टेलर प्रणाली –  मशीन द्वारा आदमी को दास बनाया जाना

लेनिन

पूँजीवाद क्षण भर को भी गतिरुद्ध नहीं रह सकता । उसे सतत आगे बढ़ते रहना चाहिए । हमारे दौर जैसे संकटों के दौर में अधिक से अधिक तीखी बन जानेवाली होड़ उत्पादन की लागत को घटाने की अधिकाधिक नई तरकीबें ईजाद करने की माँग करती है । लेकिन पूँजी का प्रभुत्व इन सारी तरकीबों को मज़दूरों के ऊपर शोषण के उपकरणों में परिवर्तित कर देता है ।

टेलर प्रणाली एक ऐसी ही तरकीब है ।

इसी प्रणाली के पक्षधरों ने हाल में ही अमरीका के अन्दर ऐसे ही तरीके इस्तेमाल किये ।

एक मज़दूर की बाँह से बिजली की बत्ती संलग्न कर दी गई । मज़दूर की गतिविधि के फ़ोटो लिए गए और बत्ती की गतिविधि का अध्ययन किया गया । कुछ गतिविधियाँ “अनावश्यक” पाई गर्इं और मज़दूर को उन्हें बचाने के लिए, यानी आराम के लिए एक क्षण भी खोए बगैर अधिक तीव्रता के साथ काम करने के लिए, मजबूर किया गया ।

नए कारख़ानों की इमारतों का विन्यास इस ढंग से आयोजित किया जाता है कि कारख़ाने को सामग्री पहुँचाने में, उन्हें एक विभाग से दूसरे तक ले जाने में और तैयार उत्पाद को भेजने में क्षण भर भी नष्ट नहीं होता । श्रेष्ठतम मज़दूरों के काम के अध्ययन तथा उसकी तीव्रता–वृद्धि के लिए, यानी मज़दूरों से “जल्दी काम कराने” के लिए व्यवस्थित ढंग से सिनेमा का उपयोग किया जाता है ।

मिसाल के लिए, पूरे दिन के दौरान एक मिस्त्री के काम की फिल्म तैयार की गयी । उसकी गतिविधियों का अध्ययन करने के बाद उसे एक इतना ऊँचा बेंच दिया गया, जिससे मिस्त्री के लिये झुकने में समय नष्ट करने की जरूरत नहीं रह गई । उसे मदद के लिए एक लड़का दिया गया, जिसे मशीन के हर हिस्से को एक निश्चित और अधिकतम दक्षतापूर्ण ढंग से उठाकर देना होता था । थोड़े ही दिनों में मिस्त्री प्रस्तुत किस्म की मशीन को जोड़ खड़ा करने का काम पहले की अपेक्षा चैथाई समय में करने लगा!

श्रम की उत्पादनशीलता में कैसी प्रकाण्ड उपलब्धि है! लेकिन मज़दूर का वेतन चौगुना नहीं, बल्कि अधिक से अधिक डेढ़ गुना ही बढ़ाया जाता है और वह भी सिर्फ थोड़े समय के लिए । ज्योंही मज़दूर नई प्रणाली के आदी हो जाते हैं, त्योंही उनका वेतन घटाकर पहले के स्तर पर पहुँचा दिया जाता है । पूँजीपति प्रकाण्ड मुनाफ़ा हासिल करता है, लेकिन मज़दूर पहले की अपेक्षा चौगुनी अधिक मशक्कत करते हैं और पहले की अपेक्षा चौगुनी तेज़ी से अपने स्नायु–तन्तुओं तथा मांसपेशियों का क्षय करते हैं ।

नए नियुक्त हुए मज़दूरों को कारख़ाने के सिनेमा में ले जाया जाता है, जहाँ उसे काम की “आदर्श” पूर्ति प्रदर्शित की जाती है और उसे उस आदर्श के “स्तर तक पहुँचने” को विवश किया जाता है । एक हफ्ते बाद उसे सिनेमा में खुद उसका काम दिखाया जाता है और “आदर्श” के साथ उसकी तुलना की जाती है ।

ये सारे व्यापक सुधार मज़दूरों के ख़िलाफ किए जाते हैं, क्योंकि वे मज़दूरों के और अधिक उत्पीड़न तथा शोषण का कारण बनते हैं । इसके अलावा श्रम का यह बुद्धिसंगत तथा कार्यक्षम संगठन प्रत्येक कारख़ाने तक ही सीमित रहता है ।

स्वभावत: विचार पैदा होता है कि पूरे समाज में श्रम के संगठन की बाबत क्या हो रहा है ? पूरे के पूरे पूँजीवादी उत्पादन के असंगठित तथा विश्रृंखलित चरित्र के कारण इस समय श्रम की कितनी विपुल मात्रा नष्ट होती है! बाजार की आवश्यकताओं के अज्ञात होने की सूरत में सैकड़ों–खरीददारों और दलालों के हाथ से होकर कच्चे माल के कारख़ाने तक पहुँचने में कितना समय नष्ट होता है! केवल समय ही नहीं, बल्कि असल उत्पाद भी नष्ट और क्षतिग्रस्त होते हैं । फिर ढेरों ऐसे छोटे दलालों की मार्फत उपभोक्ताओं तक तैयार उत्पादों को पहुँचाने में नष्ट होनेवाले समय और श्रम की बाबत क्या कहा जाए, जो भी अपने ग्राहकों की जरूरतें नहीं जान सकते और न केवल ढेरों अनावश्क दौड़धूप करते हैं, बल्कि ढेरों अनावश्क खरीददारियाँ, यात्राएँ इत्यादि भी करते हैं!

पूँजी कारख़ाने के भीतर ही मज़दूरों के शोषण तथा अपने मुनाफे में वृद्धि के प्रयोजन से श्रम का संगठन और विनियोजन करती है । लेकिन समग्र, सामाजिक उत्पादन में विश्रृंखलता कायम है और बढ़ रही है, जिसके फलस्वरूप जब संचरित मालों को खरीददार नहीं मिल पाते, तब संकट पैदा होता है और रोज़गार न पा सकने के कारण लाखों मज़दूर भूखों मरते हैं ।

टेलर प्रणाली अपने प्रवर्तकों के अनजाने और अनचाहे ही उस समय के लिए ज़मीन तैयार कर रही है, जब सर्वहारा वर्ग सम्पूर्ण सामाजिक उत्पादन को अपने हाथ में ले लेगा और सम्पूर्ण सामाजिक श्रम के समुचित संगठन तथा विनियोजन के लिए अपनी मज़दूर–कमिटियाँ नियुक्त करेगा । बड़े पैमाने का उत्पादन, मशीनें, रेलवे, टेलीफोन,ये सारी सुविधाएँ मज़दूर–कमेटियाँ मज़दूर–यूनियनों की सहायता से पूँजी की गुलामी से सामाजिक श्रम के मुक्त हो जाने पर उसके युक्तिसंगत संगठन के इन उसूलों को लागू करने में समर्थ होंगी ।

(व्ला.इ.लेनिन, संग्रहीत रचनाएँ, पाँचवाँ रूसी संस्करण, खण्ड 24, पृ– 369–371)


 

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