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मारुति सुज़ुकी मज़दूरों की ‘‘न्याय अधिकार रैली’’ और उनके समर्थन में देशव्यापी प्रदर्शन।
मारुति सुज़ुकी में हुई 18 जुलाई की घटना के छह महीने गुज़र चुके हैं लेकिन आज भी बर्ख़ास्त मज़दूर अपने न्याय की लड़ाई जारी रखे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ हरियाणा सरकार के पुलिस-प्रशासन, श्रम कार्यालय से लेकर मारुति प्रबन्धन का मज़दूर-विरोधी क्रूर चेहरा और ज़्यादा नंगा हो रहा है जिसकी ताज़ा मिसाल यूनियन के नेतृत्वकारी साथी ईमान ख़ान की गिरफ़्तारी है। साफ़ है कि मज़दूरों पर दमन के लिए पूँजी की सभी ताक़तें एकजुट हैं और उनके खि़लाफ़ मारुति के मज़दूर भी अपने फ़ौलादी इरादों के साथ डटे हुए हैं। वैसे अगर हम छह माह के संघर्ष पर नज़र डालें, तो मारुति मज़दूरों अब तक कई धरनों और रैलियों से लेकर ऑटो-सम्मेलन का भी आयोजन कर चुके, जिसमें उन्होंने हरियाणा सरकार के उद्योगमन्त्री रणदीप सुरजेवाल, श्रममन्त्री शिवचरण लाल शर्मा से लेकर खेल व युवा मन्त्री सुखबीर कटारिया तक के सामने आपनी माँगे रखीं, लेकिन सभी जगह मज़दूरों को सिर्फ़ कोरे आश्वासन ही मिले।
जिसके बाद मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन ने राज्यव्यापी साईकिल जत्था का कार्यक्रम लिया है। ये जत्था ‘‘न्याय अधिकार रैली’’ के रूप में 21 जनवरी से चार जिलों से शुरू किया गया। ‘‘न्याय अधिकार रैली’’ ने गाँव-शहर जाकर जनता के बीच अपनी आपबीती रखी तथा मज़दूर विरोधी नीतियों के खि़लाफ़ 27 जनवरी के दिन रोहतक में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के आवास पर प्रदर्शन में शामिल होने का आह्वान किया। मारुति मज़दूरों के अभियान को रोकने के लिए हरियाणा पुलिस ने मारुति प्रबन्धन के वफ़ादार कुत्ते की भूमिका अदा की और 24 जनवरी को गुड़गांव में हो रही प्रेस वार्ता से यूनियन की प्रोविजनल कमेटी के नेतृत्वकारी साथी ईमान ख़ान को गिरफ़्तार कर लिया, और उनको उसी दिन कोर्ट में पेश करके 147 मज़दूरों के साथ जेल भेज दिया गया, जबकि ईमान ख़ान का नाम चाज़र्शीट में शामिल नहीं था लेकिन ईमान ख़ान पर भी अन्य मज़दूरों की तरह धारा 302, 307 और 120(बी) लगा दी गयीं हैं जो हरियाणा सरकार की मज़दूर-विरोधी मंशा को जाहिर करता है। वहीं दूसरी तरफ धारूहेड़ा से आ रहे जत्थे को बिलासपुर में रोककर दूर-दराज के इलाक़े में छोड़ दिया। ये दोनों ही घटनाएँ मारुति सुज़ुकी के संघर्ष को कुचलने की कोशिशें थीं। लेकिन मज़दूरों की एकजुटता और साहस ने हरियाणा सरकार की इस साजिश को सफल नहीं होने दिया।
और 27 जनवरी को रोहतक में क़रीब 3,000 मारुति मज़दूरों, उनके परिवार-जनों से लेकर तमाम यूनियनों, कर्मचारी संगठनों ने ‘‘न्याय अधिकार रैली’’ में आन्दोलन को समर्थन दिया। सभा की शुरुआत में यूनियन के रामनिवास ने बताया कि 18 जुलाई की घटना के बाद से हरियाणा सरकार, पुलिस-प्रशासन से लेकर मारुति प्रबन्धन ने मज़दूरों के विरुद्ध की गयी एकतरफ़ा कार्रवाई में क़रीब 2,500 मज़दूरों को बर्ख़ास्त कर दिया है तथा 147 मज़दूरों को बिना किसी उच्च न्यायिक जाँच के जेल में बन्द कर दिया है, जो दिखाता है कि आज के समय में यूनियन बनाने का संवैधानिक अधिकार और ठेका प्रथा ख़त्म करने की न्यायसंगत माँग भी देश के हुक़्मरानों को बर्दाश्त नहीं हैं। यही कारण है कि आज मज़दूरों पर हो रहे बर्बर दमन के खि़लाफ़ न्यायपालिक से लेकर मीडिया तक मज़दूरों को ‘‘अपराधी’’ और ‘‘आंतकी’’ की तरह पेश कर रहे हैं। जबकि ये वही मज़दूर हैं जिनके दम पर आज मारुति सुज़ुकी ने अपने एक प्लाण्ट से चार प्लाण्ट खड़े कर लिए हैं और दस साल में 105 करोड़ के मुनाफ़े से 2,289 करोड़ के मुनाफ़े तक की छलाँग लगायी है।
इसके बाद क़रीब दो बजे तक तमाम संगठनों, यूनियनों के वक़्ताओं ने मारुति आन्दोलन के समर्थन में अपनी बात रखी। फिर, सभा को रैली का रूप दे दिया गया जो मुख्यमन्त्री हुड्डा के आवास का घेराव करने के लिए सड़क पर उतर पड़ी। लेकिन कुछ ही दूरी में लगाये गये पुलिस-प्रशासन के बैरिकडों पर रैली को रोक लिया गया। यहाँ बिगुल मज़दूर दस्ता की शिवानी ने रैली को सम्बोधित करते हुए बताया कि कल ही देश में 63वें गणतन्त्र दिवस का जश्न मानाया गया है लेकिन कैसी विडम्बना है कि आज भी अपने संवैधानिक हक़ों और न्याय के लिए लड़ रहे संघर्षरत मज़दूरों पर बर्बर दमन होता है। जबकि देश में सारे श्रम-कानून का उल्लंघन करने वाले, गिरफ़्तार मज़दूरों को बर्बर यातनाएँ देने वाले पूँजीपतियों, नेताओं और नौकरशाहों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है जो साफ़ कर देता है कि ये जनतन्त्र नहीं धनतन्त्र हैं। उन्होंने आगे कहा कि साथियो, हमें अपने छह माह के आन्दोलन से सबक़ निकालने चाहिए कि एक-एक दिन के प्रदर्शनों और धरनों का दौर बीत चुका है। अब हमें निणार्यक संघर्ष की तैयारी के लिए रावण की लंका में अंगद की तरह पैर जमाना होगा, यानी हमें एक जगह खूँटा गाड़कर बैठना होगा। हर रोज़ मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन की टोलियाँ पूरे एन.सी.आर. क्षेत्र में अन्य सभी यूनियनों और मज़दूर संगठनों से समर्थन की माँग करने जायेंगी और अपने जुटान को और ज़्यादा मज़बूत बनायेंगी। इसके अलावा, दिल्ली के तमाम छात्र, युवा, स्त्री और अन्य जनसंगठन भी आपके समर्थन में आयेंगे ही आयेंगे। इसलिए दिल्ली में जुटान जल्द से जल्द किया जाना चाहिए और एक दिन के लिए नहीं बल्कि डेरा डालने के लिए। इसके अलावा अब और कोई रास्ता नहीं है। साथ ही बिगुल मज़दूर दस्ता का मानना है कि अनिश्चितकालीन धरने की सबसे सही जगह हरियाणा के गुड़गाँव में, फरीदाबाद या रोहतक में नहीं है बल्कि दिल्ली में है। हमें वहीं डेरा डालना चाहिए। यही वह जगह है जहाँ से हमारे प्रदर्शन को मीडिया कवरेज मिलेगी और मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों का संघर्ष पूरे देश के सामने जाहिर होगा और इसी प्रक्रिया से प्रशासन और सरकार पर यह दबाव पड़ेगा कि वह हमारी बातों को सुने।
रैली के अन्त में, मारुति मज़दूरों को एक बार फिर मुख्यमन्त्री भूपेन्द्र हुड्डा के निजी सचिव द्वारा सिर्फ़ आश्वासन ही मिला। जिसमें कहा गया कि मुख्यमन्त्री जी का ऑपरेशन हुआ है जिसकी वजह से वह आज नहीं मिल पायेंगे, इसलिए मुलाक़ात का वक़्त 13 फ़रवरी तय कर दिया गया। साफ़ है कि मुख्यमन्त्री पूँजीपतियों के सेवक के रूप में बेहतरीन भूमिका अदा कर रहे हैं और आन्दोलन को लम्बा खींचकर मज़दूरों को थकाने की योजना बना रहे हैं। ऐसे में मारुति के मज़दूरों का आन्दोलन आपनी ताक़त को सही दिशा और कार्यक्रम पर लगाकर ही विजय पा सकता है।
5 फ़रवरी को देशव्यापी प्रदर्शन
27 जनवरी की रोहतक रैली के बाद, मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन ने आन्दोलन पर बढ़ते राजकीय दमन के खि़लाफ़ 5 फ़रवरी को देशव्यापी प्रदर्शन की अपील जारी की। यूनियन द्वारा जारी की गयी अपील के समर्थन में क़रीब 15 राज्यों में अलग-अलग जगहों पर प्रदर्शन हुए जिनमें कई यूनियनों, जनवादी संगठनों से लेकर छात्र-युवा संगठनों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
देश की राजधानी दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर क़रीब 12 संगठनों ने मारुति के मज़दूरों के आन्दोलन के समर्थन में और राजकीय दमन के खि़लाफ़ प्रदर्शन किया। प्रदर्शन की शुरुआत में राजपाल ने बताया कि मारुति मज़दूरों पर हो रही एकतरफ़ा कार्रवाई देश के मज़दूर आन्दोलन पर हमला है, इसलिए पूरे देश के मज़दूरों को मारुति मज़दूरों के समर्थन में आवाज उठानी होगी। साथ ही, उन्होंने आन्दोलन के लिए आर्थिक सहयोग जुटाने की अपील भी की। पीयूडीआर के गौतम नवलखा ने कहा कि मज़दूरों का आन्दोलन सिर्फ़ ज्ञापन देने या अर्जी देने से सफल नहीं होगा, बल्कि मज़दूरों को सड़कों पर उतरकर संघर्ष का जुझारू रास्ता अख्तियार करना होगा क्योंकि हमें यह समझना होगा कि जिन मन्त्रियों को हम ज्ञापन सौंप रहे हैं वही लोग आज उदारीकरण-निजीकरण की मज़दूर-विरोधी नीतियों को खुले आम लागू कर रहे हैं।
इसके बाद बिगुल मज़दूर दस्ता के अभिनव ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि मारुति के मज़दूरों के संघर्ष को सात महीने हो गये हैं और अब एक-एक दिन के प्रदर्शन व अलग-अलग मन्त्रियों को ज्ञापन देने का दौर ख़त्म करना होगा क्योंकि सिर्फ़ यही करते रहने से कुछ हासिल नहीं हो रहा है। इसलिए, अगर हम चाहते हैं कि केन्द्र सरकार और हरियाणा सरकार हमारी माँगों पर ध्यान दे तो हमें खूँटा गाड़कर एक जगह बैठ जाना होगा। उन्होंने कहा कि मारुति के मज़दूर अगर पूरी ताक़त के साथ डट जायें तो सरकार को तो दिक़्क़त होगी ही, साथ ही केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों को भी समर्थन देने के लिए मजबूर होना होगा और ऐसे धरने की सबसे सही जगह राजधानी दिल्ली ही हो सकती है। हम पूरी तैयारी के साथ दिल्ली में डट जाते हैं तो ज़्यादा संभावना है कि हमारा आन्दोलन विजयी हो। अन्य तमाम संगठनों और यूनियनों के वक़्ताओं ने भी मारुति मज़दूरों के समर्थन की बात कही। प्रदर्शन में मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन के साथ बिगुल मज़दूर दस्ता, पीयूडीआर, इंक़लाबी मज़दूर केंद्र, रैडिकल नोट्स, आल इण्डिया फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन (न्यू), क्रान्तिकारी नौजवान सभा, आइसा आदि संगठनों ने हिस्सेदारी की तथा प्रधानमन्त्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें पुलिस द्वारा दमन बन्द किये जाने, मज़दूरों पर लगाये गये फ़र्जी मुकदमे वापस लिए जाने, बर्ख़ास्त किये गये 2,500 मज़दूरों को काम पर वापस लेने व मज़दूरों के दमन-उत्पीड़न के लिए ज़िम्मेदार मालिक, प्रबन्धन और पुलिस अधिकारियों के खि़लाफ़ उचित कार्यवाही करने की माँग की गयी।
लखनऊ में विधानसभा के सामने बिगुल मज़दूर दस्ता, नौजवान भारत सभा, रिहाई मंच और लखनऊ विवि के छात्रों ने मारुति के मज़दूरों पर हो रहे दमन के खि़लाफ़ एकजुटता जाहिर की। नौजवान भारत सभा के आशीष ने कहा कि मज़दूरों पर हो रहे हमले के खि़लाफ़ हर इंसाफ़पसन्द, न्यायप्रिय नौजवान को खड़ा होने की ज़रूरत है। सामाजिक कार्यकर्त्ता कात्यायनी ने कहा कि मज़दूरों पर हो रहे राजकीय दमन का शिकार सिर्फ़ हरियाणा के मज़दूर ही नहीं बल्कि पूरे देश के मज़दूर हैं, जिसकी ताज़ा मिसाल गोरखपुर आन्दोलन है जहाँ पुलिस-प्रशासन मालिकों के एजेण्ट की भूमिका अदा करता रहा है। प्रदर्शन में हरियाणा सरकार विरोधी नारे लगाये गये और छात्र-मज़दूर एकता को मजबूत करने की अपील की गयी। प्रदर्शन को लालचन्द्र, शाहनवाज आलम ने सम्बोधित किया।
लुधियाना में कारख़ाना मज़दूर यूनियन, टेक्सटाइल हौजरी कामगार यूनियन, जनवादी अधिकार सभा, लोक एकता मंच, मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्स यूनियन आदि संगठनों ने लेबर कोर्ट से लेकर डी.सी. कार्यालय तक रैली निकाली। डी.सी. कार्यालय पर हुए दो घण्टे के ज़ोरदार प्रदर्शन में मज़दूरों ने मारुति के मज़दूरों के समर्थन में नारे लगाये। लुधियाना कारख़ाना मज़दूर यूनियन के राजिवन्दर ने कहा कि मारुति के मज़दूरों के समर्थन में लुधियाना का हर एक मेहनतकश मज़दूर खड़ा है क्योंकि वह जानता है कि आज मारुति मज़दूरों का संघर्ष जिन माँगों को लेकर लड़ रहा है वो देश ही नहीं दुनिया के मज़दूर आन्दोलन की बुनियादी माँग है, इसलिए हमारी वर्ग एकजुटता हमेशा मारुति मज़दूरों के साथ रहेगी।
मुम्बई के दादर में मारुति के मज़दूरों के समर्थन में एक सभा आयोजित की गयी। ट्रेड यूनियन सोलिडैरिटी, बिगुल मज़दूर दस्ता, दिशा छात्र संगठन (मुम्बई) आदि संगठनों ने इसमें हिस्सेदारी की। सभा की शुरुआत में मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन के महावीर धीमान ने मारुति के मज़दूरों के संघर्ष और उन पर हो रहे राजकीय दमन के बारे में बताया। बिगुल मज़दूर दस्ता के प्रशान्त ने कहा की मारुति सुज़ुकी के मज़दूरों ने स्वतन्त्र ट्रेड यूनियन बनाकर संशोधनवादी ट्रेड यूनियन की नाकामी को तो सामने रखा, लेकिन अब मज़दूरों को ये समझना होगा कि मारुति मज़दूरों का आन्दोलन एक फ़ैक्टरी की चौहद्दी को तोड़कर इलाक़ाई पैमाने पर एकजुटता बनाये तभी यह दीर्घकालिक तौर पर एक सफल मज़दूर आन्दोलन बन सकता है।
पटना में जन अभियान, जनवादी मज़दूर-किसान समिति, बिगुल मज़दूर दस्ता, मज़दूर पत्रिका आदि संगठनों ने मिलकर ने गाँधी मैदान से लेकर पटना स्टेशन तक रैली का आयोजन किया जिसमें सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया।
पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तराखण्ड, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में आयोजित इन देशव्यापी प्रदर्शनों में मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन के समर्थन में अन्य जगहों पर भी धरने, रैलियाँ और संवाददाता सम्मेलनों का आयोजन किया गया।
मज़दूर बिगुल, फरवरी 2013
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