कथित आज़ादी औरतों की
आनन्द, बादली, दिल्ली
हमारे परम मित्र विशाल दिल के बहुत अच्छे हैं। बोल-चाल का लहज़ा भी आपका नायाब है। राह चलता व्यक्ति भी आपकी मीठी बोली सुनकर दोस्ती करने के लिए आतुर रहते हैं। आप व्यवहार कुशल व दिल से सज्जन व्यक्ति तो हैं ही, साथ ही दुनिया का शायद ही ऐसा कोई ग़लत काम, बुरी आदत व नशा खुराक बची होगी जो कि आपके सम्पर्क में न आयी हो। ये तारीफ़ तो महाशय अपने मुँह से ही करते है। बस कभी-कभी शराब पीते है। वह सुलेशन नियमित सूँघते है। ये तारीफ़ आपने नहीं बल्कि कष्ट झेल रही आपकी पत्नी ने बताई है। ख़ैर छोड़िये ये हमारा मुद्दा नहीं है। अब इतना तो हमने मान लिया कि आप दिल के बहुत अच्छे इन्सान है। साथ ही आप सिर्फ़ एक गाँव के पिछड़े व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि नई जनरेशन को देखते हुए, एक क़दम आगे बढ़े हुए व्यक्ति हैं। आप सभ्य समाज के एक सभ्य नागरिक हैं। और आप बातें भी आज़ादी की, स्वतंत्रता की, तरक्की कर रहे देश में महिलाओं की भूमिका की व महिला पुरुष समानता की करते हैं। अरे यार वो इन्सान ही क्या जो अपनी महिलाओं को चूल्हा, बरतन और बच्चों में ही क़ैद करके रखे। अरे दुनिया अब चाँद पर पहुँच गयी। राजनीति, शिक्षा, उद्योग, वाणिज्य, इतिहास, विज्ञान की खोज, समाज की सेवा हर क्षेत्र में महिलाओं की जबर्दस्त दख़ल है। आज तो वो इन्सान पागल ही होगा, जो अपनी पत्नी को चूल्हे, चौके में ही क़ैद करके रखता है। मैं अपनी पत्नी को क़ैद में नहीं रखता मैं तो मानता हूँ, मैं भी इन्सान हूँ। और वो भी एक इन्सान है। आखि़र उसकी भी अपनी इच्छाएँ हैं उसको पूरा अधिकार है। अपने दोस्त बनाने का, अपने शौक पूरा करने का और खुश रहने का, हम दोनों ही फैक्ट्री में काम करते है। हम दोनों मिलकर फैसला लेते हैं। घर के सभी काम में हम दोनों की बराबर की हिस्सेदारी होती है। और हम दोनों अपनी ज़िन्दगी से खुश हैं।
हाँ ये बात तो सच है कि विशाल जी की पत्नी ‘रेनूका’ फैक्ट्री जाती हैं। और ये भी फैक्ट्री जाते हैं। इन्होंने रेनूका जी से (जो इनकी रिश्ते में ही कोई रिश्ता है) प्रेम विवाह किया है। और इनके एक बच्ची भी है। प्रीति जो कि 5 साल की है। रेनू जी के मुँह से इन महाशय की कुछ अलग ही कहानी सुन रखी है।
ये सुलेशन व शराब का सेवन नियमित करते हैं। फैक्ट्री में कारीगर हैं। आठ हज़ार तनख्वाह पाते हैं। बहुत ज़्यादा हुआ तो महीने में पाँच सौ रु. देते हैं। किसी महीने में तो वह भी नहीं बचता। घर तो मेरी तनख्वाह से चलता है। बच्ची परवरिश व भविष्य के लिए इनसे झूठ बोलकर 500 रु. बिटिया के नाम बीमा कर रखी हूँ। एक-एक पल का तो हिसाब माँगते है। किसी से अगर फोन पर भी बतियाओ तो पूरा ब्यौरा देना पड़ता है। कौन है, कौन सहेली आदि। फैक्ट्री में काम करने के बाद घर का सारा काम भी ख़ुद ही करती हूँ। बाबूजी बारहो मास चौबीसों घण्टे नशे में रहते हैं। कभी नशा कम पड़ जाता है। तो जबरन मेरा पैसा भी खर्च कर देते हैं।
आज कितना भी प्रगतिशील विचारों वाला व्यक्ति क्यों न हो वो सामाजिक परिवेश की जड़ता को अकेले नहीं तोड़ सकता और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि औरत वर्ग सिर्फ़ पुरुष वर्ग की खोखली बातों से नहीं आज़ादी के लिए तो महिलाओं को ही एक क़दम आगे बढ़कर दुनिया की जानकारी हासिल करनी होगी। और अपनी मुक्ति के लिए इस समाज से संघर्ष चलाना होगा। और दूसरी बात यह है कि महिला वर्ग के साथ ही पुरुष वर्ग का यह पहला कर्तव्य बनता है कि वो अपनी माँ-बहन, पत्नी या बेटी को शिक्षित करें। उनको बराबरी का दर्जा दे। उनको समाज में गर्व के साथ जीना सिखाये, उनको साहसी बनाये। क्योंकि अगर आप अपने महिला वर्ग के साथ अन्याय, अत्याचार करेंगे तो समाज में आप भी कभी बराबरी का दर्जा नहीं पा सकेंगे क्योंकि समाज के निर्माण का आधार महिलायें ही हैं। एक इंसान को जन्म से लेकर लालन-पालन से लेकर बड़ा होने तक महिलाओं की प्रमुख भूमिका है। अगर महिलायें ही दिमाग़ी रूप से ग़ुलाम रहेंगी तो वो अपने बच्चों की आज़ादी, स्वतन्त्रता व बराबरी का पाठ कहाँ से पढ़ा पायेंगी। दोस्तों आज पूँजीपति भी यही चाहता है कि मज़दूर मेरा ग़ुलाम बनकर रहे। कभी भी हक़-अधिकार, समानता व बराबरी की बात न करे और आज की स्थिति को देखते हुए पूँजीपति वर्ग की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं है।
इसलिए साथियों आज इस कूपमण्डूकता के कवच को उतार फेंकिए समानता व बराबरी की इस लड़ाई में एक क़दम आगे बढ़िये। आपस में न लड़कर अपने असली दुश्मन पूँजीपति वर्ग से लड़ने की तैयारी में अपने आप को मज़दूर वर्ग के रूप में एकजुट करिये।
मज़दूर बिगुल, जून 2013
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन