कनाडा की खनन कम्पनियों का लूटतन्त्र और पूँजीपतियों, सरकार तथा एनजीओ का गँठजोड़
अमृतपाल
गत 13 मई को तुर्की में एक कोयला खदान में विस्फोट होने से 300 से ज़्यादा मज़दूरों की मौत हो गयी। पूँजीपतियों की मुनाफ़े की हवस तथा सरकारों द्वारा पूँजीपतियों का सरेआम साथ देने के चलते विश्वभर में होने वाले ऐसे क़त्लेआमों में यह न तो पहला था और न ही आखि़री। चीन में हर साल कई हज़ार मज़दूर खदानों में मारे जाते हैं, तुर्की में ही 13,000 मज़दूर हर साल किसी न किसी रूप में खदानों में होने वाली दुर्घटनाओं” से ज़ख़्मी होते हैं। लेकिन क्रूरता का यह तो सिर्फ़ एक पक्ष ही है। खदान कम्पनियाँ पूरी दुनिया में खनन जारी रखने तथा नयी जगहों पर खनन करने के लिए स्थानीय लोगों के विरोध को बेरहमी से कुचलती हैं और पर्यावरण को भयंकर नुक़सान पहुँचाती हैं। इस काम में सबसे ज़्यादा कुख्यात कनाडा की खदान कम्पनियाँ हैं। पूरे विश्व में खनन उद्योग में लगी कम्पनियों में से 75 प्रतिशत का मुख्यालय कनाडा के किसी न किसी बड़े शहर में है। कनाडा में पंजीकृत खदान कम्पनियों के कारनामों में जनसंघर्षों के नेताओं का क़त्ल, औरतों से सामूहिक बलात्कार तथा आम लोगों के क़त्लेआम शामिल हैं।
– कनाडा की खदान कम्पनी ‘हडबेअ मिनरल्स’ के सुरक्षागार्डों ने 2009 में लातिन अमेरिका के देश ग्वाटेमाला में अडोल्फ़ो चामन का क़त्ल कर दिया। वे कम्पनी द्वारा पीने के पानी के स्रोतों को प्रदूषित करने के ख़िलाफ़ स्थानीय लोगों के संघर्ष के नेता थे। इसी कम्पनी ने 2007 में ग्वाटेमाला में ही एक ज़मीन का टुकड़ा क़ब्ज़ाने के लिए 11 स्थानीय औरतों का सामूहिक बलात्कार करवाया।
– सोने के खनन की सबसे बड़ी कम्पनी ‘बारिक गोल्ड’ ने वर्ष 2011 में तंजानिया में खनन का विरोध कर रहे स्थानीय लोगों तथा कार्यकर्ताओं के कई क़त्लेआमों को अंजाम दिया है। एक और अफ्रीकी देश पापुआ न्यू गिनी में इसी कम्पनी के सुरक्षागार्डों तथा खदान पर तैनात स्थानीय पुलिस ने सालोंसाल सैकड़ों स्थानीय औरतों का बलात्कार किया।
– कनाडा के वैंकूवर स्थित ‘चाइना गोल्ड इण्टरनेशनल’ कम्पनी की चीन में स्थित खदान में 83 मज़दूर खदान दुर्घटना” में मारे गये, क्योंकि कम्पनी ने खदान में फँसे लोगों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन होने पर उनको दबाने के लिए 5000 की बड़ी संख्या में चीनी फ़ौजी भेजे गये।
– वैंकूवर स्थित एक और कम्पनी ‘पेसिफ़िक रिम’ लातिन अमेरिका के ग़रीब देश अल सल्वाडोर से 31.5 करोड़ डॉलर जुर्माना वसूल करने के लिए मुकदमा किये हुए है। अल सल्वाडोर की सरकार का कसूर यह है कि उसने इस कम्पनी को लेम्पा नदी के पास खनन की अनुमति देने से मना कर दिया, क्योंकि यह नदी देश के 60 प्रतिशत लोगों के पीने का पानी का एकमात्र स्रोत है और खनन से यह नदी प्रदूषित हो जाती।
– 2005 में ‘अनविल माइनिंग लिमिटेड’ ने कांगो की सेना को साजोसामान तथा ट्रांसपोर्ट में मदद की, इसी मदद के चलते कांगो की सेना ने कांगो के एक तटीय शहर किल्वा में हज़ारों लोगों का क़त्लेआम किया।
यह तो सिर्फ़ चन्द उदाहरण हैं, कनाडा की कम्पनियों द्वारा मानवाधिकारों को ठेंगा दिखाने तथा पर्यावरण को तबाह करने की कथा बहुत लम्बी है। 2009 में इन कम्पनियों के कुकर्मों का बोझ इतना भारी हो गया कि कनाडा की सरकार को रिपोर्ट तैयार करने तथा क़ानून बनाने, स्थानीय लोगों की भलाई के प्रोग्राम बनाने जैसे पाखण्ड करने पर मजबूर होना पड़ा।
कनाडा में पंजीकृत लगभग 1300 खदान कम्पनियों में से बहुत सी कम्पनियों का मालिकाना कनाडा के नागरिकों के पास नहीं है, लेकिन फिर भी ज़्यादातर खदान कम्पनियाँ कनाडा को अपना मुख्य ठिकाना बनाती हैं, इसका कोई कारण तो होगा ही। असल में कनाडा की सरकार खदान कम्पनियों पर कनाडा में पंजीकरण करवाने के लिए कोई सख्त शर्त नहीं लगाती। मसलन ये कम्पनियाँ विदेशों में अपने कारोबार के दौरान क्या करती हैं, इसमें कनाडा की सरकार बिल्कुल दख़ल नहीं देती। लेकिन अगर किसी देश की सरकार कनाडा में पंजीकृत किसी खदान कम्पनी को अपने यहाँ खनन करने से रोकती है, उस पर श्रम क़ानून लागू करने की कोशिश करती है तो कनाडा के राजदूत तथा कनाडा की सरकार उस देश की सरकार पर दबाव डालती है, उसे मजबूर करती है कि वह ऐसा न करे, या फिर स्थानीय सरकार तथा कम्पनी में समझौता करवाती है। इसके अलावा, जनविरोध से निपटने के लिए स्थानीय सरकार को कम्पनी को पुलिस तथा अर्धसैनिक बल मुहैया करवाने के लिए राजी करती है। कनाडा में पंजीकृत कम्पनी अन्य देशों में टैक्स देती है या नहीं, इससे भी कनाडा सरकार को कोई लेना-देना नहीं। कनाडा की सरकार ख़ुद भी खदान कम्पनियों को क़ानूनों के झंझट से मुक्त रखती है। अब अगर ऐसी सरकार मिले तो कोई पूँजीपति कनाडा क्यों नहीं जाना चाहेगा। अब जब कनाडा की खदान कम्पनियों के कुकर्मों की पोल खुलने लगी है (जिसका उनके बिज़नेस पर बुरा असर पड़ सकता है), तो कनाडा की सरकार उनकी छवि सँवारने तथा उनको “सामाजिक तौर पर ज़िम्मेदार कारपोरेट”” दिखाने के लिए जनता की जेबों से निकाले गये टैक्स के पैसों को कम्पनियों के हितों पर कुर्बान कर रही है।
कुछ साल पहले कनाडा की सरकार ने “पहलक़दमी”” दिखाते हुए खदान कम्पनियों और कई सारी एनजीओ (ग़ैर-सरकारी संस्था) को मिलकर काम करने के लिए राजी किया। ‘वर्ल्ड विज़न’, ‘प्लान कनाडा’, ‘सेव द चिल्ड्रेन कनाडा’ आदि जैसी एनजीओ अब कनाडा की खदान कम्पनियों के इलाक़ों में स्थानीय लोगों की “भलाई”” तथा ग़रीबी “दूर करने”” का काम कर रही हैं और दुनिया में कनाडा की खदान कम्पनियों के खूँखार रक्त-सने चेहरों पर “सामाजिक ज़िम्मेदारी”” का नक़ाब फिट करने के काम में व्यस्त हैं। मगर एनजीओ द्वारा किये जाने वाले “समाज भलाई”” के कामों का ख़र्चा कनाडा की सरकार दे रही है। टैक्सों से इकट्ठा हुए जनता के पैसे में से करोड़ों डॉलर इन एनजीओ को दिये जा रहे हैं जबकि मुनाफ़ा कम्पनियाँ पीट रही हैं। और तो और, सरकार ने नियम बनाया है कि उसी एनजीओ को सरकारी “सहायता”” मिलेगी जो किसी न किसी खदान कम्पनी के साथ मिलकर काम करेगी। अभी पिछले ही साल, खनन से सम्बन्धित तकनीक को विकसित करने की ख़ातिर कनाडा की सरकार ने 2.5 करोड़ डॉलर की लागत से एक तकनीकी संस्था स्थापित की है। यहाँ विकसित हुई तकनीक से मुनाफ़ा तो कम्पनियाँ कमायेंगी, मगर इस संस्था को खड़ा करने का ख़र्चा जनता के सिर पर पड़ा है। और यही सरकार, लेबर यूनियनों तथा जनतक स्वास्थ्य सुविधा के ढाँचे पर लगातार हमले कर रही है कि सभी को अच्छी सुविधाएँ देने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है।
इस तरह सिर्फ़ भारत ही नहीं पूरी दुनिया की सरकारें पूँजीपतियों की सेवा में लगी रहती हैं। सरकारें किस तरह पूँजीपतियों की ‘मैनेजिंग कमेटी’ की तरह काम करती हैं, कनाडा की खदान कम्पनियों के काले कारनामों की कथा एक बार फिर इस सत्य को अच्छी तरह से साफ़-साफ़ दिखाती है। साथ ही साथ, एनजीओ किस तरह कारपोरेटों के हितों के लिए काम करती हैं, यह भी साफ़ दिखता है। असल में पूँजीवाद में आम लोगों के हिस्से हर तरह का शोषण-दमन, बदहाली-कंगाली ही आती है, चाहे देश कोई भी हो। आम लोगों की बेहतरी पूँजीवाद से मुक्ति से ही सम्भव है।
मज़दूर बिगुल, जून 2014
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