पुणे में 18 मज़दूरों की मौत : मज़दूर नहीं जागे तो मौतों का यह सिलसिला चलता ही रहेगा
एक बार फिर यह साबित हो गया कि पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों की जान की क़ीमत कीड़े-मकोड़ों से ज़्यादा नहीं है। बीते 7 जून को पुणे के औद्योगिक क्षेत्र में केमिकल के एक कारखाने में भीषण आग लग गयी, जिसमें 18 मज़दूरों की जान चली गयी जिनमें ज़्यादातर महिलाएँ थीं। उस समय फैक्ट्री में 37 मज़दूर मौजूद थे। इनमें कार्यरत मज़दूर महज़ 7000-8000 रुपये वेतन पर फैक्टरी मालिक के कारखाने में खटते थे। इस हत्याकांड का ज़िम्मेदार कौन है? सबसे पहले ये फैक्टरी मालिक जो हमारे हाड-मांस को काट-काटकर मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं। पुणे से लेकर दिल्ली और पूरे देश के कारखाने कसाईखाने हैं, जहाँ मज़दूर अपनी मेहनत मालिक को 200 रुपये की दिहाड़ी पर बेचने को मजबूर हैं। इन्हीं जोंकों के पैसे से तमाम पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियाँ चुनाव लड़ती हैं। इन्हीं के नेता-मंत्री केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और नगर निगम में बैठते हैं। वे ही इस हत्या, लूट और शोषण को क़ानूनी जामा पहनाते हैं। पुणे में जो हुआ वह हादसा नहीं, इन्हीं कफ़नखसोटों और मुर्दाखोरों द्वारा अंजाम दिया गया हत्याकाण्ड है।
इसी तरह 2018 के जनवरी में दिल्ली में बवाना के सेक्टर-5 में आग लगी थी। नरेला से लेकर झिलमिल, पीरागढ़ी जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में और देश भर के कारखानों में आग लगती रहती है। परन्तु ऐसे हादसों को दोबारा होने से रोकने के लिए अवैध कारखानों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। कहने के लिए श्रम विभाग, लेबर इंस्पेक्टर, फैक्टरी इंस्पेक्टर होते हैं, लेकिन इन कारख़ानों की जाँच करने की बजाय वे मालिकों फेंके टुकड़े उठाकर चलते बनते हैं, कारखानों के भीतर तक नहीं जाते। ऊपर से केन्द्र सरकार मज़दूरों के श्रम कानूनों को ख़त्म करने की योजना बना रही है। इन मौतों के लिए यह समूची मुनाफ़ाखोर व्यवस्था ज़िम्मेदार है, जो कारखानेदारों के मुनाफ़े को बचाने में हीी लगी रहती है।
इस कोरोना संकट के समय सरकार को मज़दूरों को आर्थिक व स्वास्थ्य सुरक्षा देनी चाहिए, सवैतनिक अवकाश देना चाहिये, तब मज़दूरों को बिना किसी सुरक्षा के काम पर लगाया जा रहा है। ऊपर से मालिकों ने लॉकडाउन का वेतन तक नहीं दिया। कारख़ानों में सुरक्षा के कोई इन्तज़ाम नही हैं।
अगर भूख, बीमारी और कारख़ानों में हो रही मौतों के बाद भी मज़दूर चुप रहते हैं, तो मालिक उनके साथ ऐसे ही ग़ुलामों जैसा बरताव करते रहेंगे। उन्हें एकजुट होकर सरकार को मजबूर करना होगा कि पुणे जैसी घटनाओं के लिए दोषी मालिकों को सख्त से सख्त सज़ा मिले। साथ ही फ़ैक्ट्री में मज़दूरों की सलामती के सभी ज़रूरी इन्तज़ाम किये जायें। राज्य और केन्द्र सरकार देश के सभी औद्योगिक क्षेत्रों में हर फ़ैक्ट्री की सुरक्षा जाँच करवाये और हर फ़ैक्ट्री में सुरक्षा का पुख़्ता इन्तज़ाम करवाये।
मज़दूर बिगुल, जून 2021
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