कोरोना से हुई मौतों के आँकड़े छिपाने में जुटी मोदी सरकार के झूठों की खुलती पोल
मोदी सरकार के हिसाब से भारत में 11 जनवरी 2022 तक कोरोना के 3.59 करोड़ मामले और 4.84 लाख मौतें दर्ज की गयी हैं। लेकिन कई नये अध्ययनों और रिपोर्टों ने इस झूठ की कलई खोलकर रख दी गयी है।
विश्व स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘साइंस’ में 6 जनवरी को ‘भारत में कोविड से मौतें : राष्ट्रीय सर्वे का डेटा और अस्पतालों में हुई मौतें’ शीर्षक से प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक़ कोरोना के दौरान 32 लाख लोगों की मौत हुई, जो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज मौतों से 7 गुना ज़्यादा है। एक अन्य प्रतिठित अन्तरराष्ट्रीय पत्रिका ‘नेचर’ के अनुसार भारत में कोविड से क़रीब 50 लाख, यानी सरकारी आँकड़े से दस गुना ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं।
‘साइंस’ पत्रिका के अध्ययन के लिए सभी राज्यों के 1.40 लाख़ लोगों से टेलीफ़ोन पर बातचीत करके महामारी को ट्रैक किया गया है, इसके अतिरिक्त सरकारी अस्पतालों से मौत के आँकड़े और 10 राज्यों के सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम में दर्ज मृत्यु रजिस्ट्रेशन के आँकड़ों को आधार बनाया गया है।
इस अध्ययन से कोरोना के बारे में तीन बड़ी बातें सामने आयी हैं –
सर्वे एजेंसी ‘CVoter’ ने भारत के 1.40 लाख लोगों को कॉल किया और कुछ सवाल पूछे। क्या उनके घर में मौत हुई है? यदि हाँ तो मौत कब हुई है और मौत कोविड की वजह से थी या किसी अन्य कारण से?
सभी जवाबों को एक साथ एकत्रित कर विश्लेषण किया गया, जिससे पता चला कि जून 2020 से जुलाई 2021 तक 29% मौतें कोरोना की वजह से हुईं। अगर संख्या में बात की जाये तो यह आँकड़ा 32 लाख तक पहुँच जाता है। इनमें 27 लाख मौतें तो सिर्फ़ अप्रैल 2021 से जुलाई 2021 के दौरान हुई हैं।
इसी तरह जब 2 लाख अस्पतालों में कोरोना महामारी से पहले और कोरोना की दूसरी लहर के बाद के मौत के आँकड़े की तुलना की गयी तो इसमें 27% की बढ़ोत्तरी देखी गयी। इससे अन्दाज़ा लगाया गया कि ये बढ़ी हुई मौतें कोरोना की वजह से हुई हैं। इसी तरह सरकार के सिविल रजिस्ट्रेशन डेटा को मॉनिटर किया गया, जिसमें 10 राज्यों में कोरोना महामारी के दौरान मौतों के रजिस्ट्रेशन में 26% की बढोत्तरी दर्ज की गयी। इन सभी आँकड़ों का विश्लेषण करके यह पाया गया कि सितम्बर 2021 तक भारत मे कोरोना से हुई मौतों का आँकड़ा सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज आँकड़ों से 6 से 7 गुना ज़्यादा है।
एक अन्य रिपोर्ट में पाया गया कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद जब मोदी सरकार ने कोविड से मरने वालों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया, तो लगभग सभी राज्यों में मृतकों की सरकारी संख्या से कई गुना ज़्यादा लोगों ने मुआवज़े के लिए आवेदन किया। उत्तर प्रदेश और गुजरात सहित कई राज्य सरकारें अपनी घोषित संख्या से कहीं ज़्यादा कोविड मौतों के लिए मुआवज़ा दे भी चुकी हैं। हालाँकि अब भी यह संख्या आवेदन करने वालों से बहुत कम है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरकारों के दबाव में अस्पताल ने बहुत से लोगों को कोविड से मृत्यु होने का प्रमाणपत्र ही नहीं दिया।
प्रोफ़ेसर प्रभात झा ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को भारत के कोविड-19 की मौतों के आँकड़ों पर भरोसा नहीं है और इसलिए, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक मौतों का अपना पहला अनुमान लगाया, तो इसमें भारत की मौतों का आँकड़ा शामिल ही नहीं था। भारत के इन आँकड़ों से विश्वभर में कोरोना से हुई मौतों की संख्या में काफ़ी बदलाव होगा, जो अभी लगभग 50 लाख है।
फ़ासीवादी मोदी सरकार ने हर क़दम पर आपराधिक लापरवाही और बदइन्तज़ामी से लाखों लोगों को मौत के मुँह में धकेला और करोड़ों लोगों को बीमारी, बेरोज़गारी और ग़रीबी में धकेल दिया।
पिछले वर्ष रामराज्य वाले उत्तर प्रदेश में हर गली चौराहे पर मौत का ताण्डव दिखाई और सुनाई दे रहा था। हर मोहल्ले में शमशान-सा मातम था। हर घर में एक अफरा-तफरी का माहौल था। लोग अस्पताल में ऑक्सीजन, प्लाज़्मा, दवाइयों के लिए एड़ी चोटी एक कर रहे थे, लेकिन निराशा हाथ लग रही थी। वे अपने परिजनों को अपने सामने तड़प-तड़पकर दम तोड़ते देख रहे थे। जिस फ़ासीवादी सरकार ने लोगों को नोटबन्दी की लाइन में खड़ा कराया था उसी ने लोगों को मुर्दाघरों, मरघटों की क़तार में ला खड़ा कर दिया। काला बाज़ारी का धन्धा अपने उफ़ान पर था। अपने आक़ाओं से “आपदा को अवसर” में बदलने का गुरुमंत्र सीखे नरभक्षी दवा से लेकर अन्तिम संस्कार तक में लोगों को लूट रहे थे। राजधानी लखनऊ से लेकर वाराणसी, कानपुर, इलाहाबाद, ग़ाज़ियाबाद, मेरठ, नोएडा तक हर तरफ़ लाशों से उठती लपटें बेहद ही भयावह मंज़र पेश कर रही हैं।
अब वह कोरोना से हुई मौतों की संख्या को भी छुपा रही है और वह किसी भी सूरत में इन आँकड़ों को बाहर नहीं आने देना चाहती है। इन आँकड़ों की सच्चाई को कोरोना की दूसरी लहर का वह मंज़र भी साफ़ करता है, जब लोग ऑक्सीजन, दवाई व अस्पताल में बेड के लिए इधर-उधर भटक रहे थे और सभी नेता अपने बिलों में छिपे हुए थे। जनता की मेहनत पर पलने वाले पूँजीपति अपने प्राइवेट प्लेन से देश छोड़कर भाग गये थे, और भारत की आम अवाम अस्पतालों के बाहर अपने परिजनों की लाशें उठा रही थी और उन्हें जलाने, दफ़नाने या नदियों में बहाने की जगहें ढूँढ़ रही थी।
ये मौतें सरकार की लापरवाही और देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदतर हालत की वजह से हुई हैं। जब देशभर में कोरोना के मामलों में इज़ाफ़ा हो रहा था, तब कुम्भ मेले से लेकर चुनाव कराये जा रहे थे। एक आँकड़ा यह भी बताता है कि वर्ष 2019 के मुक़ाबले 2020 में स्वास्थ्य पर होने वाले ख़र्च में कमी आयी थी। पीएम केयर फ़ण्ड में बटोरे गये हज़ारों करोड़ रुपये का कोई ब्योरा आज तक जारी नहीं किया गया। लोगों की जान से खिलवाड़ करने के बाद अब यह सरकार उस नाकामी को ढँकने के लिए जनता को जाति-धर्म में बाँटने में लगी हुई है।
दूसरी ओर, कुछ कोविडियट्स अब भी अपने कुतर्कों से मोदी सरकार की लापरवाही और और उनकी इस साज़िश को सही ठहराने का ही काम कर रहे हैं। और अपनी मूर्खता के ज़रिए अवाम को गुमराह भी कर रहे हैं। अभी भी कई “मार्क्सवादी” कोविडियट्स हैं, जो दूसरी लहर के दौरान हुई इतनी मौतों को देखकर भी इसे सामान्य फ़्लू बता रहे हैं। आँकड़ों के सामने आने के बाद भी ये बड़ी बेशर्मी से चुप्पी साधकर बैठ जाते हैं। जब पूरे देश में नदियों के किनारे लाशों के ढेर पड़े थे, तब भी ये कोविडियट्स सरकार को सही माँगों पर घेरने के बजाय कोरोना को ही ड्रामा बता रहे थे। इसे सिर्फ़ मूर्खता कहना ठीक नहीं होगा। असल में लाखों लोग जो कोरोना और सरकार की लापरवाही से मरे हैं, यह उनका मज़ाक़ उड़ाना है।
मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2022
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