लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों की हड़ताल की जीत कमियों-कमज़ोरियों को दूर करते हुए आगे बढ़ना होगा

लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों की टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन, पंजाब के नेतृत्व में बीती 4 अक्टूबर से शुरू हुई अनिश्चितकालीन हड़ताल जीत हासिल करते हुए समाप्त हो गयी है। मेहरबान, गौशाला, कश्मीर नगर, माधोपुर, शक्तिनगर, टिब्बा रोड आदि इलाक़ों में क़रीब 75 कारख़ानों के लगभग 2000 मज़दूर इस हड़ताल में शामिल हुए थे। तनख़्वाह में 30 फ़ीसदी बढ़ोत्तरी और 8.33 फ़ीसदी सालाना बोनस हड़ताल की मुख्य तात्कालिक माँगें थीं। मालिकों से 15 फ़ीसदी तनख़्वाह बढ़ोत्तरी और 8.33 फ़ीसदी बोनस का समझौता हुआ है। पहचान पत्र एवं हाज़िरी कार्ड बनाने, ई.पी.एफ़. सुविधा लागू करने, काम के दौरान हादसों और बीमारियों की रोकथाम के लिए उचित प्रबन्ध सहित सभी श्रम क़ानून लागू करने की माँगें भी मालिकों को सौंपे गये माँग-पत्र में शामिल थीं। इन माँगों के लिए टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन की तरफ़ से संघर्ष जारी रहेगा।

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11 अगस्त को बुलायी गयी मज़दूर पंचायत में माँगों और मसलों पर हुए विचार-विमर्श के बाद माँग-पत्र तैयार किया गया था। यह माँग-पत्र मालिकों और श्रम विभाग को दिया गया। इस बार यह फ़ैसला किया गया था कि जो भी मालिक मज़दूरों की माँगें मान लेगा, उसके कारख़ाने में हड़ताल नहीं होगी और हड़ताल के दौरान भी जिस कारख़ाने में मालिक अपने मज़दूरों से समझौता कर लेगा, वहाँ हड़ताल समाप्त कर दी जायेगी। टिब्बा नगर और शक्ति नगर इलाक़ों के कारख़ानों को छोड़कर अन्य इलाक़ों के ज़्यादातर कारख़ानों में कुछ ही दिनों में समझौता हो गया था। सबसे बाद में टिब्बा रोड पर स्थित कारख़ानों के मालिक झुके। आखि़री समझौता 11 नवम्बर को हुआ।

टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन, पंजाब के नेतृत्व ने शुरू से ही मज़दूरों में आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक अधिकारों के लिए समझ बढ़ाने और जागरूकता फैलाने पर ज़ोर दिया है। नियमित तौर पर साप्ताहिक मीटिंगें, पर्चे, किताबें, लाइब्रेरी, मज़दूर अख़बार ‘बिगुल’, व्यक्तिगत बातचीत, अलग-अलग मुद्दों पर होने वाली लामबन्दी और संघर्ष आदि मज़दूरों की समझ बढ़ाने के साधन रहे हैं। इस लगातार और संगठित सरगर्मी और कमेटी प्रबन्धन लागू करने, नेतृत्व चुनने और फ़ैसलों में अधिकतम सम्भव हद तक अधिक से अधिक मज़दूरों की भागीदारी करवाने का जनवादी ढंग लागू करने की वजह से संगठन लगातार मज़बूत हुआ है। गीता नगर में मौजूद लाल झण्डा टेक्सटाइल-हौज़री मज़दूर यूनियन की तरफ़ से इस तरह की कार्यप्रणाली ग़ैरहाज़िर रही है, जिसके चलते न तो इस इलाक़े के मज़दूरों में मज़दूर वर्गीय समझ विकसित हुई है और न ही इस संगठन का आगे फैलाव हो सका है। यहाँ तक कि टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन के साथ किसी तरह का तालमेल या सहयोग करने से गीता नगर के संगठन को इसके नेताओं ने अति संकीर्ण ढंग से दूर रखा है। इस संकीर्णता का टेक्सटाइल मज़दूरों के संघर्ष को बहुत नुक़सान हुआ है।

टेक्सटाइल-होज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में इस बार की हड़ताल की भी जीत एक बड़ी उपलब्धि है और इससे हमारे संघर्ष को और बढ़ावा मिलेगा, लेकिन इस दौरान गम्भीर कमियों-कमज़ोरियों की बात करना भी बहुत ज़रूरी है।

मज़दूर संगठन की लगातार बढ़ती जा रही ताक़त से मालिक बौखलाहट में हैं। संगठन को कमज़ोर करने और तोड़ने के लिए वह लगातार कोशिशें कर रहे हैं। इस बार की हड़ताल से पहले अग्रणी भूमिका निभाने वाले और मज़दूरों को काम से निकालने की नीति मालिकों ने अपनायी है। सीज़नल काम होने की वजह से संगठन की ताक़त पूरे साल एक जैसी नहीं रहती। मज़दूर पीस रेट पर काम करते हैं और काम कम होने पर गाँव चले जाते हैं। मालिकों ने मन्दी के दिनों में अगुआ और सरगर्म भूमिका निभाने वाले मज़दूरों को काम से निकालना शुरू कर दिया, या गाँव से वापस आने पर उन्हें काम पर नहीं रखा। इस छँटनी को रुकवाने के लिए संगठन के पास अभी संगठित ताक़त की कमी है और आमतौर पर श्रम विभाग में शिकायत दर्ज करवाकर ही गुज़ारा करना पड़ता है। श्रम विभाग और श्रम अदालतों में मज़दूरों के केस लम्बे समय के लिए लटकते रहते हैं और इन्साफ़ नहीं मिलता। जिन कारख़ानों के मज़दूर संगठन के जीवन्त सम्पर्क में नहीं रहते, उन कारख़ानों में छँटनी की यह मुसीबत ज़्यादा आयी है। कारख़ानों से निकाले गये मज़दूर दूसरे इलाक़ों में जाकर काम कर रहे हैं, इससे अन्य इलाक़ों में भी संगठन के फैलाव की सम्भावना बनी है। दूरगामी तौर पर देखा जाये तो मालिकों के हमले के ये लाभ भी हुए हैं।

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संगठन का पिछले समय में अन्य इलाक़ों में फैलाव तो हुआ है, लेकिन लुधियाना में टेक्सटाइल मज़दूरों का बड़ा बहुमत अभी भी संगठन के घेरे में नहीं आया। होज़री मज़दूर लगभग संगठन से अभी बाहर ही हैं। अन्य उद्योगों में भी ज़्यादातर मज़दूर अभी संगठित नहीं हुए हैं। इन उद्योगों के संगठित मज़दूरों में भी इंक़लाबी संगठनों का आधार बहुत कमज़ोर है, ज़्यादातर संशोधनवादी- दलाल संगठनों का बोलबाला है। मज़दूरों में संशोधनवादी- समझौतापरस्त दलाल संगठनों द्वारा पैदा की गयी निराशा की स्थिति हर क़दम पर रुकावट पैदा करती रही है। पिछले तीन वर्ष के संघर्ष से यह बात साफ़ है कि एक-दो कारख़ानों में या कम संगठित ताक़त से श्रम क़ानून लागू नहीं करवाये जा सकते। इलाक़ा स्तर पर और पेशा आधारित विशाल लामबन्दी समय की ज़रूरत है। अगर संगठित ताक़त बड़ी हो तो प्रशासन पर दबाव बनाकर मालिकों पर श्रम क़ानून लागू करने के लिए दबाव डाला जा सकता है।

हड़ताल के दौरान इस बार भी बहुत सारे मज़दूर नियमित रूप में धरने-मीटिंगों में शामिल होने की जगह या तो अपने कमरों में बैठे रहे या अपने गाँव चले गये। इस कारण मालिकों और प्रशासन पर पर्याप्त दबाव नहीं बन सका। यह कमी दूर करने के लिए मज़दूरों की समझ बढ़ाने की ज़ोरदार कोशिश करनी होगी। हमेशा की तरह इस बार भी हड़ताल में मज़दूरों की ओर से अपने घरों की महिलाओं को मीटिंग-धरने में लेकर आना बहुत कम रहा। मज़दूरों की राजनीतिक समझ की कमी और सांस्कृतिक पिछड़ापन संघर्ष में महिलाओं की बहुत कम हाज़िरी का कारण है। यूनियन की तरफ़ से महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जहाँ लगातार मज़दूरों से बात की जा रही है, वहीं महिलाओं की अलग मीटिंग और अन्य सरगर्मियाँ करने की कोशिश की जा रही है। संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए नेताओं को मज़दूरों की ज़िन्दगी से ज़्यादा से ज़्यादा जुड़ना पड़ेगा, उनको समझना पड़ेगा। लोगों से सीखते हुए लोगों को सिखाने की शिक्षा को और भी लगन और कुशलता से लागू करना होगा।

लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों के संघर्ष को इन सभी कमियों-कमजोरियों-चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ना है। लुटेरे पूँजीपति वर्ग की ताक़त का सामना लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूर उतना ही बेहतर ढंग से कर सकेंगे जितना ज़्यादा वे अपनी कमियों-कमजोरियों की पहचान करते हुए उन्हें दूर कर लेंगे।

 

मज़दूर बिगुलदिसम्‍बर  2013

 


 

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