दिल्ली मेट्रो प्रबन्धन के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे हैं सफ़ाईकर्मी
बिगुल संवाददाता
दिल्ली मेट्रो के सफ़ाईकर्मियों ने मेट्रो प्रशासन के दमन-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलन्द करने की शुरुआत कर दी है। 25 मार्च को मेट्रो कामगार संघर्ष समिति के नेतृत्व में न्यूनतम मज़दूरी, साप्ताहिक छुट्टी, ई.एस.आई., पी.एफ. जैसे बुनियादी क़ानूनी अधिकारों के लिए मेट्रो सफ़ाईकर्मियों ने मेट्रो भवन पर चेतावनी प्रदर्शन किया।
पूरा दिल्ली मेट्रो मज़दूरों के ख़ून-पसीने और हडि्डयों की नींव पर खड़ा किया गया है लेकिन इसके बदले में मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी, साप्ताहिक छुट्टी, पी.एफ़, ई.एस.आई. और यूनियन बनाने के अधिकार जैसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित रखा गया है। श्रम क़ानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ायी जाती हैं। हालाँकि मेट्रो स्टेशनों और डिपो के बाहर मेट्रो प्रशासन ने एक बोर्ड ज़रूर लटका दिया है कि ‘यहाँ सभी श्रम क़ानून लागू किये जाते हैं’। चाहे मेट्रो में काम करने वाले सफ़ाई मज़दूर हों या फिर निर्माण मज़दूर, सभी से जानवरों की तरह हाड़तोड़ काम लिया जाता है और उन्हें कई बार साप्ताहिक छुट्टी तक नहीं दी जाती है। पी.एफ़ या ई.एस.आई. की सुविधा तो बहुत दूर की बात है। ऊपर से यदि कोई मज़दूर इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है तो उसे तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है या फिर उसे निकालकर बाहर ही फेंक दिया जाता है।
मेट्रो कामगार संघर्ष समिति इस खुले शोषण के ख़िलाफ़ मेट्रो कामगारों को संगठित करने में जुटी हुई है। पिछले कुछ महीनों के दौरान समिति ठेकेदारों और मेट्रो प्रशासन की खुली धमकियों और तमाम किस्म के रोड़े अटकाने के बावजूद मज़दूरों के बीच उनके अधिकारों का प्रचार-प्रसार किया है और लगातार मेट्रो प्रशासन पर दबाव बनाये हुए है।
समिति द्वारा सूचना के अधिकार क़ानून के तहत पूछे गये सवाल के जवाब में डी.एम.आर.सी ने लिखित रूप से यह स्वीकार किया था कि श्रम क़ानूनों का अमल सुनिश्चित कराना प्रथम नियोक्ता का काम है। मेट्रो में काम करने वाले मज़दूरों का प्रथम नियोक्ता वही है और मज़दूरों को उनके क़ानूनी अधिकार दिलाने की ज़िम्मेदारी भी मेट्रो प्रशासन की ही है। इसके बावज़ूद जब 25 मार्च को मेट्रो के सफ़ाईकर्मियों ने मेट्रो कामगार संघर्ष समिति के नेतृत्व में कनाट प्लेस स्थित मेट्रो भवन पर शान्तिपूर्ण प्रदर्शन किया।
मेट्रो के सफ़ाईकर्मियों की प्रमुख मांगें हैं:
1. नए क़ानून के तहत न्यूनतम दैनिक मज़दूरी 186 रु. दी जाए (वर्तमान मज़दूरी मात्र 96 रु. है)
2. पी.एफ. नंबर एवं ई.एस.आई. कार्ड की सुविधा दी जाए।
3. वेतन के साथ साप्ताहिक छुट्टी दी जाए।
4. न्यूनतम मज़दूरी क़ानून और ठेका क़ानूनों का पालन किया जाए।
ये सभी बिल्कुल जायज़ और कानूनी माँगें हैं। लेकिन प्रदर्शन के बाद जब मज़दूरों ने अपना ज्ञापन डी.एम.आर.सी को सौंपना चाहा, तो डी.एम.आर.सी ने हिटलर की राह पर चलते हुए ज्ञापन लेने से इन्कार कर दिया और कहा कि सफ़ाईकर्मियों से उसका कोई वास्ता नहीं है क्योंकि वे ठेकेदार के कर्मचारी हैं। डी.एम.आर.सी. के इस रवैये ने यह स्पष्ट कर दिया कि उसने ठेकेदारों के साथ अपवित्र गंठजोड़ क़ायम किया हुआ है और वह सफ़ाईकर्मियों को उनके बुनियादी हक़ दिलवाने का क़तई इच्छुक नहीं है।
ज्ञापन लेने से इन्कार के बाद सफ़ाईकर्मियों ने मेट्रो भवन का गेट जाम कर दिया और कहा कि वहाँ से तभी हटेंगे जब मेट्रो प्रशासन उनका ज्ञापन स्वीकार करे और दस दिन के भीतर उनकी माँगों पर कार्रवाई करने का आश्वासन दे। लगभग दो घण्टे तक मेट्रो भवन का मुख्य गेट जाम रहने के बाद सफ़ाईकर्मियों के जुझारू तेवर को देखते हुए डी.एम.आर.सी. को मजबूर होकर पुलिस के अधिकारियों की मध्यस्थता में एक ठेका कम्पनी के प्रतिनिधि से ज्ञापन स्वीकार कराना पड़ा। इस घटना से यह ज़ाहिर हो गया कि मज़दूर यदि अपनी माँगों के लिए एकजुटता का प्रदर्शन करें तो सरकार और मालिकान को झुकने पर मजबूर कर सकते हैं।
इस घटना के बाद ठेकेदारों के गुण्डों ने सफ़ाईकर्मियों को धमकाना शुरू कर दिया और उनसे एक माफ़ीनामे पर दस्तख़त करने को कहा। लेकिन सफ़ाईकर्मियों ने उनका प्रतिरोध किया और दस्तख़त करने से इन्कार कर दिया। ठेकेदारों ने सफ़ाईकर्मियों के सामने यह लुकमा भी फेंकने की कोशिश की कि वे 200-400 रु. वेतन बढ़ाने पर मान जायें और संघर्ष में शामिल न हों।
मामले के न्यायालय में जाने की स्थिति से निबटने के लिए ठेकेदार झूठे वेतन रिकॉर्ड भी तैयार कर रहे हैं और मेट्रो प्रशासन भी पूरी बेशर्मी के साथ इन ठेकेदारों का साथ दे रहा है।
मेट्रो कामगार संघर्ष समिति ने भी मज़दूरों को एक बड़ी लड़ाई के लिए तैयार करने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं।
बिगुल, अप्रैल 2009
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