, अथवा पदोन्नति के लिए योग्य कार्यकर्ताओं का चयन किस रूप में होगा, इसका कोई विवरण नहीं है। यही नहीं, आवेदन की पूरी प्रक्रिया के लिए विभाग ने केवल 5 दिनों का ही समय तय किया है। विभाग इस प्रक्रिया को आनन-फ़ानन में अंजाम देना चाहता है। यह अधिसूचना विभाग के ग़ैर-जनवादी और अपारदर्शी रवैये को ही दिखाती है। पदोन्नति की यह प्रक्रिया ही लागू होने में काफ़ी समय लग गया है, इसके बावजूद सभी योग्य आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मौक़ा भी नहीं दिया जा रहा है। विभाग ने हेल्परों के प्रमोशन की प्रक्रिया भी तब जाकर शुरू की थी जब यूनियन ने इस मुद्दे को उठाया था।

महिला एवं बाल विकास मन्त्रालय के तहत समेकित बाल विकास परियोजना की शुरुआत 1975 में की गयी थी। उस वक़्त सरकार ने यह दावा किया था कि इस योजना के तहत ज़रूरतमन्द स्त्रियों को “स्वयंसेविका” के रूप में कुछ काम करने का अवसर मिलेगा। लेकिन इतने वर्षों में आँगनवाड़ीकर्मियों की जिम्मेदारियों का दायरा लगतार बढ़ता गया है और “स्वयंसेवा”के नाम पर सस्ते श्रम के स्रोत के रूप में स्त्रियों का शोषण किया जा रहा है। इसके साथ ही इस परियोजना के तहत इन “स्वयंसेविकाओं”की शैक्षणिक योग्यता भी लगातार बदलती गयी है। आज इस स्कीम के तहत देश भर में क़रीब 24 लाख आँगनवाड़ीकर्मी कार्यरत हैं। एक समय में आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका के लिए मैट्रिक और हाई स्कूल पास करना ही पर्याप्त था, इसके बावजूद 2012 में केन्द्र सरकार द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह बताया गया की 91 फ़ीसदी आँगनवाड़ी कार्यकर्ता इससे ज़्यादा शिक्षित थीं। अब बदलते हुए हालात को देखते हुए कार्यकर्ता के पद के लिए शैक्षणिक योग्यता को और बढ़ा दिया गया है व सहायिका के पद पर भी ग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट महिलाओं को तरजीह दी जाती है। यह इस बात का भी परिचायक है कि आज बेरोज़गारी का क्या आलम है : ग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट की डिग्रियाँ हासिल करने के बाद भी महिलाएँ एक ऐसे विभाग में आवेदन करती हैं जहाँ न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता। समेकित बाल विकास परियोजना के मुख्य तौर पर केन्द्र सरकार की परियोजना होने के बावजूद अलग-अलग राज्यों में भर्ती व पदोन्नति के नियम अलग-अलग हैं। मसलन जम्मू और कश्मीर में 2019 में जारी एक ऑर्डर के अनुसार ग्रेजुएट आँगनवाड़ी कार्यकर्ता जिनके पास 5 साल का काम का अनुभव है और मैट्रिक पास आँगनवाड़ी कार्यकर्ता जिनके पास 10 साल का काम का अनुभव है, सुपरवाइज़र के 25-25 फ़ीसदी खाली सीटों पर प्रोमोट की जाएँगी।

‘दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन’ द्वारा सौंपे गये ज्ञापन में कई परियोजनाओं में सीडीपीओ व डीओ द्वारा ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से टर्मिनेट की गयी महिलाओं के आवेदन को न स्वीकारने के मसले को भी रेखांकित किया गया। इस ज्ञापन के ज़रिये यूनियन की माँग थी कि –

1) वर्कर्स के पदोन्नति की प्रक्रिया में पूर्ण स्पष्टता और पारदर्शिता बहाल की जाए।

2) जब तक भर्ती की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होती है तब तक 2 मई के ऑर्डर के तहत होने वाली पदोन्नति स्थगित कर दी जाए।

3) इण्टरमीडिएट, ग्रेजुएशन व मास्टर्स के सभी डिग्री धारक वर्कर्स को उनके 10 साल के अनुभव के साथ फ़ॉर्म भरने का अवसर दिया जाए व कोई उम्र सीमा न रखी जाए।

4) योग्यता की शर्तें बदलने पर महिलाकर्मियों को समय रहते इसकी सूचना दी जाए।

5) ग़ैर-क़ानूनी रूप से बर्ख़ास्त की गयी आँगनवाड़ी वर्कर्स के भी आवेदन स्वीकार किये जायें क्योंकि बर्ख़ास्तगी का मसला अभी उच्च न्यायालय में विचाराधीन है।

6) उपरोक्त माँगों पर तुरन्त कार्रवाई करने का विभाग लिखित आश्वासन दें।

 

 

 

मज़दूर बिगुल, मई 2025

 

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