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बिगुल के सितम्बर 1996 अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
इलेक्शन या इंकलाब? : सच्चाई से नजरें मिलाने की हिम्मत करो! सही राह चुनने का संकल्प बांधो!!
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
पूँजीवादी राज्य में सार्वजनिक उद्योग : श्रमशक्ति के सार्वजनिक लूट का जरिया / ओमप्रकाश
श्रम कानून
श्रम कानून और पूँजीपति वर्ग द्वारा श्रमिकों का कानूनी-गैर कानूनी शोषण / डी.सी.वर्मा
विरासत
एकमात्र रास्ता – श्रमिक क्रान्ति / भगतसिंह
कम्युनिस्ट पार्टी, सरकारी सत्ता और वर्ग संघर्ष / जी. प्लेखानोव
मौका मिले तो फिर से क्रान्तिकारी परचम उठाना चाहेंगे / सुरेन्द्र कुमार (1946 के नाविक विद्रोह के भागीदार क्रान्तिकारी)
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
प्रदूषण नियन्त्रण कानून की आड़ में मज़दूरों की छंटनी : निष्पक्ष न्यायपालिका की पूँजीवादी पक्षधरता
स्त्री मज़दूर
बिहार में स्त्री-श्रमिकों की स्थिति : उनकी दुनिया का अंधेरा और अधिक गहरा है
लेखमाला
कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढांचा (पहली किश्त) / व्ला.इ. लेनिन
कारखाना इलाक़ों से
मौत का दरवाजा बन गई हैं मध्यप्रदेश की कपड़ा मिलें / मुकुल शर्मा
कला-साहित्य
कविता – कुर्सीनामा / गोरख पाण्डेय
कविता- पूँजीवादी समाज के प्रति / मुक्तिबोध
कविता : कम्युनिज्म / बर्तोल्त ब्रेख्त
आपस की बात
आजाद कौन है? / संतोष कुमार, बरौनी
असंगठित मज़दूरों को क्रान्ति हेतु शिक्षित करना होगा / भास्कर, गोरखपुर
मज़दूरों की कलम से
मज़दूर कहलाने में लोग तौहीन समझने लगे हैं / जनेश्वर तिवारी, लखनऊ
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन