करौली में साम्प्रदायिक हिंसा आरएसएस-भाजपा की सुनियोजित साज़िश
– रवि
विगत 2 अप्रैल को विक्रम संवत नववर्ष के अवसर पर विहिप व संघ परिवार के द्वारा पूरे देश में अनेक स्थानों पर भड़काऊ रैलियों व जुलूसों का आयोजन किया गया जिनका मक़सद था आम जनता को धर्म के आधार पर बाँटकर वोटों के ध्रुवीकरण की ज़मीन तैयार करना। राजस्थान के करौली शहर में भी संघ परिवार व विहिप के द्वारा बाइक रैली निकाली गयी। यह रैली जब हटवाड़ाबाज़ार में मुस्लिम इलाक़े में पहुँची तो डीजे पर कानफाडू आवाज़ में मुस्लिम-विरोधी गाने बजाये जा रहे थे व मुस्लिम-विरोधी नारे लगाये जा रहे थे। इस उकसावे के कारण आक्रोशित कुछ मुस्लिम लोगों ने बाइक रैली पर पथराव किया। बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। उपद्रव में 1 मकान और 35 दुकानें जला दी गयी। 40 से ज़्यादा लोग घायल हो गये। उपद्रवियों ने 30 से ज़्यादा बाइक तोड़ दीं। पूरे शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया। इस पूरे मामले में 10 FIR दर्ज हुई हैं। 23 आरोपी गिरफ़्तार हुए हैं। इसमें 36 लोगों को नामज़द किया गया है जिसमें 19 मुस्लिम और 17 हिन्दू हैं। इनमें जयपुर नगर निगम (ग्रेटर) की मेयर सौम्या गुर्जर के पति व बीजेपी नेता राजा राम गुर्जर तथा करौली के निर्दलीय पार्षद मतलूब अहमद के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज है। राजस्थान के डीजीपी मोहन लाल लाठेर के अनुसार, “रैली में कुछ लोगों ने हिंसा भड़काने वाले नारे लगाये थे। डीजे की अनुमति नहीं थी फिर भी रैली में डीजे बज रहा था।” ‘द वायर’ की रिपोर्ट के अनुसार भी रैली में अल्पसंख्यक-विरोधी व कट्टरपन्थी नारे लगाये गये थे। जैसे कि “भारत में रहना होगा तो जय श्रीराम कहना होगा” और “अब टोपी वाला भी बोलेगा जय श्रीराम”।
इस साम्प्रदायिक हिंसा में पुलिस प्रशासन की भी घोर नाकामी सामने आयी है। रैली में डीजे बिना अनुमति के बज रहा था उस पर पुलिस प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। रैली का रूट डाइवर्ट नहीं किया गया रैली को मुस्लिम इलाक़ों से गुज़रने दिया और जब रैली हुई तो सिर्फ़ 30 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी थी जो कि उपद्रव रोकने के लिए नाकाफ़ी था।
दरअसल करौली हिंसा भाजपा व संघ परिवार की एक सुनियोजित साज़िश थी। पूर्वी राजस्थान में विधानसभा सीटों पर भाजपा का जनाधार बहुत कमज़ोर है। अगर पिछले 2018 के विधानसभा चुनावों के नतीजों को भी देखें तो पू्र्वी राजस्थान की 39 विधानसभा सीटों में से भाजपा को सिर्फ़ 4 सीटें मिली थीं बाक़ी सीटें कांग्रेस, बसपा व निर्दलीयों के हिस्से में आयी थीं। इसीलिए पूर्वी राजस्थान के सवाई माधोपुर में बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा आया था। संघ परिवार व बीजेपी की योजना करौली के रास्ते पूरे पूर्वी राजस्थान में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करना है क्योंकि राजस्थान में विधानसभा चुनाव भी ज़्यादा दूर नहीं हैं। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे बीजेपी पूर्वी राजस्थान में अपनी ज़मीन मज़बूत करना चाहती है और राजस्थान की सत्ता पर क़ाबिज़ होना चाहती है। पूर्वी राजस्थान की डेमोग्राफ़ी देखेंगे तो पता चलता है की यहाँ मुख्यत: मीणा, गुर्जर, दलित व मुस्लिम आबादी है और इनमें आपसी तनाव कम है। लेकिन भाजपा अपने साम्प्रदायिक एजेण्डा को लागू करना चाहती है। इससे पहले भी पूर्वी राजस्थान में साम्प्रदायिक दंगा भड़काने की कोशिश हो चुकी है। 2004 में विहिप के प्रवीण तोगड़िया व अशोक सिंघल ने साम्प्रदायिकता भड़काने की कोशिश थी। 2019 में भी हिन्दूवादी संगठनों ने रैली निकालकर साम्प्रदायिक दंगा भड़काने की कोशिश की। लेकिन मेहनतकश जनता की पहलक़दमी ने इस कोशिश को नाकाम कर दिया था। राजस्थान में साम्प्रदायिक हिंसा पूरे देश में संघ परिवार व बीजेपी द्वारा साम्प्रदायिकता व ध्रुवीकरण के प्रयासों की एक कड़ी है। इससे पहले कर्नाटक में हिजाब के मुद्दे पर, हलाल के मुद्दे पर, मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर विवाद पैदा करके पूरे देश में साम्प्रदायिकता का माहौल बनाना व ध्रुवीकरण करना है। ताकि जनता अपने असली मुद्दे भूल जाये। जिस हिसाब से महँगाई बढ़ रही है उस स्थिति में जनता के भीतर जो ग़ुस्सा है वो शासक वर्गों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल नहीं हो इसलिए जनता को दूसरे ग़ैर-ज़रूरी मुद्दों की तरफ़ डाइवर्ट किया जा रहा है। ताकि जनता अपने असली दुश्मनों को पहचान नहीं सके इसलिए एक नक़ली दुश्मन मुस्लिम के रूप में खड़ा किया जा रहा है।
करौली साम्प्रदायिक हिंसा के बाद भाजपा से तमाम नेताओं ने करौली का दौरा किया व भड़काऊ बयान दिये ताकि ध्रुवीकरण किया जा सके। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने भी इस हिंसा से निपटने में लापरवाही बरती है। पुलिस प्रशासन भी एक तरह से हिन्दू कट्टरपन्थी संगठनों के पक्ष में ही काम कर रहा था उसका एक कारण पुलिस प्रशासन में भी आरएसएस की घुसपैठ होना है। साथ ही, इस प्रकार की कार्रवाइयों पर कांग्रेसी सरकारें भी सख़्त कार्रवाई करने से डरती हैं कि कहीं भाजपा उन्हें हिन्दू-विरोधी के तौर पर पेश करने में कामयाब न हो जाये। यही कारण है कि कई सबूतों के बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक आतंकवादी संगठन के तौर पर कांग्रेस की केन्द्र सरकारों ने कभी प्रतिबन्धित नहीं किया, सिवाय महात्मा गाँधी की हत्या के तत्काल बाद। लेकिन बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर से प्रतिबन्ध हटा भी दिया गया क्योंकि भारत के पूँजीपति वर्ग को इन फ़ासीवादियों की ज़रूरत है ताकि मेहनतकश जनता को बाँटा जा सके, उसके आन्दोलनों को तोड़ा जा सके और धार्मिक उन्माद फैलाकर पूँजीपतियों के राज की हिफ़ाज़त की जा सके। करौली में हुई साम्प्रदायिक हिंसा संघ परिवार की इसी घिनौनी राजनीति का नतीजा है। रामनवमी के मौक़े पर भी उन्हीं राज्यों में साम्प्रदायिक दंगे करवाये गये जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। स्पष्ट है कि लगातार बढ़ती महँगाई और बेरोज़गारी से जनता का ध्यान भटकाकर साम्प्रदायिक उन्माद और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाकर अपने पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण करना भाजपा का मक़सद है। लेकिन हम मेहनतकशों को इस साज़िश में नहीं फँसना चाहिए। धार्मिक उन्माद में बहकर हम अपने ही वर्ग भाइयों का ख़ून बहायेंगे तो मालिकों, धन्नासेठों और पूँजीपतियों की साज़िश बार-बार कामयाब होती रहेगी। इस बात को हम जितनी जल्दी समझ लें उतना बेहतर है।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2022
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