लुटेरे गिरोहों के शिकार औद्योगिक मज़दूर प्रशासन और फ़ैक्टरी मालिकों के ख़िलाफ़ संघर्ष की राह पर
राजविन्दर
लुधियाना में लूट-खसोट की वारदातों से तंग आकर बहादरके रोड वाले इलाक़े के हज़ारों फ़ैक्टरी मज़दूरों ने फ़ैक्टरियों में काम बन्द करके सुरक्षा बन्दोबस्त ना करने के ख़िलाफ़ पुलिस-प्रशासन और मालिकों के ख़िलाफ़ रोषपूर्ण प्रदर्शन किया। पिछले एक महीने में दर्जन से ज़्यादा लूट-खसोट की वारदातें इस इलाक़े में काम करने वाले मज़दूरों के साथ हो चुकी हैं। ये वारदातें आमतौर पर तनख़्वाह और एडवांस मिलने वाले दिनों में 10 से 15 तारीख़ और 25 से 30 तारीख़ के बीच होती हैं। पिछली 11 जून को रात के समय तीन मज़दूरों को लुटेरों ने ज़ख़्मी करके लूट लिया, जिसके बाबत पुलिस ने शिकायत लिखने की कोई कार्रवाई नहीं की, ऊपर से पीड़ित मज़दूरों से ही पैसे की माँग की गयी और झिड़ककर वापस भेज दिया गया। जब इन मज़दूरों ने अपने फ़ैक्टरी मालिकों से सुरक्षा का बन्दोबस्त करने को कहा तो उन्होंने भी अनसुना कर दिया। इसके बाद 12 जून को स्वतःस्फूर्त ढंग से मज़दूर सड़कों पर आने के लिए मजबूर हुए। मज़दूरों के रोष को देखकर प्रशासन ने पुलिस चौकी बनाने और उस इलाक़े में पुलिस के गश्ती दस्ते लगाने जैसी कुछ कार्रवाई की, पर लूट-मार की घटनाएँ बदस्तूर जारी हैं।
लुधियाना के बहादरके रोड के इलाक़े में माल निर्यात करने वाली बड़ी-बड़ी कम्पनियों में हज़ारों मज़दूर कपड़ा और पोशाकें तैयार करते हैं। पर इन फ़ैक्टरियों में ज़्यादातर काम ठेका मज़दूरों से ही कराया जाता है, जिन्हें फ़ैक्टरियों में काम करने का कोई सबूत जैसे पहचान पत्र, हाज़िरी कार्ड, नियुक्ति पत्र आदि, ईएसआई कार्ड, पीएफ़, वार्षिक बोनस और छुट्टियाँ, फ़ैक्टरी के अन्दर सुरक्षा प्रबन्ध, आने-जाने के लिए साधन जैसी कोई भी क़ानूनी सुविधाएँ हासिल नहीं हैं। ऊपर से तनख़्वाह और पीस रेट इतने कम हैं कि आठ घण्टे काम करके घर का ख़र्च चलाना मुश्किल होता है, इसी वजह से देर रात तक काम करना इन मज़दूरों की मजबूरी है। रात को काम से छुट्टी के बाद जब मज़दूर सड़कों पर आते हैं तो झपटमारों के हमले के शिकार होते हैं। ज़ख़्मी होने के बाद भी फ़ैक्टरी मालिक और प्रशासन की तरफ़ से कोई मदद ना मिलने के कारण पीड़ित मज़दूर और ज़्यादा भुखमरी की हालत में पहुँच जाते हैं। कई मज़दूरों के पास चोट का इलाज कराने का भी पैसा नहीं होता है। इसके अलावा फ़ैक्टरी का पहचानपत्र या हाज़िरी कार्ड न होने के कारण पुलिस वाले भी रात को इन मज़दूरों से पूछताछ के बहाने तंग करते हैं और चोर होने का इल्ज़ाम लगाकर उनके पास जो पैसे होते हैं, वह भी निकलवा लेते हैं।
वैसे तो पूरे शहर में ही लुटेरों की हिम्मत बहुत बढ़ गयी है। हर नागरिक पीड़ित है, पर शहर के बाहर सुनसान फ़ैक्टरी इलाक़ों में काम करने वाले मज़दूर इन लुटेरों के शिकार ज़्यादा होते हैं। ऊपर से दूसरे राज्यों से आने की वजह से स्थानीय प्रशासन में भी इन मज़दूरों की सुनवाई नहीं होती है। लगभग साढ़े तीन साल पहले ढंडारी इलाक़े में हुई घटना भी आज जैसे हालात की ही पैदावार थी जिसमें झपटमारी की घटनाओं में पुलिस की तरफ़ से अनदेखी और ढीली कार्रवाई की वजह से हज़ारों मज़दूर सड़कों पर आ गये थे। पुलिस द्वारा दमन की नीति अपनाने के कारण मज़दूरों का प्रदर्शन हिंसक रूप धारण कर गया था, जिसमें कुछ क्षेत्रीय राजनीति करने वाले तत्वों ने आग में घी डालने का काम किया और लोगों को भड़काया भी। इसके बाद पंजाब पुलिस ने क्षेत्रवाद का सहारा लेकर अपनी नालायकी को ढकने के लिए यूपी, बिहार के भइया बनाम पंजाबियों का झगड़ा बनाकर लोगों को आपस में लड़ाया और अपना दामन पाक-साफ़ दिखाने को कोशिश की थी। 41 निर्दोष मज़दूरों, जिनमें तीन बच्चे भी थे, पर संगीन धाराएँ लगाकर जेल में बन्द कर दिया था। उस पूरे इलाक़े को पुलिस छावनी में तब्दील करके मज़दूरों पर बेतहाशा ज़ुल्म किये गये। इसके जवाब में पंजाब के मज़दूर, किसान, मुलाज़िम संगठनों ने लगातार धरने-प्रदर्शन करके प्रशासन पर दबाव बनाकर जेलों में बन्द मज़दूरों को रिहा करवाया था। ढंडारी काण्ड के समय मज़दूर स्वतःस्फूर्त ढंग से बिना किसी योजना के सड़कों पर उतरे थे। इसलिए प्रशासन पर दबाव बनाने और संघर्ष को सही दिशा में ले जाने की कमी रही। जब पुलिस ने दमन किया उस समय मज़दूर संगठित होकर टक्कर लेने की हालत में नहीं थे। जिसकी वजह से उस पूरे इलाक़े में दहशत का माहौल बन चुका था। ढंडारी काण्ड के बाद काफ़ी मज़दूर असुरक्षित महसूस करने के कारण गाँव चले गये थे।
लगता है यहाँ के फ़ैक्टरी मालिकों और प्रशासन ने शायद कोई सबक़ नहीं लिया या फिर उन्हें मज़दूरों की चिन्ता नहीं। ऐसे ही हालात लुधियाना के बाहरी औद्योगिक इलाक़े में भी बने हुए हैं। एक मज़बूत संगठन की सख़्त ज़रूरत है, क्योंकि बिना संगठन और योजना के स्वतःस्फूर्त कार्रवाइयों के ज़रिये मज़दूर अपने संघर्षों को अंजाम तक नहीं पहुँचा सकते। पिछले से सबक़ लेकर संघर्ष की दिशा तय करना एक संगठन द्वारा ही सम्भव हो सकता है। दमन का मुक़ाबला भी सांगठनिक ताक़त के साथ ही किया जा सकता है।
इन घटनाओं में प्रशासन और फ़ैक्टरी मालिकों की लचर कार्रवाई के विरोध में टेक्सटाइल होज़री कामगार यूनियन, कारख़ाना मज़दूर यूनियन और नौजवान भारत सभा की ओर से डिप्टी कमिश्नर कार्यालय, लुधियाना में 18 जून को प्रदर्शन किया गया। संगठनों ने प्रदर्शन की तैयारी के लिए एक पर्चा भी जारी किया, जो टोलियाँ बनाकर शहर के मज़दूरों तक पहुँचाया गया और उपरोक्त माँगें अपने मालिकों और प्रशासन से हासिल करने के लिए कहा गया। भविष्य में एक मज़बूत संगठन बनाने का आह्वान किया गया, जिसके दम पर ही ऐसी घटनाओं को रोक पाने और फ़ैक्टरियों के अन्दर श्रम क़ानून लागू करवाने के लिए मालिक और प्रशासन पर दबाव बनाया जा सकता है। श्रम विभाग से कचहरी तक मज़दूरों के परिवार समेत नारे लगाते और पर्चे बाँटते हुए पैदल मार्च किया गया। डी.सी. कार्यालय पर प्रदर्शन करके माँगपत्र दिया गया जिसमें शहर में मज़दूरों की सुरक्षा का इन्तजाम, पीड़ित मज़दूरों का मुफ़्त इलाज और नुक़सान तथा हर्ज़ाने की माँग, सुनसान सड़कें और गलियों में रोशनी का पूरा प्रबन्ध करना, सारे मज़दूरों का बैंक खाता खुलवाना और मज़दूरों की सहमति से तनख़्वाह बैंक खाते में डालना, वेतन वाले दिन जल्दी छुट्टी करना, फ़ैक्टरी पहचान पत्र और हाज़िरी कार्ड बनाना, फ़ैक्टरी से कमरे तक पहुँचाने के लिए सवारी के इन्तज़ाम की पूरी ज़िम्मेदारी फ़ैक्टरी मालिक द्वारा उठाना, फ़ैक्टरी के अन्दर श्रम क़ानून लागू करने आदि की माँग रखी गयी। मज़दूरों के ग़ुस्से को देखकर माँगपत्र लेने के लिए डी.सी. को प्रदर्शनकारियों के बीच आना पड़ा। यहाँ भी मज़दूरों के प्रति प्रशासन का रवैया अड़ंगेबाज़ी वाला था। लोगों के बीच आकर माँगपत्र लेना डी.सी. को गवारा नहीं था। जब उसे इन घटनाओं को रोकने और मज़दूरों की समस्याओं को जल्दी हल करने का भरोसा दिलाने को कहा गया तो उसने कहा कि उसे इस मसले की जानकारी ही नहीं है। जबकि कई दिनों से अख़बारों, पर्चों के माध्यम से इन माँगों को उठाया गया था। अपने शहर की बड़ी आबादी समस्याओं से घिरी रहे और प्रशासकों को पता ही ना हो, यह बात ख़ुद एक सवाल है कि जो लोग प्रशासन तक पहुँच नहीं पाते उनकी सुनवाई कौन करेगा?
मज़दूर नेताओं ने साथियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि मज़दूरों को हमेशा ही ज़ुल्म-अन्याय के ख़िलाफ़ जूझना पड़ा है, हमें भी इन सरकारों की तरफ़ ताकना छोड़कर अपनी रक्षा करने के लिए ख़ुद आगे आना पड़ेगा। अन्त में ज़ोरदार नारे लगाते हुए प्रशासन को चेतावनी दी गयी कि अगर माँगों पर जल्दी कार्रवाई नहीं हुई तो मज़दूर तीखे संघर्षों की राह पर चलने को मजबूर होंगे। धरने को टेक्सटाइल होज़री कामगार यूनियन की तरफ़ से राजविन्दर, ताज मोहम्मद, कारख़ाना मज़दूर यूनियन की तरफ़ से लखविन्दर और नौजवान भारत सभा के छिन्दरपाल ने सम्बोधित किया।
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2013
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन