करावल नगर के मज़दूरों ने बनायी इलाक़ाई यूनियन

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाक़े में स्थित करावल नगर राजधानी के सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाले विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र की आबादी 2.5 लाख से ज़्यादा है जिनमें से अधिकांश मज़दूर आबादी है जिसकी संख्या 1.5 लाख से ऊपर है। इसमें ज़्यादातर मज़दूर ठेका, पीस रेट और कैजुअल पर 12 से 14 घण्टे सिंगल रेट पर खटते हैं। ज्ञात हो कि यह वही इलाक़ा है जहाँ 2009 में बादाम मज़दूर यूनियन ने 16 दिनों की लम्बी हड़ताल की थी। उस हड़ताल में क़रीब 10,000 हज़ार से ज़्यादा मज़दूरों ने जुझारू संघर्ष में हिस्सा लिया था।

इस हड़ताल ने दिखाया था कि असंगठित मज़दूरों ने सिर्फ़ अपने मालिक के ख़िलाफ़ ही नहीं बल्कि पूरे बादाम मालिकों के ख़िलाफ़ संघर्ष चलाया तथा इसका आधार पेशे के तौर पर ही सही परन्तु इलाकाई था। ज़ाहिरा तौर पर 16 दिन की हड़ताल में आधी-अधूरी ही जीत हासिल हुई लेकिन बादाम मज़दूरों के संघर्ष ने इलाकाई संगठन की धारणा को पुख़्ता करने का काम किया। साथ ही साथ बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व ने पेशे की सीमा को ख़त्म करते हुए 23 मार्च की मज़दूर पंचायत में करावल नगर मज़दूर यूनियन बनाने का प्रस्ताव रखा (मज़दूर पंचायत की रिपोर्ट मज़दूर बिगुल के अप्रैल अंक में थी) जिसमें 500 से ज़्यादा मज़दूरों ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया।

7 जुलाई को करावल नगर मज़दूर यूनियन के गठन के लिए अगुआ टीम की बैठक हुई जिसमें मज़दूर साथियों की समन्यवय समिति बनायी गयी जिसने इलाक़े में यूनियन के प्रचार और इसके महत्व को बताते हुए सभी पेशों के मज़दूरों को सदस्य बनाने की योजना बनायी। सदस्यता का प्रमुख पैमाना सक्रियता को रखा गया। साथ ही यूनियन के संयोजक नवीन ने बताया कि जब यूनियन की सदस्यता 100 हो जायेगी तो इसके सभी सदस्यों को बुलाकर इसके पदाधिकारी, कार्यकारणी व अन्य पदों के लिए चुनाव कराया जाएगा।

21 अगस्त को यूनियन के कार्यालय पर शाम आठ बजे आम सभा बुलायी गयी जिसमें यूनियन की सदस्यता ले चुके लगभग 100 सदस्यों ने भाग लिया जिसमें 60 से ज़्यादा मज़दूर थे। सभा का संचालन प्रेम प्रकाश ने किया जिन्होंने यूनियन का इतिहास बताते हुए मज़दूरों को अपने संवैधानिक एवं क़ानूनी अधिकारों की लड़ाई के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। तदुपरान्त यूनियन के सदस्य सनी सिंह ने यूनियन के संविधान को पढ़कर इस पर सहमति ली जिसे सभी मज़दूरों ने ध्वनिमत से पास किया। पदाधिकारियों के लिए विभिन्न पदों के लिए नाम प्रस्तावित किये गये जिन्हें सर्वसम्मति से चुन लिया गया। कार्यकारिणी के लिए सात लोगों का नाम प्रस्तावित किया गया जिन्हें चर्चा के बाद चुन लिया गया। यूनियन के उद्देश्यों एवं विचारों के प्रचार-प्रसार और यूनियन के दायरे को व्यापक बनाने के लिए 12 सदस्यों का प्रचार दस्ता बनाया गया।

यूनियन के अध्यक्ष जलालुद्दीन ने बताया कि आये दिन हम निर्माण मज़दूरों का पैसा रख लेना, औज़ार रख लेना तथा बदतमीज़ी करना आम बात है और इसका कारण यह है कि हम बिखरे हुए है। मालिकान के पास दौलत, पुलिस और गुण्डों की ताक़त होती है जिनका जवाब हम सभी मज़दूरों को मिलकर देना होगा। चाहे किसी भी पेशे के मज़दूर के साथ अन्याय होने पर हम सबको उसके साथ आना होगा।

यूनियन के उपाध्यक्ष अवधेश मण्डल ने बताया कि मुनाफ़े की हवस में मालिकान मज़दूरों को कोल्हू के बैल की तरह खटाते हैं, चाहे उसका पेशा कुछ भी हो, मज़दूर महिलाओं के साथ बदतमीज़ी की जाती है, रिक्शा और ठेला चलाने वाले मज़दूर साथियों को गुण्डों और पुलिस तक की वसूली और अन्याय को सहना पड़ता है और इन सब के ऊपर हमारे साथ जानवरों जैसा अपमानजनक बर्ताव किया जाता है। इसलिए ज़रूरी है इस इलाके में अपनी एकजुटता बनायी जाए और हर किस्म के अन्याय का मुँहतोड़ जवाब दिया जाए।

सभा को आगे बढ़ाते हुए कपिल ने अन्ना हज़ारे को पूँजीपतियों का गन्ना बताया जो पूँजीपतियों के द्वारा मज़दूरों के श्रम के लूट पर चूँ तक नहीं करते । कपिल ने बताया कि अगर मान लें कि सारा भ्रष्टाचार दूर भी हो जाए (जो कि इस व्यवस्था में नहीं हो सकता) तो भी मज़दूरों के श्रम की लूट जारी रहेगी। असल में अन्ना हज़ारे, रामदेव, जयगुरूदेव जैसे लोग समय-समय पर पैदा होते रहते हैं जो कि इस पूँजीवादी व्यवस्था को बचाने का काम करते हैं – जनता के गुस्से पर छींटे मारने और ठण्डा करने का काम करते हैं।

सभा के अन्त में यूनियन के सचिव नवीन ने बताया कि आज देश में क़रीब 70 करोड़ मज़दूर हैं, अकेले दिल्ली में क़रीब 65 लाख मज़दूर है जिसका बहुत बड़ा हिस्सा असंगठित मज़दूरों का है। करावल नगर क्षेत्र में तो यह आबादी और भी अधिक है। तमाम क़ानूनी अधिकार मालिकों और ठेकेदारों की जेबों में रहते हैं। न तो न्यूनतम मज़दूरी मिलती है और न ही कोई पहचान कार्ड, साप्ताहिक अवकाश, पी.एफ., ई.एस.आई. की बात ही क्या करें?

उन्होंने कहा कि ऐसे में तमाम पेशों के मज़दूरों को एक इलाक़ाई संगठन के बैनर तले गोलबन्द होने की ज़रूरत है। हम अपनी संगठित ताक़त के बूते ही अपने हक़-हकूक़ को पा सकते हैं। जब तक हम अकेले है तब तक बहुत कुछ कर पाना सम्भव नहीं है। ऐसे संगठन के तहत किसी भी मज़दूर के खि़लाफ़ अन्याय होने पर इलाक़े के सभी मज़दूर उसके साथ लड़ने के लिए सड़कों पर उतर सकते हैं।

 

 

मज़दूर बिगुलअगस्त-सितम्बर 2011

 


 

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