अक्टूबर क्रान्ति की 91वीं वर्षगाँठ पर बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन
बिगुल संवाददाता, लुधियाना
महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति की 91वीं वर्षगाँठ के अवसर पर 25 अक्टूबर को बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से लुधियाना में ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” विषय पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। समराला चौक के पास स्थित इ.डब्ल्यू.एस. कालोनी के निष्काम विद्या मन्दिर स्कूल में आयोजित की गयी इस विचार संगोष्ठी में लगभग 50 मज़दूर शामिल हुए। उन्होंने अक्टूबर क्रान्ति के दौरान शहीद होने वाले हजारों मज़दूर शहीदों की याद में खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा और मज़दूर वर्ग का अन्तरराष्ट्रीय गीत ”इण्टरनेशनल” गाया।
गोष्ठी का संचालन कर रहे लखविन्दर ने विचार संगोष्ठी की शुरुआत करते हुए कहा कि रूस में 25 अक्टूबर 1917 को होने वाली मज़दूर क्रान्ति दुनिया की तब तक की सबसे महान घटना थी। यह पहला मौका था जब राज्यसत्ता किसी शोषक वर्ग के हाथों से निकलकर शोषित-उत्पीड़ित वर्ग के कब्ज़े में आ गयी। यह सचेतन तौर पर की जाने वाली दुनिया की सबसे पहले क्रान्ति थी जिसका मकसद था इन्सान के हाथों इन्सान की हर तरह की लूट का ख़ात्मा। इस क्रान्ति ने पूरे ज़ोर के साथ सम्पत्तिवान वर्गों का तख्ता पलट दिया। इस क्रान्ति ने दिखा दिया कि अगर समाज का नियन्त्रण मज़दूर वर्ग के हाथों में आ जाये तो मेहनतकश वर्गों की चेतना, संस्कृति, शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान, तकनीकी और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास किया जा सकता है। यह एक युगप्रवर्तक घटना थी जिसके बाद मज़दूर क्रान्तियों के युग की शुरुआत हुई। महान अक्टूबर क्रान्ति आज भी हमें प्रेरणा दे रही है और उसकी शिक्षाएँ हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता बिगुल के सम्पादक मण्डल के सदस्य सुखविन्दर ने ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” पर विस्तार से अपनी बात रखते हुए कहा कि सबसे पहले तो हमें इस बात को समझ लेना चाहिए कि दुनिया हमेशा से बदलती आयी है। हमारा समाज हमेशा से ही ऐसा नहीं रहा जैसा कि आज है। बन्दर से मनुष्य का विकास होने के बाद हजारों वर्षों का एक ऐसा समाज भी रहा जहाँ लूट-शोषण का नामों-निशां तक नहीं था। लेकिन इसके बाद दास समाज और सामन्ती समाज से होते हुए समाज ने आज की पूँजीवादी व्यवस्था के दौर में प्रवेश किया। पूँजीवादियों द्वारा दावा किया जाता है कि पूँजीवाद समाज की आखिरी व्यवस्था है लेकिन ऐसा कतई नहीं हो सकता। समाज पहले भी बदलता आया है और अब भी बदलेगा। पूँजीवाद अमर नहीं है। पूँजीवाद के गम्भीर अन्तरविरोध ही पूँजीवाद का अन्त कर देंगे। एक तरफ पैदावार का समाजीकरण दूसरी ओर पैदावार के साधनों और पैदावार पर पूँजीपतियों का निजी स्वामित्व – यही है पूँजीवाद का बुनियादी अन्तरविरोध। समाज का यही अन्तरविरोध मेहनतकशों की सारी समस्याओं की जड़ है। इसी वजह से एक तरफ सम्पत्तिवान वर्गों के पास धन-दौलत के अम्बार लगे हुए हैं वहीं दूसरी तरफ मेहनतकश जनता भूख, ग़रीबी, कंगाली की चक्की में पिस रही है। यही अन्तरविरोध पूँजीवाद के संकटों को जन्म देता है, जब एक तरफ बाज़ार तो माल से ठसाठस भरे होते हैं लेकिन खरीदने वाला कोई नहीं होता। मज़दूरों के भयंकर शोषण से माल का उत्पादन तो बहुत बढ़ जाता है लेकिन व्यापक मेहनतकश आबादी के पास इतना पैसा ही नहीं होता कि वह इन मालों को खरीद सके। इसे अतिउत्पादन का संकट कहा जाता है। यही अन्तरविरोध पूँजीवाद के अन्त का कारण भी बनेगा। सचेतन तौर पर संगठित मज़दूर वर्ग हथियारबन्द क्रान्ति द्वारा पूँजीपति वर्ग का तख्ता पलट कर, राज्यसत्ता अपने हाथ में लेकर समाज के पैदावार के साधनों और पैदावार के सम्पूर्ण समाजीकरण की तरफ कदम बढ़ायेगा। रूस की महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति ऐसा पहला प्रयास था। सुखविन्दर ने कहा कि महान अक्टूबर क्रान्ति युगों-युगों तक, जब तक पूँजीवाद का सम्पूर्ण नाश नहीं हो जाता मज़दूर वर्ग को प्रेरणा देती रहेगी और मार्गदर्शन करती रहेगी।
संगोष्ठी में ताज मुहम्मद, शिववर्धन, गोपाल, कस्तूरी लाल, सुदर्शन आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए। अक्टूबर क्रान्ति की मशाल को जलाये रखने और और नयी समाजवादी क्रान्ति के कार्यभार को जी-जान से आगे बढ़ाने के संकल्पों के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।
बिगुल, नवम्बर 2009
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