चीनी क्रान्ति के महान नेता माओ त्से-तुङ के जन्मदिवस (26 दिसम्बर) के अवसर पर
माओ त्से-तुङ सिर्फ चीनी जनता के लम्बे क्रान्तिकारी संघर्ष के बाद लोक गणराज्य के संस्थापक और समाजवाद के निर्माता ही नहीं थे, मार्क्स और लेनिन के बाद वे सर्वहारा क्रान्ति के सबसे बड़े सिद्धान्तकार और हमारे समय पर अमिट छाप छोड़ने वाले एक महानतम क्रान्तिकारी थे।
माओ-त्से-तुङ ने चीन में रूस से अलग समाजवाद के निर्माण की नयी राह चुनी और उद्योगों के साथ ही कृषि के समाजवादी विकास पर तथा गाँवों और शहरों का अन्तर मिटाने पर भी विशेष ध्यान दिया। आम जन की सर्जनात्मकता और पहलकदमी के दम पर बिना किसी बाहरी मदद के साम्राज्यवादी घेरेबन्दी के बीच उन्होंने अकाल, भुखमरी और अफीमचियों के देश चीन में विज्ञान और तकनोलाजी के विकास के नये कीर्तिमान स्थापित कर दिये, शिक्षा और स्वास्थ्य को समान रूप से सर्वसुलभ बना दिया, उद्योगों के निजी स्वामित्व को समाप्त करके उन्हें सर्वहारा राज्य के स्वामित्व में सौंप दिया और कृषि के क्षेत्र में कम्यूनों की स्थापना की। इस अभूतपूर्व सामाजिक प्रगति से चकित-विस्मित पश्चिमी अध्येताओं तक ने चीन की सामाजिक-आर्थिक प्रगति और समतामूलक सामाजिक ढाँचे पर सैकड़ों पुस्तकें लिखीं।
स्तालिन की मृत्यु के बाद सोवियत संघ में जब ख्रुश्चेव के नेतृत्व में एक नये किस्म का पूँजीपति वर्ग सत्तासीन हो गया तो उसके नकली कम्युनिज़्म के खि़लाफ़ संघर्ष चलाते हुए माओ ने मार्क्सवाद को और आगे विकसित किया। पहली बार माओ ने रूस और चीन के अनुभवों के आधार पर यह स्पष्ट किया कि समाजवाद के भीतर से पैदा होने वाले पूँजीवादी तत्व किस प्रकार मज़बूत होकर सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं। उन्होंने इन तत्वों के पैदा होने के आधारों को नष्ट करने के लिए सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति का सिद्धान्त प्रस्तुत किया और चीन में 1966 से 1976 तक इसे सामाजिक प्रयोग में भी उतारा। यह माओ त्से-तुङ का महानतम सैद्धान्तिक अवदान है।
1976 में माओ की मृत्यु के बाद चीन में भी देड़ सियाओ-पिङ के नेतृत्व में पूँजीवादी पथगामी सत्ता पर क़ाबिज़ होने में कामयाब हो गये, क्योंकि पिछड़े हुए चीनी समाज के छोटी-छोटी निजी मिलकियतों वाले ढाँचे में समाजवाद आने के बाद भी पूँजीवाद का मज़बूत आधार और बीज मौजूद थे। लेकिन पूँजीवाद की राह पर नंगे होकर दौड़ रहे चीन के नये पूँजीवादी सत्ताधारी आज भी चैन की साँस नहीं ले सके हैं। माओ की विरासत को लेकर चलने वाले लोग आज भी वहाँ मौजूद हैं और संघर्षरत हैं।
1962 में माओ त्से-तुङ ने भविष्य के बारे में जो आंकलन प्रस्तुत किया था, ऐतिहासिक रूप से वह आज भी सही है: “अब से लेकर अगले पचास से सौ वर्षों तक का युग एक ऐसा महान युग होगा जिसमें दुनिया की सामाजिक व्यवस्था बुनियादी तौर पर बदल जायेगी। यह एक ऐसा भूकम्पकारी युग होगा जिसकी तुलना इतिहास के पिछले किसी भी युग से नहीं की जा सकेगी। एक ऐसे युग में रहते हुए हमें उन महान संघर्षों में जूझने के लिए तैयार रहना चाहिए, जो अपनी विशेषताओं में अतीत के तमाम संघर्षों से कई मायनों में भिन्न होंगे।”
कम्युनिस्टों को हर समय सच्चाई का पक्षपोषण करने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि हर सच्चाई जनता के हित में होती है। कम्युनिस्टों को हर समय अपनी गलतियाँ सुधारने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि गलतियाँ जनता के हितों के विरुद्ध होती हैं।
– माओ त्से-तुङ, ‘‘मिलीजुली सरकार के बारे में’’ (24 अप्रैल 1945)
कम्युनिस्टों को चाहिए कि वे सबसे ज्यादा दूरदर्शी बनें; आत्म-बलिदान के लिए सबसे ज्यादा तत्पर रहें, सबसे ज्यादा दृढ़ बनें, तथा स्थिति को आँकने में पूर्वधारणाओं से तनिक भी काम न लें, और बहुसंख्यक आम जनता पर भरोसा रखें और उसका समर्थन प्राप्त करें।
– माओ त्से-तुङ, ‘‘जापानी-आक्रमण-विरोधी काल में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के कर्तव्य’’ (3 मई 1937)
हम कम्युनिस्ट बीज के समान होते हैं और जनता भूमि के समान होती है। हम लोग जहाँ कहीं भी जायें, वहाँ जनता के साथ एकता क़ायम करें, उसमें अपनी जड़ें जमा लें, और उसके बीच फलें-फूलें।
– माओ त्से-तुङ, ‘‘छुङकिङ समझौता-वार्ता के बारे में’’ (17 अक्टूबर 1945)
हम कम्युनिस्टों में यह क्षमता अवश्य होनी चाहिए कि हम सभी बातों में अपने को आम जनता के साथ एकरूप कर सकें। अगर हमारे पार्टी-सदस्य बन्द कमरे में बैठे रहकर सारी ज़िन्दगी गुज़ार दें और दुनिया का सामना करने व तूफ़ान का मुक़ाबला करने के लिए कभी बाहर ही न निकलें, तो चीनी जनता को उसे क्या फ़ायदा होगा? रत्तीभर भी नहीं, और इस तरह के पार्टी-सदस्य हमें नहीं चाहिए। हम कम्युनिस्टों को दुनिया का सामना करना चाहिए और तूफ़ान का मुक़ाबला करना चाहिए; यह दुनिया जन-संघर्षों की विशाल दुनिया है तथा यह तूफ़ान जन-संघर्षों का ज़बरदस्त तूफ़ान है।
– माओ त्से-तुङ, ‘‘संगठित हो जाओ !’’ (29 नवम्बर 1943)
एक कम्युनिस्ट को हठधर्मी नहीं होना चाहिए, और न ही उसे दूसरों पर रोब जमाने की कोशिश करनी चाहिए, उसे ऐसा हरगिज़ नहीं समझना चाहिए कि वह खुद तो हर चीज़ का माहिर है और दूसरों को कतई कुछ भी नहीं आता; उसे अपने को अन्दर बन्द नहीं कर लेना चाहिए, या अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने तथा शेखी बघारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, और न ही दूसरों पर सवारी गाँठने की कोशिश करनी चाहिए।
–माओ त्से-तुङ, ‘‘शेनशी-कानसू-निङया सीमान्त क्षेत्र की प्रतिनिधि-सभा में भाषण’’ (21 नवम्बर 1941)
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन