पूँजीवाद और मज़दूरों का आव्रजन
वी. आई. लेनिन
पूँजीवाद ने राष्ट्रों के विशेष प्रकार के प्रव्रजन को जन्म दिया है। तेज़ी से विकसित होते औद्योगिक देश, जो बड़े पैमाने पर मशीनरी लगा रहे हैं तथा पिछड़े देशों को विश्व बाज़ार से बाहर खदेड़ रहे हैं, अपने यहाँ औसत दर से अधिक मज़दूरी देते और इस प्रकार पिछड़े देशों के मज़दूरों को आकर्षित करते हैं।
लाखों मज़दूर इस प्रकार सैकड़ों और हज़ारों वेर्स्त की दूरियों में भटकते हैं। विकसित पूँजीवाद इस प्रकार जबरन उन्हें अपने चक्र में खींच लेता है, उन्हें उनके कोटर से खींचकर अलग कर देता है, उन्हें एक विश्व ऐतिहासिक हलचल का भागीदार बना देता है और उन्हें शक्तिशाली तथा एकजुट कारख़ाना मालिकों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ग के आमने–सामने लाकर खड़ा कर देता है।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि भयानक ग़रीबी ही लोगों को अपनी जगह–ज़मीन छोड़ने के लिए बाध्य करती है और पूँजीपति इन आव्रजक मज़दूरों का शोषण बेहद बेशर्म तरीके से करते हैं। परन्तु सिर्फ़ प्रतिक्रियावादी ही राष्ट्रों के इस नये तरह के प्रव्रजन के प्रगतिशील महत्व की ओर से आँखें मूँद सकते हैं। पूँजीवाद के आगे विकसित हुए बिना और इस पर आधारित वर्ग–संघर्ष के बिना पूँजी के जुवे से मुक्ति असम्भव है। और यही वह संघर्ष है जिसमें पूँजीवाद पूरी दुनिया के मेहनतक़श अवाम को खींच रहा है, स्थानीय जीवन के पुराने ढर्रे और सड़ी–गली आदतों को बदल रहा है, राष्ट्रीय बाधाओं और पूर्वाग्रहों को तोड़ रहा है, सभी देशों के मज़दूरों को अमेरिका, जर्मनी आदि के विशाल कारख़ानों और खदानों में एकताबद्ध कर रहा है।
जो देश मज़दूरों का आयात करते हैं उनमें अमेरिका सबसे ऊपर है। अमेरिका में आव्रजन के आँकड़े इस प्रकार हैं:
दस वर्ष 1821–30…. 99,000
दस वर्ष 1831–40…. 4,96,000
दस वर्ष 1841–50…. 15,97,000
दस वर्ष 1851–60…. 24,53,000
दस वर्ष 1861–70…. 20,64,000
दस वर्ष 1871–80…. 22,62,000
दस वर्ष 1881–90…. 47,22,000
दस वर्ष 1891–1900…. 37,03,000
नौ वर्ष 1901–1909…. 72,10,000
आव्रजन की वृद्धि असाधारण है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है। 1905–09 के बीच के पाँच वर्षों में अमेरिका आने वाले (केवल संयुक्त राज्य ही संदर्भित है) आव्रजकों की औसत तादाद प्रति वर्ष 10 लाख से अधिक थी।
अमेरिका में आव्रजन करने वालों के मूल निवास–स्थान में परिवर्तन को जानना दिलचस्प होगा। 1880 तक तथाकथित पुराना आव्रजन हावी था : अर्थात् पुरानी सभ्यता वाले देशों जैसे ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी और एक हद तक स्वीडन से लोगों का आव्रजन होता था। यहाँ तक कि 1890 तक कुल आव्रजकों के आधे से भी ज़्यादा लोग ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी के होते थे।
1880 और उसके बाद पूर्वी और दक्षिणी यूरोप से तथा आस्ट्रिया और इटली व रूस से — जिसे नया आव्रजन कहा जाता है — उसमें अविश्वसनीय तेज़ी के साथ वृद्धि हुई। इन देशों से संयुक्त राज्य में आव्रजन करने वाले लोगों की संख्या निम्नलिखित है :
दस वर्ष 1871–80…. 2,01,000
दस वर्ष 1881–90…. 9,27,000
दस वर्ष 1891–1900…. 18,47,000
नौ वर्ष 1901–1909…. 51,27,000
इस प्रकार पुरानी दुनिया के सर्वाधिक पिछड़े देश जिन्होंने सामन्तवाद के अवशेषों को सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में किसी भी अन्य देश से अधिक बनाये रखा है, सभ्यता के अनिवार्य प्रशिक्षण से गुज़र रहे हैं। अमेरिकी पूँजीवाद पिछड़े पूर्वी यूरोप के लाखों–लाख मज़दूरों (जिसमें रूस भी शामिल है, जिसने 1891 से 1900 के बीच 5,94,000 और 1900 से 1909 तक 14,10,000 आव्रजन करने वाले लोग दिये) को उनके अर्द्धसामन्ती परिवेश से खींचकर बाहर निकाल रहा है और उन्हें सर्वहारा की अग्रिम अन्तरराष्ट्रीय सेना की कतारों में खड़ा कर रहा है।
हावरविच, जो पिछले वर्ष अंग्रेजी में प्रकाशित एक अत्यन्त ज्वलन्त पुस्तक के लेखक हैं, कुछ दिलचस्प तथ्य प्रस्तुत करते हैं। अमेरिका आव्रजन करने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी मुख्यतः 1905 की क्रान्ति के बाद हुई (1905 में 10,00,000; 1906 में 12,00,000; 1907 में 14,00,000; 1908 और 1909 में 19,00,000)। इन मज़दूरों ने, जिन्होंने रूस में विभिन्न हड़तालों में भाग लिया था, अमेरिका में जनता को आम हड़ताल की अधिक साहसिक और अधिक आक्रामक भावना से परिचित कराया। अपने सबसे अच्छे मज़दूरों के विदेशों में चले जाने के कारण रूस लगातार पीछे छूटता जा रहा है; अमेरिका पूरी दुनिया की मेहनतक़श आबादी के सबसे कर्मठ और सक्षम शरीरों वाले हिस्सों को लेकर ज़्यादा से ज़्यादा तेज़ी से विकसित हो रहा है।1
जर्मनी, जो अमेरिका के साथ कमोबेश क़दम मिलाता चल रहा है, मज़दूर बाहर भेजने वाले देश से बदलकर एक ऐसा देश बन रहा है जो विदेशों से मज़दूरों को आकर्षित करता है। 1881 से 1890 के दस वर्षों में जर्मनी से अमेरिका जाने वाले मज़दूरों की तादाद 14,53,000 थी लेकिन 1901 से 1909 के नौ वर्षों में यह संख्या गिरकर 3,10,000 तक आ गयी। दूसरी ओर जर्मनी में विदेशी मज़दूरों की संख्या 1910–11 में 6,95,000 और 1911–12 में 7,29,000 थी। मूल देश और पेशे के हिसाब से इन प्रवासी मज़दूरों के आँकड़े आगे दिये गये हैं।
1911–12 में जर्मनी में रोज़गारशुदा विदेशी मज़दूर (हज़ार में)
कृषि उद्योग कुल
रूस से…. 274 34 308
आस्ट्रिया से…. 101 162 263
अन्य देशों से…. 22 135 157
कुल…. 397 331 728
कोई देश जितना ही पिछड़ा होता है उतनी ही बड़ी तादाद में ‘अकुशल’ खेतिहर मज़दूरों की आपूर्ति करता है। विकसित देश सबसे अच्छी तनख़्वाह वाले पेशों को अपने लिए हड़प लेते हैं और अर्द्ध–बर्बर देशों के लिए सबसे बुरे वेतन वाले पेशे छोड़ देते हैं। आमतौर पर यूरोप (“अन्य देशों”) ने जर्मनी को 1,57,000 मज़दूर दिये जिनमें से 80 प्रतिशत से अधिक (1,57,000 में से 1,35,000) औद्योगिक मज़दूर थे। पिछड़े आस्ट्रिया ने औद्योगिक मज़दूरों का केवल 60 प्रतिशत (2,63,000 में से 1,62,000) प्रदान किया। सबसे पिछड़े देश, रूस, ने केवल दस प्रतिशत औद्योगिक मज़दूर (3,08,000 में से 34,000) दिये।
इस तरह, रूस को अपने पिछड़ेपन की सज़ा हर जगह और हर चीज़ में मिलती है। लेकिन बाकी जनसंख्या के साथ यदि तुलना की जाये तो ये रूस के मज़दूर ही हैं जो किसी भी अन्य के मुकाबले पिछड़ेपन और बर्बरता की इस स्थिति से ज़्यादा बाहर निकल रहे हैं, किसी भी अन्य के मुकाबले अपने वतन की इन “खुशनुमा” खूबियों से ज़्यादा लड़ रहे हैं, और किसी भी अन्य के मुकाबले सभी देशों के मज़दूरों के साथ एकजुट होकर मुक्ति के लिए एक अन्तरराष्ट्रीय शक्ति के रूप में ज़्यादा ढल रहे हैं।
पूँजीपति वर्ग एक राष्ट्र के मज़दूरों को दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काता है ताकि वे एकजुट न हो सकें। वर्ग सचेत मज़दूर, जो यह महसूस करते हैं कि पूँजीवाद द्वारा सभी राष्ट्रीय बाधाओं का तोड़ा जाना अवश्यम्भावी और प्रगतिशील क़दम है, पिछड़े देशों के अपने साथी मज़दूरों को जागृत और संगठित करने में मदद की कोशिश कर रहे हैं।
टिप्पणी :
- 1. अमेरिकी महाद्वीप में संयुक्त राज्य के अलावा अन्य देश भी विकसित हो रहे हैं। संयुक्त राज्य में पिछले साल आने वाले प्रवासियों की संख्या लगभग 2,50,000 थी, ब्राजील में 1,70,000 और कनाडा में 2,00,000 थी; यानी पूरे वर्ष में कुल 6,20,000। — लेनिन
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन