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बिगुल के जनवरी 1997 अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
बनारस का डी.एल.डब्ल्यू. कारखाना निजी पूँजीपतियों के हाथों औने-पौने बेचने की कोशिश
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
ग्रामीण विकास योजनाओं की असलियत / विश्वनाथ
आन्दोलन : समीक्षा-समाहार
निजीकरण-कुचक्र और ट्रेड यूनियन आंदोलन की बुनियादी समस्याएं / ओ.पी.सिन्हा
स्त्री मज़दूर
इस तरह से चूसती हैं बहुराष्ट्रीय कम्पनियां गरीब मुल्कों की मेहनतकश औरतों का खून-पसीना / मीनाक्षी
लेखमाला
कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढांचा (चौथी किश्त) / व्ला.इ. लेनिन
बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कैसे किया? (दूसरी किश्त)
कला-साहित्य
कविता – ऐलान / गाेरख पाण्डेय
उद्धरण – मज़दूर काम करना बन्द कर दें तो / विवेकानंद
आपस की बात
गांव से उजड़े और दिल्ली में बसे एक मज़दूर की कहानी / शिवरतन
कविता – व्यवस्था / कुंतल कुमार जैन, बम्बई
कविता – समाजवाद / सूर्यदेव उपाध्याय, उल्हासनगर
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन