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(बिगुल के जुलाई 2009 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
संघर्षरत जनता
महान शिक्षकों की कलम से
समाज
ग्लोबल सिटी दिल्ली में बच्चों की मृत्यु दर दोगुनी हो गयी है! / कपिल स्वामी
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
भटिण्डा में पंजाब पुलिस द्वारा मज़दूरों का बर्बर दमन / राजविंदर
लिब्रहान रिपोर्ट – फिर दफनाए जाने के लिए पेश की गई एक और रिपोर्ट / सुखदेव
बाल मज़दूर
वैश्विक वित्तीय संकट का नया ‘तोहफा’ – ग़रीबी, बेरोजगारी के साथ बाल मजदूरी में भी इजाफा / शिवानी
लेखमाला
अदम्य बोल्शेविक – नताशा एक संक्षिप्त जीवनी (सातवीं किश्त) / एल. काताशेवा
फ़ासीवाद क्या है और इससे कैसे लड़ें? (दूसरी किश्त) – जर्मनी में फ़ासीवाद / अभिनव
स्मृति शेष
कॉमरेड हरभजन सिंह सोही को क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि
औद्योगिक दुर्घटनाएं
मज़दूर बस्तियों से
पाँच साल में शहरों को झुग्गी-मुक्त करने के दावे की असलियत
कला-साहित्य
मज़दूरों की कलम से
कविता – सरकारी अस्पताल / टी. एम. आंसारी, पावरलूम ऑपरेटर, शक्तिनगर, लुधियाना
कविता – शहीद भगत सिंह के इहे एक सपना रहे / सिद्धेश्वर यादव, फौजी कालोनी, लुधियाना
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन