देशव्यापी हड़ताल के दौरान RWPI व क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले हरियाणा में कलायत तहसील का घेराव

भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) व क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले देशव्यापी हड़ताल में हरियाणा के गाँव चौशाला, रामगढ़, बालू, सिमला, पिंजपुरा व कलायत शहर के मज़दूरों ने भागीदारी की। हड़ताल के दौरान मज़दूरों ने अपनी एकजुटता का शानदार प्रदर्शन करते हुए मोदी सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी की। इस एक दिवसीय विरोध प्रदर्शन में क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन की तरफ़ से यूनियन प्रभारी रमन ने मनरेगा मज़दूरों की समस्याओं पर विस्तार से बात रखी। उन्होंने बताया कि आज मनरेगा मज़दूरों को सरकार द्वारा तय की गयी न्यूनतम मज़दूरी जितनी भी दिहाड़ी नहीं दी जा रही है जिसके बिना मज़दूरों द्वारा अपने परिवार का गुज़ारा कर पाना मुश्किल हो रहा है। आज हर जगह श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए मज़दूरों से हाड़-तोड़ मेहनत करवायी जा रही है। लम्बे-चौड़े दावे करने वाली मोदी सरकार मनरेगा मज़दूरों को किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं दे रही। ऐसे में काम के दौरान मज़दूरों को पानी व छाया की व्यवस्था भी ख़ुद ही करनी पड़ रही है। आज आँकड़ों के हिसाब से देखा जाये तो पूरे साल में मज़दूरों को बड़ी मुश्किल से औसतन 35 से 40 दिन काम मिल पा रहा है जबकि ख़ुद सरकार द्वारा 100 दिन के काम की गारण्टी तय की गयी है।
क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी की तरफ़ से अजय ने बताया कि आज इस पूँजीवादी व्यवस्था में पूँजीपतियों का मुनाफ़ा बरक़रार रखने के लिए मोदी सरकार मज़दूरों का ख़ून चूसने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। आज अम्बानी-अदानी की चहेती मोदी सरकार ने श्रम क़ानूनों को इतना लचीला बना दिया है कि पूँजीपति अपना मुनाफ़ा बरक़रार रखने के लिए मज़दूरों से हाड़-तोड़ मेहनत करवा सकते हैं। कोरोना महामारी के दौर में भी मोदी सरकार इस आपदा को अवसर में बदलने का कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ रही है। जनता के ख़ून-पसीने से खड़े किये गये हर पब्लिक सेक्टर को आज पूँजीपतियों के हाथों में सौंपा जा रहा है। देखा जाये तो आज यह फ़ासीवादी सरकार लोगों के जनवादी अधिकारों पर हमला करते हुए उनको जाति-धर्म में बाँटने में पुरज़ोर तरीक़े से लगी हुई है ताकि वो अपनी बुनियादी समस्याओं पर सोच-विचार न कर सकें। अपनी बात के अन्त में उन्होंने बताया कि आज इस प्रकार की हड़तालों को अनिश्चितकालीन हड़ताल में बदलने की ज़रूरत है ताकि इस मानवद्रोही व मुनाफ़ा-केन्द्रित पूँजीवादी व्यवस्था का ख़ात्मा करके मानव-केन्द्रित समाजवादी व्यवस्था का निर्माण किया जा सके।

मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2020


 

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