क्रान्तिकारी कवि ज्वालामुखी नहीं रहे
जनसंघर्षों के साथी सांस्कृतिक योद्धा को हमारी श्रृद्धांजलि
तेलुगु भाषा के क्रान्तिकारी कवि और जनपक्ष के प्रखर सांस्कृतिक योद्धा ज्वालामुखी का पिछले 14 दिसम्बर को हैदराबाद में निधन हो गया।
ज्वालामुखी एक कवि ही नहीं, अत्यन्त ओजस्वी वक्ता, सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर लिखने वाले प्रखर टिप्पणीकार, उपन्यासकार और राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता भी थे।
18 अप्रैल 1938 को हैदराबाद में जन्मे ज्वालामुखी का मूल नाम वीरवल्ली राघवाचार्यालु था। अपने घर के धार्मिक परिवेश से विद्रोह करके नौजवानी में ही उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों पर चोट करने वाली विद्रोही कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थीं। वे उन युवा कवियों की ‘दिगम्बरी पीढ़ी’ के एक प्रमुख सदस्य थे जिन्होंने अन्याय और दासता भरी सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह तो किया लेकिन उनका विद्रोह दिशाहीन था। लेकिन ज्वालामुखी ने जल्दी ही वैज्ञानिक क्रान्तिकारी विचारधारा को अपना लिया और नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह की ऊष्मा से प्रेरित क्रान्तिकारी साहित्यिक आन्दोलन से जुड़ गये। 1970 में आन्ध्र प्रदेश में गठित क्रान्तिकारी लेखकों के संगठन विप्लवी रचयितालु संघम (विरसम) के वह संस्थापक सदस्य थे। उनकी कुछ कविताओं के कारण 1971 में उन्हें आन्ध्र प्रदेश नज़रबन्दी क़ानून के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया और जिस किताब में उनकी कविता छपी थी उसकी तमाम प्रतियाँ ज़ब्त कर ली गयीं। जेल से बाहर आकर ज्वालामुखी ने और भी निर्भीकता के साथ अपनी कलम और वाणी से शोषित-उत्पीड़ित जनता के पक्ष में काम करना शुरू कर दिया।
वे आन्ध्र प्रदेश में बेहद लोकप्रिय कवि-लेखक और हज़ारों-हज़ार लोगों को आलोड़ित करने की क्षमता वाले ओजस्वी वक्ता थे।
क्रान्तिकारी शिविर में ठहराव और बिखराव के कारण ज्वालामुखी बाद के वर्षों में क्रान्तिकारी आन्दोलन के साथ पहले जितनी नज़दीकी से नहीं जुड़े रह गये थे लेकिन जनता के संघर्षों के साथ वे आखिरी साँस तक बने रहे। वे आर्गनाइज़ेशन फ़ॉर पीपुल्स डेमोक्रेटिक राइट्स के सक्रिय सदस्य थे और जनसंघर्षों पर होने वाले राज्यसत्ता के दमन-उत्पीड़न और नागरिक अधिकारों के हनन का मुखर विरोध करने में हमेशा आगे रहते थे। जातीय उत्पीड़न, भेदभाव और स्त्रियों के दमन-उत्पीड़न के मुद्दों पर भी वे बेहद सक्रिय थे और अन्तिम समय तक देशभर में होने वाले विभिन्न आयोजनों में शिरकत करते रहते थे।
वे पुरस्कारों और पद-ओहदों के लिए लिखने वाले लेखक नहीं थे। उनकी हज़ारों कविताएँ तेलुगु पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं और कई अन्य भाषाओं में उनके अनुवाद भी हुए लेकिन उनके जीवन में उनका कोई कविता-संकलन प्रकाशित नहीं हुआ। वे एक कर्मठ और प्रतिबद्ध संस्कृतिकर्मी थे और आजीवन अपने उसूलों पर अडिग रहे।
‘बिगुल’ और इसके साथी संगठनों से ज्वालामुखी बहुत करीबी जुड़ाव महसूस करते थे। भारतीय समाज की सच्चाइयों और क्रान्ति की मंज़िल की पहचान करने और नये रास्तों के सन्धान की हमारी कोशिशों में बहुत से मतभेदों के बावजूद वे हमारी क्रान्तिकारी भावना और जोश के भागीदार थे और हमारे बहुत से आयोजनों में उनकी मौजूदगी युवा कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणादायी होती थी। हम ‘बिगुल’ की पूरी टीम और ‘बिगुल’ के सभी पाठकों की ओर से जनसंघर्षों के इस सहयोद्धा कवि को क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
बिगुल, जनवरी 2009
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