गोबिन्द रबर लिमिटेड, लुधियाना के मज़दूर संघर्ष की राह पर
लखविन्दर
गोबिन्द रबड़ लि. (जीआरएल) भारत की दस बड़ी टायर निर्माता कम्पनियों में से एक है। इस कम्पनी का मुख्यालय मुम्बई में है। गोबिन्द रबड़ लि. के मालिक विनोद पोद्दार का दिसम्बर 2017 में पंजाब सरकार के साथ पंजाब में 5000 करोड़ रुपये का निवेश करने का समझौता हुआ था। तब पंजाब सरकार ने बड़ी-बड़ी हाँकते हुए कहा था कि पंजाब में इस समझौते से कई हज़ार नौकरियाँ पैदा होंगी। हज़ारों करोड़ का यह नया निवेश होना और हज़ारों नयी नौकरियाँ पैदा होना तो बहुत दूर की बात है, गोबिन्द रबड़ लि. की पंजाब में पहले से चल रही तीन यूनिटें भी ठप पड़ी हैं। अप्रैल 2018 के आखि़री सप्ताह तक आते-आते उत्पादन बन्द कर दिया गया। मज़दूरों का जनवरी से अप्रैल तक का वेतन रोक लिया गया (मैनेजरों का एक भी पैसा नहीं रुका!) और उसके बाद मज़दूरों को जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया। तब से मैनेजमेण्ट मज़दूरों को झूठे वादे करती जा रही है कि कारख़ाने चलेंगे और सबको वेतन भी दिया जायेगा, लेकिन इतने महीने गुज़र जाने के बाद यह साफ़ हो चुका है कि इनके इरादे कुछ और ही हैं।
तीन यूनिटें बन्द करके न सिर्फ़ 1500 से अधिक मज़दूरों को बेरोज़गार कर दिया गया और उनका चार-चार महीने का वेतन रोककर रख लिया गया है, बल्कि अक्टूबर 2017 से कम्पनी मालिक मज़दूरों का ईपीएफ़़ और ईएसआई का पैसा भी खा गये हैं। करोड़ों के इस घोटाले की तरफ़ श्रम विभाग व पंजाब सरकार दोनों ही आँखें मूँदकर बैठे हैं। क्यों? इसके बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की सिर्फ़ बातें की जाती हैं, जबकि वास्तव में इसे बढ़ावा ही दिया जा रहा है और पंजाब सरकार व श्रम विभाग की इसमें भागीदारी है।
सभी राज्य सरकारें अपने राज्य में निवेश बढ़ाने के लिए पूँजीपतियों को तरह-तरह की छूटें और सहायता देती हैं। ज़ाहिर है, इन छूटों की वसूली भी जनता की जेब से ही होती है। लेकिन इन कम्पनियों में श्रम क़ानूनों का पालन हो रहा है या नहीं, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता।
गोबिन्द रबड़ के मज़दूरों ने बहुत सब्र दिखाया है। अब उनके सब्र का बाँध टूट चुका है। अब वे चुप नहीं बैठने वाले हैं। जिन्होंने मज़दूरों की ख़ून-पसीने की मेहनत का पैसा दबाया है, मज़दूर भी उन्हें अब चैन की नींद नहीं सोने देंगे। मज़दूरों ने फ़ैसला किया है कि वे मालिक के खि़लाफ़ ज़ोरदार संघर्ष करेंगे।
15 अगस्त को जब पूँजीपति वर्ग आज़ादी के जश्न में डूबा हुआ था, उस समय गोबिन्द रबड़ के मज़दूर इस आज़ादी को झूठा क़रार देते हुए अपने हक़-अधिकार हासिल करने के लिए अपने एकजुट संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए विचार-विमर्श कर रहे थे। उनकी एक बड़ी मीटिंग कम्पनी की यूनिट न. 1 के सामने थापर पार्क में हुई। उन्होंने फ़ैसला लिया कि कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में संघर्ष किया जायेगा। नेतृत्वकारी कमेटी का चुनाव किया गया और साथ ही फ़ैसला किया गया है कि 20 अगस्त को श्रम विभाग कार्यालय, लुधियाना पर ज़ोरदार प्रदर्शन करके इंसाफ़ के लिए आवाज़़ बुलन्द की जायेगी।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2018
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन