अदम्‍य बोल्‍शेविक – नताशा एक संक्षिप्त जीवनी (नवीं किश्त)

एल. काताशेवा
अनुवाद : विजयप्रकाश सिंह

रूस की अक्टूबर क्रान्ति के लिए मज़दूरों को संगठित, शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए हज़ारों बोल्शेविक कार्यकर्ताओं ने बरसों तक बेहद कठिन हालात में, ज़बरदस्त कुर्बानियों से भरा जीवन जीते हुए काम किया। उनमें बहुत बड़ी संख्या में महिला बोल्शेविक कार्यकर्ता भी थीं। ऐसी ही एक बोल्शेविक मज़दूर संगठनकर्ता थीं नताशा समोइलोवा जो आखि़री साँस तक मज़दूरों के बीच काम करती रहीं। हम ‘बिगुल’ के पाठकों के लिए उनकी एक संक्षिप्त जीवनी का धारावाहिक प्रकाशन कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि आम मज़दूरों और मज़दूर कार्यकर्ताओं को इससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। – सम्पादक

पेत्रोग्राद में 1917 में हुए ग़ैर-पार्टी स्‍त्री सम्मेलन और समूचे सोवियत गणराज्य की मज़दूर और किसान स्त्रियों की ग़ैरपार्टी कांग्रेस ने साबित किया कि संगठन के ये रूप मेहनतकश औरतों के जन आन्दोलन में प्राण संचार के लिए आयोजित किये जाते हैं। समोइलोवा ने अपनी ओर से यह सुनिश्चित कराने की हर चन्द कोशिश की कि ग़ैर-पार्टी सम्मेलन को जनता के पिछड़े तबकों के बीच पार्टी कार्यशैली के रूप में स्वीकार किया जाये। इन सभी सम्मेलनों में कॉमरेड समोइलोवा ने हर किसी को अपनी अद्वितीय क्षमता से प्रभावित किया। वह दृढ़, अधिकारपूर्वक काम करने वाली और साथ ही सहानुभूति रखने वाली चेयरमैन थीं। इन्हीं सम्मेलनों में समोइलोवा की सांगठनिक और आन्दोलनात्मक क्षमता का भरपूर इस्तेमाल हुआ। और यहीं उन्होंने स्‍त्री मज़दूरों से कार्यकर्ता तैयार किये। वह ग़ैर-पार्टी सम्मेलनों को एक तरह का सांगठनिक और आन्दोलनात्मक कार्य मानती थीं, जिसका उपयोग तब किया जाना चाहिए जब आम जनता को सीधी कार्रवाई के लिए प्रेरित और निर्देशित करने की ज़रूरत हो। 1919 में आयोजित मास्को का ग़ैर-पार्टी सम्मेलन इसका उदाहरण है। मास्को में उन दिनों कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी और भुखमरी का आलम था। मज़दूर और किसान औरतों का ग़ैर-पार्टी सम्मेलन आयोजित हुआ लेकिन उनके बीच कामों की शुरुआत शायद ही हो पायी थी। और इन कठिन परिस्थितियो में ही ग़ैर-पार्टी स्‍त्री मज़दूर जेव्यालोवा की दमदार आवाज़ स्वागत भाषण में गूँज उठती है : ”हम मज़दूर स्त्रियाँ फौलादी दीवार की तरह हैं जिसे कोई भी भेद नहीं सकता।” किसान औरतों ने अभाव और तंगी के बारे में शिकायत करने के बजाय इस बात का विरोध किया कि कुलक उन्हें काम करने का मौका नहीं देते। उन्होंने कहा, ”हमारे पास कॉमरेडों को भेजिये जो ग़रीब जनता का साथ देंगे, और सोवियत सत्ता का हम स्वागत करेंगे”। या यूक्रेन में मज़दूर और किसान स्त्रियों के सम्मेलन को ही लीजिये जहाँ कई बार मज़दूर विजयी रहे हैं और फिर अन्तरराष्ट्रीय साम्राज्यवाद के नेतृत्व में जहाँ प्रतिक्रान्ति के ज़रिये निर्दयतापूर्वक प्रतिशोध लिया गया है। उस दौरान औरतों ने वहाँ क्या-क्या दु:ख नहीं झेले – वे बर्बर आतताइयों के उन गिरोहों से घिरी हुई थीं जो कम्युनिस्टों का शिकार करते, औरतों को प्रताड़ित करते, तथा स्‍त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े किसी को भी नहीं बख्श रहे थे। यूक्रेन की पार्टी की अग्रणी संगठनकर्ता कॉमरेड होपनर उन दिनों के यूक्रेन की तस्वीर पेश करती हैं :

”जब हम लाल सेना के साथ यूक्रेन लौटे, तो हमें ऐसा नज़ारा देखने को मिला, जिससे सख्त से सख्त लोगों का दिल दहल उठा था। सर्दी में नंगे पाँव, चीथड़ों में लिपटी, बदहाल कम्युनिस्ट स्त्रियों का रेला, कम्युनिस्टों की बहन और बेटियाँ या साधारण मज़दूर और किसान स्त्रियाँ – ये सभी सोवियत या पार्टी संगठनों की ओर बढ़ती जा रही थीं।

”कोई भी सोच सकता था कि उनकी यातनाएँ राजनीतिक काम के आड़े आयेंगी, कि हमें सिर्फ उन्हें खाना, कपड़ा और सिर छिपाने की जगह वग़ैरह ही देनी चाहिए, कि दूसरे सवालों में अब उनकी कोई ख़ास रुचि नहीं होगी….”

वह आगे कहती हैं कि उनके खारकोव पहुँचने के छह हफ्ते बाद कॉमरेड समोइलोवा खारकोव आयीं और ग़ैर-पार्टी स्‍त्री सम्मेलन बुलाया। वहाँ ऐसे सन्देहवादी भी थे जिन्हें ग़लतफहमी और शत्रुता से सामना होने की आशंका सता रही थी।

”लेकिन पहले ही सत्र ने”, कॉमरेड होपनर कहती हैं, ”साबित कर दिया कि हम कितना ग़लत समझ रहे थे। स्वागत और शुरुआती भाषणों ने सोवियत सत्ता और कम्युनिस्ट पार्टी में ग़ैर-पार्टी स्त्रियों की सम्पूर्ण आस्था को प्रकट कर दिया। बाद में, सम्मेलन के दौरान जब उन्होंने उन ज़ुल्मों के बारे में बताना शुरू किया जो उन्हें झेलने पड़े थे तो यह स्पष्ट हो गया कि यह वर्गीय चेतना उन कड़वे सबकों का नतीजा थी। दु:स्वप्न के उन यातनाप्रद वर्षों ने हर सर्वहारा के दिल में इस चेतना की लौ जगा दी थी। बिना किसी शिकायत के, और उसी दृढ़ता के साथ उन्होंने श्वेत आतंक की बात की। एक का भाई फाँसी पर लटका दिया गया था, दूसरे के पति को गोली मार दी गयी थी, तीसरे का बेटा उसकी ऑंखों के सामने काट डाला गया था। उन परिवारों को कोड़े मारे गये और छड़ों से पीटा गया, जिन पर कम्युनिस्टों से सम्बन्‍ध होने का सन्देह था। कई प्रतिनिधियों के शरीर पर मार के निशान अभी तक मौजूद थे – उनके सिर, हाथ और पैरों पर चोटें थीं।”

सम्मेलन के बाद आम जनता के बीच सघन कामों की शुरुआत हुई। सैकड़ों की संख्या में ग़ैरपार्टी मज़दूर स्त्रियाँ वर्कर्स एण्ड पीज़ेण्ट्स इंस्पेक्शन से, शैक्षणिक विभागों से और स्वास्थ्य सम्बन्‍धी विभागों से जुड़ीं। सभाएँ, व्याख्यान कक्ष और पार्टी स्कूल स्त्रियों से ठसाठस भरे होते थे। ”सोवियत के चुनावों में”, कॉमरेड होपनर लिखती हैं, ”जब मेंशेविक और उग्रराष्ट्रवादी उम्मीद कर रहे थे कि अकाल के चलते सोवियत सरकार का पतन हो जायेगा, और जब वे अपने कुत्सा-प्रचार में इस अकाल के लिए कम्युनिस्टों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे थे, उस वक्त मज़दूर स्त्रियाँ, लाल सेना से जुड़ी स्त्रियाँ, जो हमारी अर्थव्यवस्था की एकाएक गिरावट की मार सबसे ज्यादा झेल रही थीं, कम्युनिस्ट पार्टी का एक मज़बूत दुर्ग साबित हुईं, और इसका श्रेय उन्हीं को जाता है कि हमारी सोवियतें कम्युनिस्ट हैं।”

अन्त में, वोल्गा के ग़ैर-पार्टी सम्मेलन को लें, जहाँ 1920 में सबसे ज्वलन्त और सबसे महत्‍वपूर्ण सवाल अनाज के कोटे का था। सूखे की सम्भावना आसन्न लग रही थी और कुलकों ने अपना अनाज दबा रखा था। समोइलोवा ने 1920 में सरातोव में ग़ैरपार्टी मज़दूर सम्मेलन बुलाया, और इसमें अपने सक्षम मार्गदर्शन के बूते वह मज़दूर स्त्रियों से स्वेच्छापूर्वक तीन सौ पचास स्त्रियों के गाँव जाने और पैदावार की जाँच करने के वास्ते उन्हें आपूर्ति दस्ते में भेजने के पक्ष में वोट दिलाने में कामयाब रहीं। ”क्योंकि कुलक अकाल के हड़ीले हाथों द्वारा नवजात सोवियत सत्ता का गला घोंटना चाहते हैं।” एक सौ मज़दूर स्त्रियाँ स्थायी रूप से देहातों में काम करने चली गयीं। समोइलोवा ने अख़बारों में इसकी झलकियों के बारे में लिखा, केन्द्रीय समिति और सीपीएसयू के स्‍त्री विभाग को इसकी सूचना दी और अपने पर्चों में इस सम्बन्‍ध में लिखा। वह सरातोव की स्त्रियों द्वारा प्रदर्शित इस पहलकदमी का और व्यापक प्रचार करना चाहती थीं, ताकि दूसरे कस्बों की मज़दूर स्त्रियाँ उनके उदाहरण पर अमल कर सकें।

सरातोव सम्मेलन के बाद समोइलोवा ने पार्टी के तमाम सक्रिय कार्यकर्ताओं को एकत्रित किया और सम्मेलन के फैसलों को कैसे अमल में लाया जाये – इस पर उनके साथ विस्तार से चर्चा की, क्योंकि उन्हें इसका पूरी तौर से अहसास था कि जिन स्‍त्री प्रतिनिधियों को आपूर्ति कार्य में मदद के लिए सम्मेलन भेज रहा है, उनके कामों के इर्दगिर्द एक वर्गसंघर्ष विकसित हो जायेगा।

कई सिलसिलेवार ग़ैर-पार्टी सम्मेलनों के आयोजन के बाद समोइलोवा इस नतीजे पर पहुँचीं कि स्त्रियों के बीच पार्टी-कार्य जारी रखने का सबसे अच्छा तरीका यही है। उन्होंने लिखा :

”ग़ैर-पार्टी सम्मेलन कम्युनिज्म के जन-स्कूल और एक ऐसी आरक्षित सेना हैं, जहाँ से नये जीवन के निर्माण के लिए हम कार्यकर्ताओं की फौज निकाल सकते हैं। सम्मेलनों में आने वाले प्रतिनिधि अपने अगुआ कामरेडों के अनुभव को पिछड़े ज़िलों तक ले जाते हैं।”

उन्होंने ऐसे सांगठनिक रूप विकसित करने के नज़रिये से, जो कम्युनिज्म के लक्ष्य के लिए पिछड़ी जनता को राजनीतिक जीवन में खींच सके, हर सम्मेलन का विशेष रूप से अध्‍ययन किया। साथ ही, इन सम्मेलनों ने उन्हें यह देखने का मौका भी दिया कि उनके भाषणों, उनके पर्चों, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लिखे उनके लेखों को आम जनता ने किस रूप में लिया है। आलोचनाओं से बिना डरे वे लगातार उन बिन्दुओं को स्पष्ट करती रहीं, जहाँ जनता ने उनके सही आशय को समझा नहीं था। जिस दूसरे तरह के काम को समोइलोवा काफी महत्‍व देती थीं, वह था अख़बारों में ”स्‍त्री मज़दूरों का पन्ना”। ऐसे पन्ने अपने जन्म के लिए पूर्णत: उन्हीं के ट्टणी हैं। वह पहली व्यक्ति थीं जिन्होंने 1918 में ‘लेनिनग्राद प्रावदा’ में ”स्‍त्री मज़दूरों के पन्ने” के लिए जगह निकलवायी थी और उसे इस ढंग से संगठित किया था कि ”वह पन्ना” पार्टी के अन्य अख़बारों के लिए मॉडल बन गया। पर यही एकमात्र मूल्यवान विचार नहीं था, जिससे समोइलोवा ने इस काम में योगदान किया था। वह इस ”पन्ने” को स्‍त्री मज़दूरों के पिछड़े तबके के बीच प्रयोग में आने वाली विशेष पद्धति के रूप में देखती थीं, स्‍त्री मज़दूरों के सक्रिय समूह बनाने के उपाय के रूप में देखती थीं।

”स्त्रियों का पन्ना” पुरानी पत्रिका ‘वूमन वर्कर’ की तरह सर्वोपरि तौर पर एक ऐसा स्थान था, जहाँ मज़दूर स्त्रियाँ ख़ुद को व्यक्त कर सकती थीं, अपने कार्यकर्ता-बलों की समीक्षा कर सकती थीं और अपने कार्यभारों को पहचान सकती थीं। वह स्‍त्री विभाग के प्रेस को ”मज़दूर और किसान स्त्रियों” के लिए प्रेस के अंग के रूप में नहीं, बल्कि ख़ुद मेहनतकश जनता के अपने अख़बार के रूप में देखती थीं। वह स्‍त्री मज़दूरों से लगातार कहतीं कि ”यह आपका अपना अख़बार है, इसमें आप अपनी ख़ुद की राय व्यक्त कर सकती हैं।”

कॉमरेड समोइलोवा स्‍त्री प्रतिनिधियों की बैठकों को भी काफी महत्‍व देती थीं। समूचे सोवियत संघ में प्रतिनिधिमण्डलों की बैठकों को स्त्रियों में कामों का सबसे उल्लेखनीय रूप माना जाता है। सीपीएसयू की तेरहवीं कांग्रेस में पार्टी के नेता कॉमरेड स्तालिन ने उनके महत्‍व का उल्लेख करते हुए उन्हें पार्टी और स्‍त्री समुदाय के बीच की ”कन्वेयर बेल्ट” कहा था। इस तरह के कामों में समोइलोवा ने कई नयी बातें की शुरुआत की। उन्होंने इसकी सांगठनिक-शैक्षणिक सम्भावनाओं का अध्‍ययन किया और इसे पूरी गहराई से उद्धाटित किया।

समोइलोवा ने गाँवों में प्रतिनिधिमण्डलों, किसान औरतों के प्रतिनिधिमण्डलों की बैठकों को संगठित करने पर विशेष रूप से कड़ी मेहनत की। उस समय यह काम अभी बस अस्तित्व में आया ही था और इसके अच्छी तरह से संगठित होने की शुरुआतभर हुई थी, लेकिन इसका सारा सांगठनिक स्वरूप – इसके कार्यभार, नियम, दिशा-निर्देश सब कुछ समोइलोवा ने तय किये थे और प्रान्तीय स्‍त्री विभागों के प्रमुखों के तीसरे सम्मेलन में उन्हें व्यक्त किया था – यह एक तरह से विधायी संस्था का सम्मेलन था, जिसे पार्टी ने मज़दूर वर्ग के स्‍त्री तबके के बीच ज़िम्मेदारी के कामों का दायित्व सौंपा था।

सांगठनिक सवालों पर समोइलोवा ही रिपोर्टें तैयार करती और उन पर काम करती थीं। पार्टी की केन्द्रीय समिति के संयोजन ब्यूरो के माध्‍यम से जब भी स्‍त्री विभाग से सम्बन्धित कोई मामला उठाने की ज़रूरत होती तब हमेशा कॉमरेड समोइलोवा को ही यह काम सौंपा जाता। महज़ उनकी उपस्थिति ही प्राय: किसी विवादास्पद सवाल के समाधान को आसान बना देती।

कॉमरेड समोइलोवा की पहल पर पार्टी के नौवें अधिवेशन में एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गयी थी, जिसने स्‍त्री सम्बन्‍धी विभागों की और स्त्रियों के बीच काम को तेज़ करने की आवश्यकता को एक बार फिर से पुष्ट किया।

समोइलोवा ने स्‍त्री सम्बन्‍धी विभागों की अग्रणी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने में, ख़ासकर जनपदीय स्‍त्री प्रभागों के संगठनकर्ताओं को प्रशिक्षण देने में काफी मेहनत की। उन्होंने मज़दूर आबादी के बीच से युवा प्रतिभाओं को तलाशने, मज़दूर और किसान औरतों के मन में स्वयं अपनी क्षमताओं के प्रति विश्वास जगाने, उन्हें काम का तरीका सिखाने, योद्धाओं और नये समाज के निर्माताओं के रूप में उन्हें प्रशिक्षित करने में विलक्षण क्षमता का परिचय दिया। ऐसी प्रतिभा कुछ ही लोगों में होती है। समोइलोवा के अनेक शिष्य (स्‍त्री और पुरुष दोनों) रूस में चारों तरफ फैले हुए हैं और महत्‍वपूर्ण कामों को अंजाम दे रहे हैं।

समोइलोवा को प्रकृति का एक और वरदान हासिल था अर्थात उनमें अद्भुत रूप से सहज, स्पष्ट और सीधो-सादे लोकप्रिय पर्चे लिखने की योग्यता थी। स्‍त्री मज़दूरों और किसानों के लिए लिखे गये ये पर्चे, ‘कम्युनिस्ट वूमन’ और ‘वूमन वर्कर’ के ”स्त्रियों के पन्ने” में उनके लेखों की ही तरह, जनता के लिए लेखन के बेहतरीन नमूने हैं। वह दृढ कम्युनिस्ट नज़रिये के साथ-साथ सरलता से पेश आना और जनता के जीवन के करीब की साधारण्ा घटनाओं को लेकर उनसे उन अहम मुद्दों के रूप में निष्कर्ष निकालना जानती थीं जो मज़दूर वर्ग को उसके संघर्ष में चुनौती दे रहे थे। उन्हें अलंकृत और लच्छेदार जुमले पसन्द नहीं थे। उनकी शैली सरल और उनके पाठकों के अनुरूप होती थी। वह ईमानदारी और गर्मजोशी से हमेशा विषय के उपयुक्त बोलती थीं। समोइलोवा द्वारा शिक्षित कार्यकर्ताओं ने उनके पर्चों से रिपोर्टें तैयार करना और उन कठिन परिस्थितियों में, जिनमें ये ग्रामीण संगठनकर्ता ख़ुद को उलझा हुआ पाते थे, समाधानमूलक वार्ताएँ आयोजित करना सीखा। वे विशाल सोवियत संघ के कोने-कोने में भेजे गये, अधिकांश को कोई वेतन नहीं मिलता, रिहाइश की कोई जगह नहीं होती, पन्द्रह-पन्द्रह, बीस-बीस मील पैदल चलना होता, और जहाँ जो मिल जाये खा लेना पड़ता, ऐसे में अपनी निरन्तर जारी यात्राओं में सुनियोजित पार्टी नेतृत्व से वंचित होकर ये संगठनकर्ता आन्दोलनपरक सामग्री के लिए समोइलोवा के पर्चों का सहारा लेते थे। 

 

बिगुल, सितम्‍बर 2009


 

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