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सम्पादकीय
लोकसभा चुनाव 1996 और उसके बाद : सरकार चाहे जिसकी बने, नई आर्थिक नीतियां जारी रहेंगी
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
सिर चढ़कर बोलती सच्चाई : मज़दूरों की बढ़ती लूट, घटती पगार
श्रम कानून
मज़दूरों के अधिकारों पर एक नये हमले की तैयारी में जुटा है पूँजीपति वर्ग
विशेष लेख / रिपोर्ट
गांवों में पूँजी की घुसपैठ की कहानी : एक उजड़े हुए मज़दूर की जुबानी – हमारे गांव में मशीन आयी और हम भागे शहर की ओर / शिवरतन, दिल्ली
संघर्षरत जनता
बोलिविया के मेहनतकश बग़ावत की राह पर
कारखाना इलाक़ों से
हर शहर, हर फैक्ट्री की एक ही कहानी : मालिकान बढ़ा रहे हैं लूट और शोषण, छीन रहे हैं अधिकार, मज़दूर बिखर रहे हैं, नेताओं के हाथों हैं लाचार
मज़दूर बस्तियों से
बेकारी के शिकार बदहाल मज़दूरों की खुदकुशी और बीमारियों से मौत का जिम्मेदार कौन?
कला-साहित्य
कविता – हम राज करें, तुम राम भजो! / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
कविता – वे और तुम / धनश्याम, वाराणसी
आपस की बात
न्यायपालिका के ‘असली चेहरे’ को भी उजागर करें / संतोष शर्मा
सम्पादक की ओर से : मज़दूर साथियों से चन्द दो टूक बातें – एक सीधा आह्वान
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन