अपने लिए जेल ख़ुद बना रहे हैं असम में एनआरसी से बाहर हुए मज़दूर
– अफ़रोज़ आलम साहिल
असम के ग्वालपाड़ा ज़िले के मटिया इलाके़ के दोमोनी-दलगोमा गाँव में डिटेंशन सेंटर का काम काफ़ी तेज़ी से चल रहा है। यहाँ मौजूद इंजीनियर बताते हैं कि इसे 30 दिसम्बर, 2019 तक तैयार करने को कहा गया था। लेकिन विडम्बना यह है कि इस सेंटर को जो मज़दूर तेज़ी के साथ बना रहे हैं, भविष्य में ज़्यादातर वही इस सेंटर की ‘शोभा’ बढ़ायेंगे। यहाँ मज़दूरी करने वाले मज़दूरों में यह डर है कि क्या पता इसके बनने के साथ उन्हें भी यहीं कै़द कर लिया जाये, बावजूद इसके वे अपने पेट की आग बुझाने के लिए दिन-रात काम में लगे हुए हैं।
असम के आदिवासी समुदाय की एक महिला सिपाली हजंग भी यहाँ मज़दूरी कर रही है। वह कहती है, “मेरा नाम एनआरसी में नहीं आया है। मेरे पास सारे काग़ज़ हैं। मैंने विदेशी लोगों के ट्रिब्यूनल में अपील की थी, लेकिन मेरी अपील को ख़ारिज कर दिया गया।” वह आगे कहती है, “मुझे तो यहाँ आने में भी डर लगता है, लेकिन पैसे के लिए मज़दूरी तो करनी ही होगी। अब मुझे यहाँ रखा जायेगा या नहीं, मुझे पता नहीं…” सिपाली की माँ मालती हजंग भी यहीं मज़दूरी कर रही है।
सिपाली की दोस्त सरोजनी हजंग की भी यही कहानी है। वह बताती है, “मेरा नाम भी एनआरसी में नहीं आया है। मैं यह तो जानती हूँ कि ये डी-वोटर के लिए बन रही है, लेकिन मैं यह नहीं जानती कि यहाँ उन्हें रखा जायेगा जिनका नाम एनआरसी में नहीं आया है।”
जब उन्हें बताया गया कि इस डिटेंशन सेंटर में उन्हें रखा जा सकता है, जिनका नाम एनआरसी में नहीं आया है. तो इस पर वह कहती है, “अब मैं यह जान गयी हूँ कि ये डिटेंशन सेंटर है, तो बहुत डर लग रहा है पर मेरे पास पैसा नहीं है, इसलिए यहाँ मज़दूरी कर रही हूँ। मेरे दो छोटे बच्चे हैं, पति को दिमाग़ी बीमारी है।”
हम यहाँ कई मज़दूरों से बात करने की कोशिश करते हैं, लेकिन अधिकतर बात करने से बच रहे हैं। एक नौजवान मज़दूर बताता है कि यहाँ काम करने वाले ज़्यादातर लोगों का नाम एनआरसी में नहीं है, लेकिन वह बतायेगा नहीं, क्योंकि उसे लगता है कि यह पता चलने के बाद उसे काम से निकाल दिया जायेगा।
क़रीब ही ममता हजंग ने चाय की दुकान खोल रखी है। यहाँ के अधिकतर मज़दूर यहीं आकर चाय पीते हैं। वह बताती है कि यहाँ के गाँव में अधिकतर लोगों का नाम एनआरसी में नहीं आया है। उसके बेटे का नाम भी एनआरसी लिस्ट से ग़ायब है।
बता दें कि हजंग असम में एक जनजाति है। ये लोग 1966 में भारत सरकार के निमंत्रण पर पूर्वी पाकिस्तान से भारत आये थे। इस जनजाति का रिफ़्यूजी कैंप भी इसी इलाके़ में बसाया गया था। लेकिन विडम्बना यह है कि इस गाँव के अधिकतर लोगों का नाम एनआरसी लिस्ट में नहीं आया है और यही लोग इस डिटेंशन सेंटर में मज़दूरी कर रहे हैं।
यहाँ निरीक्षण का काम देख रहे जूनियर इंजीनियर रबिन दास ‘डाउन टू अर्थ’ के साथ बातचीत में बताते हैं – जो डिटेनी होगा, जो डी-वोटर होगा, जिसका नाम एनआरसी में नहीं आया, उसे यहाँ रखना है। यहाँ 3,000 लोग रखे जा सकते हैं। यहाँ हर तरह की सुविधा उपलब्ध होगी। खाना, रहना, स्कूल, अस्पताल सब कुछ होगा।
वे यह बताते हैं कि ये विश्व का दूसरे नम्बर का डिटेंशन सेंटर होगा। पहला स्थान अमेरिका का है, दूसरा स्थान हमारे असम का होगा। ऐसे डिटेंशन सेंटर और बनेंगे।
इस डिटेंशन सेंटर के बारे में असम का हर अधिकारी मीडिया से बात करने में कतरा रहा है। ग्वालपाड़ा की डिप्टी कमिश्नर वरनाली डेका ने ‘डाउन टू अर्थ’ से बातचीत में बताया कि इसका काम जेल आईजी की देखरेख में हो रहा है। उन्हें उसकी कोई जानकारी नहीं है. लेकिन ग्वालापाड़ा जेल का कोई अधिकारी इस सिलसिले में कोई बात करने को तैयार नहीं है।
असम में ऐसे 9 सेंटर और बनाये जाने हैं। ये सेंटर असम के बरपेटा, दीमा हसाव, कामरूप, करीमगंज, लखीमपुर, नगांव, नलबरी, शिवसागर और सोनितपुर में बनाये जाने की योजना है। फ़िलहाल 6 सेंटर यहाँ के ड्रिस्टिक्ट जेलों में चल रहे हैं और जेलों में बने इन सेंटरों में क़रीब एक हज़ार से अधिक लोगों को बद से बदतर हालात में रखा गया है। बताया जा रहा है कि फ़िलहाल कोकराझार, ग्वालपाड़ा, जोरहाट, तेजपुर, डिब्रूगढ़ और सिलचर की जेलों में चल रहे डिटेंशन कैंपों में कै़द विदेशियों को इस सेंटर में रखा जायेगा।
एक जानकारी के मुताबिक़ ग्वालपाड़ा के इस डिटेशन सेंटर के लिए 46.5 करोड़ की मंज़ूरी दी गयी है। वहीं दस सेंटरों पर प्रस्तावित ख़र्च 1,000 करोड़ रुपये है। यह सारा ख़र्च केन्द्र सरकार वहन करेगी।
बता दें कि असम में 31 अगस्त को एनआरसी की आख़िरी लिस्ट जारी हुई। इसमें 19 लाख लोग ऐसे पाये गये, जिनके नाम इस लिस्ट में नहीं हैं। इन 19 लाख लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने का एक और मौक़ा दिया जायेगा। ऐसे लोग 120 दिन की समय सीमा के अन्दर अपनी नागरिकता साबित कर सकेंगे। नागरिकता साबित करने के लिए इन लोगों को विदेशियों के ट्रिब्यूनल का दरवाज़ा खटखटाना पड़ेगा। इस वक़्त असम में 84 ऐसे ट्रिब्यूनल हैं, जबकि ऐसे 200 ट्रिब्यूनल और शुरू करने की तैयारी चल रही है।
महाराष्ट्र में भी बंगलादेशियों के लिए डिटेंशन सेंटर बनायेगी सरकार
असम के बाद अब महाराष्ट्र से भी डिटेंशन सेंटर बनाये जाने की ख़बर आ रही है। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में रह रहे अवैध बंगलादेशियों के लिए नवी मुंबई में डिटेंशन सेंटर बनाने के लिए जगह ढूँढ़ना शुरू कर दिया है। इसके लिए गृह मंत्रालय ने सिडको को पत्र लिखा है। पिछले हफ़्ते लिखे गये इस पत्र में जगह ढूँढ़ने की माँग की गयी है। राज्य सरकार नेरुल में दो से तीन एकड़ जमीन ढूँढ़ रही है।
(‘डाउन टु अर्थ’ पत्रिका से साभार)
मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2020
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