सीएए-एनआरसी पर घर में मीटिंग कर रहे नौभास कार्यकर्ताओं को अँधेरगर्दी करते हुए जेल भेजा!
फ़ासिस्ट सत्ता अपने विरोध में उठी हर आवाज़ को कुचलने के लिए हर नियम-क़ानून को रौंदने पर आमादा है!
सीएए-एनआरसी के विरोध में देशभर में हो रहे विरोध से बौखलायी भाजपा की सरकारें आन्दोलन का दमन करने और विरोध में उठने वाली हर आवाज़ का गला घोंटने पर इस क़दर आमादा हैं कि क़ानून-संविधान-मानवाधिकार सबको बेशर्मी के साथ जूते की नोक पर रखकर मनमाने फ़ैसले किये जा रहे हैं। शाहीन बाग़ में गोली चलाने वाले कपिल गुर्जर को ज़मानत मिल जा रही है मगर कर्नाटक के एक स्कूल में सीएए-एनआरसी पर महज़ नाटक खेलने के कारण देशद्रोह के आरोप में हफ़्तों से बन्द 21 लोगों को हाईकोर्ट से मिली ज़मानत भी सुप्रीम कोर्ट ख़ारिज कर दे रहा है। लखनऊ में जिन सामाजिक कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने फ़र्ज़ी मुक़दमे लगाये थे, अब योगी सरकार ने न्याय, मानवाधिकार और सभ्यता के सामान्य उसूलों को भी तार-तार करते हुए उनके नाम-पते सहित होर्डिंग शहर में लगवा दिये और अदालत की फटकार के बाद भी मुँहजोरी पर आमादा है। उत्तराखंड की त्रिवेंद्र रावत सरकार भी इसी नक़्शे-क़दम पर चल रही है।
सीएए-एनआरसी के विरोध में देशभर में हो रहे विरोध से बौखलाये फ़ासिस्ट पुलिस-प्रशासन-अदालत सबको जूते की नोक पर रखकर आन्दोलन का दमन करने पर उतर आये हैं। चाहे गाजीपुर में सत्याग्रह पदयात्रियों के जत्थे को गिरफ्तार करके जेल भेजना हो, डा. कफील खान को जमानत मिलने के बाद भी रिहा न करके जेल में ही उन पर रासुका लगा देना हो, लखनऊ में जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ थाने में मारपीट और दुर्व्यवहार करना हो, दिल्ली में महिला वकीलों और शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे प्रतिष्ठित कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी और मारपीट हो, ऐसे कारनामों की फ़ेहरिस्त लम्बी होती जा रही है जिन पर किसी भी सभ्य और “लोकतांत्रिक” देश में सरकार के लिए जवाब देना मुश्किल हो जाता।
इसी कड़ी में कल देहरादून में एक नागरिक के घर पर सीएए-एनआरसी के विरुद्ध मीटिंग कर रहे नौजवान भारत सभा के दो कार्यकर्ताओं को पुलिस ने बिना किसी वारण्ट या आरोप के अवैध तरीक़े से उठा लिया था। साथ में दो स्थानीय नागरिकों को भी पुलिस पकड़कर ले गयी थी। रात भर पूछताछ के बहाने थाने में बैठाये रहने के बाद पुलिस ने आज सुबह स्थानीय नागरिकों को तो छोड़ दिया मगर नौभास कार्यकर्ताओं अपूर्व और अंगद पर धारा 151 के तहत “शान्तिभंग की आशंका” का केस दर्ज कर लिया। कहाँ तो मजिस्ट्रेट को पुलिस से यह जवाब तलब करना चाहिए था कि अगर कुछ लोग बन्द कमरे में बैठकर बातचीत कर रहे हैं तो इससे शान्तिभंग की आशंका कैसे है, मगर मजिस्ट्रेट उल्टे इन कार्यकर्ताओं से ही जवाब तलब कर रही थीं कि जब देश का माहौल ख़राब है तो वह रात में मीटिंग क्यों कर रहे थे! इससे पहले रात में कुछ पुलिस वालों को थाने में यह कहते हुए साफ़ सुना गया था कि धारा-वारा क्या होती है, इन लोगों को कुछ दिन जेल में रखकर मज़ा चखाना है। स्पष्ट था कि उन्हें ऊपर से निर्देश थे।
दरअसल, देहरादून के शास्त्रीनगर खाला इलाक़े में दो मार्च की शाम को एक स्थानीय नागरिक के घर पर नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ता सीएए-एनआरसी के बारे में लोगों को बताने और एनपीआर का बहिष्कार करने के बारे में मीटिंग कर रहे थे। ज्ञातव्य है कि नौभास की ओर से कई राज्यों में ऐसा अभियान चलाया जा रहा है और जगह-जगह इस मुद्दे पर मोहल्ला कमेटियाँ गठित की जा रही हैं। इसी क्रम में उस दिन की मीटिंग में क़रीब 25 पुरुष व महिलाएँ उपस्थित थे। मीटिंग के दौरान ही अचानक पुलिस वाले कमरे में घुस आये और अपूर्व मालवीय का नाम लेकर पूछा और उन्हें अपने साथ बाहर चलने के लिए कहा। नौभास के साथी अंगद मीटिंग का फ़ेसबुक लाइव कर रहे थे जिस पर यह सारी घटना कई मित्रों ने देखी। पुलिस अपूर्व के साथ ही अंगद को तथा दो अन्य नागरिकों को भी पकड़कर बसंतविहार थाने ले गयी। अंगद के फ़ोन से फ़ेसबुक लाइव को भी तत्काल डिलीट कर दिया गया।
इन दो युवा कार्यकर्ताओं को किसी न किसी बहाने जेल में रखने के लिए क़ानून को औंधे मुँह खड़ा कर दिया गया। पहले तो मजिस्ट्रेट ने उनकी ज़मानत के लिए ऐसी शर्तें लगा दीं जिन्हें पूरा करना लगभग असम्भव था, कम से कम आज के माहौल में! धारा 151 के मामलों में आम तौर पर निजी मुचलके पर ही ज़मानत हो जाती है, लेकिन इन दो नौजवानों के लिए सिटी मजिस्ट्रेट ने शर्त लगा दी कि दो राजपत्रित अधिकारी (प्रवर्ग ख के) ज़मानती हों और एक-एक लाख के दो बॉण्ड भी दिये जायें। अव्वलन तो किसी भी क़ानून या नज़ीर के तहत ऐसी शर्त नहीं लगायी जा सकती, दूसरे कोई राजपत्रित अधिकारी क्यों किसी की ज़मानत लेगा! इस वाहियात और निश्चय ही राजनीतिक दबाव में दिये आदेश के विरुद्ध नौजवान भारत सभा की ओर से पिछले शुक्रवार को नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। वहाँ का अनुभव एक बार फिर यह बताने के लिए काफ़ी था कि अदालतें किस क़दर भगवा रंग में रंग चुकी हैं। हालाँकि अब इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है, मगर वहाँ पर एक जज ने अपने चैम्बर में वकीलों को फटकार लगाते हुए सीएए-एनआरसी का विरोध करने वालों के बारे में जिस तरह की भाषा में टिप्पणियाँ कीं उसे “शॉकिंग” ही कहा जा सकता है। उन्होंने कुछ बेवजह के तकनीकी नुक़्ते बताकर याचिका की फ़ाइल वापस कर दी और यह भी जता दिया कि उनकी अदालत से इस मामले में उम्मीद रखना व्यर्थ है।
इतना ही नहीं घरवालों पर दबाव बनाने के लिए प्रशासन ने उनके पते देकर पत्रकारों को घरों पर भेजा और देहरादून, गोरखपुर और सोनभद्र के अख़बारों में एक जैसी ख़बरें छपवायी गयीं जिनको पढ़कर ऐसा लगेगा मानो कोई ख़तरनाक अपराधी पकड़े गये हों।
असल में सरकार जनविरोधी और विभाजनकारी सीएए, एनआरसी और एनपीआर क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में चल रहे जनान्दोलनों से बौखलायी हुई है और किसी भी तरह के नागरिक जनवादी अधिकारों को कुचल देने पर आमादा है. कमरे के भीतर शान्तिपूर्ण बैठक कर रहे नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी सरकार की बौखलाहट को दिखाती है। लेकिन इन हमलों से आन्दोलनकारियों के हौसले और बुलंद होंगे।
बहरहाल, नौजवान भारत सभा के दोनों साथियों, अपूर्व और अंगद को रिहा करवाने की क़ानूनी लड़ाई तो चलती रहेगी, मगर यह साफ़ है कि इस राजनीतिक हमले का मुक़ाबला राजनीतिक तौर पर भी करना होगा। इस गिरफ़्तारी के ज़रिये भाजपा सरकार सीएए-एनआरसी के विरोध में आन्दोलनरत सभी जनसंगठनों और कार्यकर्ताओं को यह मैसेज देना चाहती है कि आज इनको जेल में डाला है, कल तुम्हारी भी बारी आ सकती है। उन्हें लगता है कि मुसलमानों को तो उन्होंने पहले ही काफ़ी आतंकित कर रखा है, अब इन दो नौजवानों के ज़रिये वे यह भी दिखाना चाहते हैं कि सीएए-एनआरसी के विरोध में आवाज़ उठाने वाले “हिन्दुओं” को भी नहीं बख़्शा जायेगा। इस आन्दोलन को केवल मुसलमानों का विरोध साबित करने और उन्हें और अधिक अलग-थलग करने की उनकी कुटिल चेष्टा का यह भी एक अंग है। देहरादून और उत्तराखंड के जनसंगठन, राजनीतिक पार्टियाँ और ऐक्टिविस्ट इस घटिया साज़िश को समझ भी रहे हैं और इस पर क्षोभ व्यक्त करते हुए इस मसले पर एकजुट विरोध की तैयारी भी कर रहे हैं। भाजपा सरकार की हरचन्द कोशिशों के बावजूद यह आन्दोलन और व्यापक शक्ल अख़्तियार करेगा।
छपते-छपते… मज़दूर बिगुल का यह अंक प्रेस में जाने तक यह जानकारी मिली है कि 11 मार्च को दोनों साथियों की ज़मानत हो गयी है।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2020
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