बोलते आँकड़े चीख़ती सच्चाइयाँ
- पूरी दुनिया में कम से कम 12.3 मिलियन लोगों से बँधुआ मज़दूरी करायी जाती है।
- हर साल पूरी दुनिया में 20 लाख लोग काम के दौरान दुर्घटनाओं या पेशागत रोगों के कारण मारे जाते हैं।
- दुनिया की केवल 20 प्रतिशत आबादी को उचित सामाजिक सुरक्षा प्राप्त है और आधी से अधिक आबादी को कोई सुरक्षा नहीं है।
- मौजूदा समय में पूरी दुनिया में 20 करोड़ से अधिक बच्चे बाल मज़दूरी कर रहे हैं, जो उनके मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को नुकसान पहुँचा रहा है।
- 18 वर्षों के नवउदारवादी दौर के बाद, इक्कीसवीं सदी के भारत की ख़ासियत यह है कि यह अरबपतियों की कुल दौलत के लिहाज़ से अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरे नम्बर पर है, लेकिन बेघरों, कुपोषितों, भूखों और अनपढ़ों की तादाद के लिहाज़ से भी दुनिया में पहले नम्बर पर है। ऐश्वर्य-समृद्धि की चकाचौंध भरी दुनिया का दूसरा अन्धकारमय पहलू यह है कि (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार) देश की 18 करोड़ आबादी झुग्गियों में रहती है और 18 करोड़ आबादी फुटपाथों पर सोती है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के ही अनुसार, ग्रामीण भारत में प्रतिदिन औसत उपभोग मात्र 19 रुपये और शहरी भारत में 30 रुपये है। गाँवों की दस प्रतिशत आबादी 9 रुपये रोज़ पर गुज़ारा करती है। ‘नेशनल कमीशन फॉर इण्टर- प्राइजेज़ इन द अनऑर्गेनाइज्ड़ सेक्टर’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2004-05 में करीब 84 करोड़ लोग (यानी आबादी का 77 फीसदी हिस्सा) रोज़ाना 20 रुपये से भी कम पर गुज़र कर रहे थे । इनमें से 22 फीसदी लोग रोज़ाना 11.60 रुपये की आमदनी पर (यानी सरकारी ‘ग़रीब रेखा’ के नीचे), 19 फीसदी लोग रोज़ाना 11.60 रुपये से 15 रुपये के बीच की आमदनी पर और 36 फीसदी लोग रोज़ाना 15 से 20 रुपये के बीच की आमदनी पर गुज़ारा कर रहे थे।
- भारत में औसत आयु चीन के मुकाबले 7 वर्ष और श्रीलंका के मुकाबले 11 वर्ष कम है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर चीन के मुकाबले तीन गुना, श्रीलंका के मुकाबले लगभग 6 गुना और यहाँ तक कि बांग्लादेश और नेपाल से भी ज्यादा है। भारतीय बच्चों में से तकरीबन आधों का वज़न ज़रूरत से कम है और वे कुपोषण से ग्रस्त हैं। करीब 60 फीसदी बच्चे ख़ून की कमी से ग्रस्त हैं और 74 फीसदी नवजातों में ख़ून की कमी होती है। प्रतिदिन लगभग 9 हज़ार भारतीय बच्चे भूख, कुपोषण और कुपोषणजनित बीमारियों से मरते हैं। 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के 50 फीसदी मामलों का कारण कुपोषण होता है। 5 वर्ष से कम आयु के 5 करोड़ भारतीय बच्चे गम्भीर कुपोषण के शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 63 फीसदी भारतीय बच्चे प्राय: भूखे सोते हैं और 60 फीसदी कुपोषणग्रस्त होते हैं। 23 फीसदी बच्चे जन्म से कमज़ोर और बीमार होते हैं। एक हज़ार नवजात शिशुओं में से 60 एक वर्ष के भीतर मर जाते हैं। लगभग दस करोड़ बच्चे होटलों में प्लेटें धोने, मूँगफली बेचने आदि का काम करते हैं।
- 2001-2002 में भारत की केन्द्र और राज्य सरकारें सकल घरेलू उत्पाद का 2.98 ही शिक्षा पर ख़र्च कर रही थीं, जो 2007-2008 तक घटकर 2.91 रह गया।
- भारत की वित्तीय राजधानी मुम्बई में, 60 प्रतिशत से अधिक आबादी झुग्गी-झोंपड़ियों में रहती है। जहाँ वे अमानवीय स्थितियों में रहती हैं और स्वास्थ्य की स्थिति ग्रामीण क्षत्रों के जैसी है।
- मुम्बई के 40 प्रतिशत बच्चों का वज़न सामान्य से कम है, यानी उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिलता।
- 2007 में स्तर 4 के कुपोषण के कारण भारी संख्या में मुम्बई की अनेक झुग्गी-बस्तियों के बच्चों को अस्पताल में भरती कराना पड़ा था।
- वर्ष 2009 में प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन 2 यूएस डॉलर से कम पर गुज़ारा करने वालों की संख्या बढ़कर एक अरब से अधिक, या दुनिया में रोज़गार प्राप्त लोगों की संख्या का 45 प्रतिशत हो जायेगी। 2005 में आबादी का 42 प्रतिशत हिस्सा 1.25 अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन की अन्तरराष्ट्रीय ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहा था।
- अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार वर्ष 2009 में 210 मिलियन से 239 मिलियन तक की संख्या में बेरोज़गार होंगे।
- 2007 से लेकर अब तक बेरोज़गारों में 39 और 59 मिलियन लोगों की बढ़ोत्तरी हुई है।
- इराक में अमेरिकी और मित्र देशों की सेना के हमले और कब्ज़े से लेकर अभी तक 1,331,578 यानी लगभग सवा करोड़ इराकियों की मौत हो चुकी है।
- अमेरिकी युद्ध और इराक पर कब्ज़े के बाद से अब तक अमेरिका 676,922,100,934 डॉलर की राशि ख़र्च कर चुका है।
- दुनिया की 5.5 अरब की जनसंख्या में से 3 अरब ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। यह संख्या पूरी दुनिया की जनसंख्या की लगभग आधी है।
- 1997 से 2006 तक भारत सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 4 प्रतिशत ख़र्च किया।
- वर्ष 2008 में विश्वभर में मज़दूरों की माँगों के लिए लड़नेवाले 78 ट्रेडयूनियन नेताओं की हत्या हुई।
- जहाँ विकसित देशों के लोग औसतन अपनी कुल आमदनी का 10 से 20 फीसदी भोजन पर ख़र्च करते हैं, वहीं भारत के लोग अपनी कुल कमाई का औसतन करीब 55 फीसदी हिस्सा भोजन पर ख़र्च करते हैं। लेकिन कम आय वर्ग के भारतीय नागरिक अपनी आमदनी का 70 प्रतिशत भाग भोजन पर ख़र्च करते हैं, और फिर भी उसे दो जून न तो भरपेट भोजन मिलता है, न ही पोषणयुक्त भोजन। औसतन एक आदमी को प्रतिदिन 50 ग्राम दाल चाहिए, लेकिन भारत की नीचे की 30 फीसदी आबादी को औसतन 13 ग्राम ही नसीब हो पाता है।
- देश के दस सर्वोच्च खरबपति हर मिनट दो करोड़ रुपये बनाते हैं। अकेले मुकेश अम्बानी हर मिनट 40 लाख रुपये बनाते हैं। दुनिया के शीर्षस्थ 5 महाधनिकों में से दो भारतीय हैं। ‘फोर्ब्स’ पत्रिका द्वारा तैयार दुनिया के अरबपतियों की सूची में 2004 में 9 भारतीय शामिल थे। यह संख्या 2007 तक बढ़कर 40 हो गयी। भारत से बहुत अधिक धनी देश जापान में अरबपतियों की तादाद 2007 में महज़ 24, फ्रांस में 14 और इटली में भी 14 थी। चीन में तेज़ आर्थिक विकास और तेज़ी से बढ़ती ग़ैरबराबरी के बावजूद 2007 में वहाँ कुल 17 अरबपति ही थे। भारत के अरबपतियों की दौलत महज़ एक साल में, 2006-07 के दौरान 106 अरब डॉलर से बढ़कर 170 अरब डॉलर हो गयी। अर्थशास्त्री अमित भादुड़ी (फिलहाल, अगस्त-सितम्बर 2008) के अनुसार, अरबपतियों की दौलत में 60 फीसदी बढ़ोत्तरी इसलिए मुमकिन हुई कि राज्य और केन्द्र सरकारों ने खनन, उद्योगीकरण और विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए ”सार्वजनिक उद्देश्य” के नाम पर बड़े पैमाने पर ज़मीन निजी कारपोरेशनों को सौंप दी। कारपोरेट मुनाफे के ऑंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2000-01 के बाद से अब तक सकल घरेलू उत्पाद में हर अतिरिक्त 1 फीसदी की बढ़ोत्तरी से कारपोरेट मुनाफों में 2.5 फीसदी की बढ़त हुई है। आज़ादी के बाद के छ: दशकों का बैलेंसशीट यह है कि ऊपर के 22 एकाधिकारी पूँजीपति घरानों की परिसम्पत्ति में 500 गुने से भी अधिक का इज़ाफा हुआ है। इन घरानों में वे बहुराष्ट्रीय निगम शामिल नहीं हैं जिनके शुद्ध मुनाफे में दोगुना-चौगुना नहीं बल्कि औसतन सैकड़ों गुना की वृद्धि हुई है।
- विगत कुछ वर्षों के दौरान भारत करोड़पतियों की संख्या में वृद्धि दर की दृष्टि से पूरी दुनिया में वियतनाम के बाद दूसरे स्थान पर रहा है। दिसम्बर 2007 में भारत में 1 लाख 23 हज़ार करोड़पति थे, जो एक वर्ष पूर्व के मुकाबले 23 प्रतिशत अधिक था। करोड़पति वृद्धिद्दर के मामले में तीसरे स्थान पर चीन आता है। ज्ञातव्य है कि बाज़ार समाजवाद के नाम पर चीन और वियतनाम में भी नवउदारवाद का घटाटोप छाया है, जिसके चलते वहाँ भी सामाजिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया तेज़ गति से जारी है।
बिगुल, जून 2009
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन
ये आंकडे हमलोगों को तो सोंचने को मजबूर करते हैं .. पर जिन्हें सोचना चाहिए .. उन्हें परवाह ही नहीं।