पेरिस कम्यून : पहले  मज़दूर राज की सचित्र कथा (छठी किश्त)

आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के मज़दूर पूँजी की लुटेरी ताक़त के तेज़ होते हमलों का सामना कर रहे हैं, और मज़दूर आन्दोलन बिखराव, ठहराव और हताशा का शिकार है। ऐसे में इतिहास के पन्ने पलटकर मज़दूर वर्ग के गौरवशाली संघर्षों से सीखने और उनसे प्रेरणा लेने की अहमियत बहुत बढ़ जाती है। आज से 141 वर्ष पहले, 18 मार्च 1871 को फ़्रांस की राजधानी पेरिस में पहली बार मज़दूरों ने अपनी हुक़ूमत क़ायम की। इसे पेरिस कम्यून कहा गया। उन्होंने शोषकों की फैलायी इस सोच को ध्वस्त कर दिया कि मज़दूर राज-काज नहीं चला सकते। पेरिस के जाँबाज़ मज़दूरों ने न सिर्फ पूँजीवादी हुक़ूमत की चलती चक्की को उलटकर तोड़ डाला, बल्कि 72 दिनों के शासन के दौरान आने वाले दिनों का एक छोटा-सा मॉडल भी दुनिया के सामने पेश कर दिया कि समाजवादी समाज में भेदभाव, ग़ैर-बराबरी और शोषण को किस तरह ख़त्म किया जायेगा। आगे चलकर 1917 की रूसी मज़दूर क्रान्ति ने इसी कड़ी को आगे बढ़ाया।

मज़दूर वर्ग के इस साहसिक कारनामे से फ़्रांस ही नहीं, सारी दुनिया के पूँजीपतियों के कलेजे काँप उठे। उन्होंने मज़दूरों के इस पहले राज्य का गला घोंट देने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया और आख़िरकार मज़दूरों के कम्यून को उन्होंने ख़ून की नदियों में डुबो दिया। लेकिन कम्यून के सिद्धान्त अमर हो गये। पेरिस कम्यून की हार से भी दुनिया के मज़दूर वर्ग ने बेशक़ीमती सबक़ सीखे। पेरिस के मज़दूरों की कुर्बानी मज़दूर वर्ग को याद दिलाती रहती है कि पूँजीवाद को मटियामेट किये बिना उसकी मुक्ति नहीं हो सकती।

‘मज़दूर बिगुल’ के मार्च 2012 अंक से हम दुनिया के पहले मज़दूर राज की सचित्र कथा की शुरुआत की है, जो अगले कई अंकों में जारी रहेगी।

इस  श्रृंखला की शुरुआती कुछ किश्तों में हमने पेरिस कम्यून की पृष्ठभूमि के तौर पर जाना कि पूँजी की सत्ता के ख़िलाफ मज़दूरों ने किस तरह लड़ना शुरू किया और किस तरह चार्टिस्ट आन्दोलन और 1848 की क्रान्तियों से गुज़रते हुए मज़दूर वर्ग की चेतना और संगठनबद्धता आगे बढ़ती गयी। हमने मज़दूरों की मुक्ति की वैज्ञानिक विचारधारा के विकास और पहले अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर संगठन के बारे में जाना। पिछले अंकों में हमने जाना कि कम्यून की स्थापना कैसे हुई और उसकी रक्षा के लिए मेहनतकश जनता किस प्रकार बहादुरी के साथ लड़ी। हमने यह भी देखा कि कम्यून ने सच्चे जनवाद के उसूलों को इतिहास में पहली बार अमल में कैसे लागू किया और यह दिखाया कि ”जनता की सत्ता” वास्तव में क्या होती है। — सम्पादक

……………………………..

पेरिस कम्यून – सर्वहारा अधिनायकत्व का पहला प्रयोग

1. कम्यून मज़दूर वर्ग के इतिहास की महानतम और सर्वाधिक प्रेरक घटनाओं में से एक है। एक ज़बर्दस्त क्रान्तिकारी उभार में पेरिस की मेहनतकश जनता ने पूँजीवादी राज्य को हटाकर उसके स्थान पर जनता की सरकार की अपनी संस्थाएँ क़ायम कीं और 72 दिनों तक राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में रखी। पेरिस के मज़दूरों ने बेहद कठिन हालात में, शोषण और उत्पीड़न का ख़ात्मा करने और बिल्कुल नयी बुनियाद पर समाज का नवनिर्माण करने के लिए जी-जान से कोशिश की। उन 72 दिनों की घटनाओं के सबक़ आज भी मज़दूर वर्ग के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं।

कम्यून का चुनाव सार्विक पुरुष मताधिकार के सिद्धान्तों के अनुसार हुआ था। वर्साय स्थित प्रतिक्रान्तिकारी सरकार ने जनता से चुनाव का बहिष्कार करने की अपील की थी और बुर्जुआ तथा अभिजात मुहल्लों में डाले मतों की संख्या बहुत कम थी। यह अच्छा ही था, क्योंकि इसका मतलब यह था कि कम्यून मुख्यत: मेहनतकशों द्वारा ही चुना गया था। कम्यून के सदस्यों में राष्ट्रीय गार्ड की केन्द्रीय समिति के वार्ले, दूवाल, जूर्द, एद और वाइयां जैसे सबसे प्रमुख लोग भी थे। राष्ट्रीय गार्ड की केन्द्रीय समिति की ही भाँति कम्यून भी अपने को पेरिस नगर का नगरपालिका निकाय नहीं वरन जनतन्त्र की केन्द्रीय क्रान्तिकारी सरकार मानता था।

कम्यून के पास वक़्त की कमी थी। उसे आगे-पीछे नज़़र दौड़ाने, अपने कार्यक्रम को पूरा करने की तैयारी की मोहलत नहीं मिली। वह काम में जुट भी नहीं पाया था कि वर्साई में जमी और पूरे बुर्जुआ वर्ग द्वारा समर्थित सरकार ने पेरिस के विरुद्ध युद्ध की कार्रवाइयाँ शुरू कर दीं। कम्यून को सबसे पहले आत्मरक्षा के बारे में सोचना पड़ा। अपने अन्तिम दिनों तक, 21-28 मई तक उसे और किसी चीज़ के बारे में संजीदगी से सोचने का मौक़ा ही नहीं मिला। मगर कम्यून के सदस्य मिले हुए समय का पूरा लाभ उठाने के लिए दिनों रात काम में जुटे रहे। नेशनल गार्ड के रक्षकों के पहरे में कम्यून की बैठकें लगातार जारी रहती थीं।

कम्यून के पास वक़्त की कमी थी। उसे आगे-पीछे नज़़र दौड़ाने, अपने कार्यक्रम को पूरा करने की तैयारी की मोहलत नहीं मिली। वह काम में जुट भी नहीं पाया था कि वर्साई में जमी और पूरे बुर्जुआ वर्ग द्वारा समर्थित सरकार ने पेरिस के विरुद्ध युद्ध की कार्रवाइयाँ शुरू कर दीं। कम्यून को सबसे पहले आत्मरक्षा के बारे में सोचना पड़ा। अपने अन्तिम दिनों तक, 21-28 मई तक उसे और किसी चीज़ के बारे में संजीदगी से सोचने का मौक़ा ही नहीं मिला। मगर कम्यून के सदस्य मिले हुए समय का पूरा लाभ उठाने के लिए दिनों रात काम में जुटे रहे। नेशनल गार्ड के रक्षकों के पहरे में कम्यून की बैठकें लगातार जारी रहती थीं।

2. कम्यून ने सर्वोच्च विधयिका के तौर पर काम करते हुए क़ानून बनाना शुरू कर दिया। साथ ही कम्यून क़ानूनों के लागू होने की निगरानी भी करता था, यानी वह सर्वोच्च कार्यपालिका भी था। विधयिका तथा कार्यपालिका की शक्तियों का एक ही निकाय में यह संयोजन कम्यून के सबसे महत्वपूर्ण लक्षणों में एक था।

कम्यून की एक बैठक का दृश्य “चुँकि कम्यून में सिर्फ़ मज़दूर या मज़दूरों के चुने हुए प्रतिनिधि बैठते थे, इसलिए उसके फ़ैसले निश्चित तौर पर सर्वहारा चरित्र के होते थे।” - मज़दूरों के महान नेता और शिक्षक फ़्रैडरिक एंगेल्स के शब्द

कम्यून की एक बैठक का दृश्य
“चुँकि कम्यून में सिर्फ़ मज़दूर या मज़दूरों के चुने हुए प्रतिनिधि बैठते थे, इसलिए उसके फ़ैसले निश्चित तौर पर सर्वहारा चरित्र के होते थे।” – मज़दूरों के महान नेता और शिक्षक फ़्रैडरिक एंगेल्स के शब्द

कम्यून ने केन्द्रीय समिति द्वारा शुरू किये गये पुराने बुर्जुआ राज्यतन्त्र का ख़ात्मा करने के काम को पूरा किया। नियमित सेना तथा पुलिस को इस समय तक आधिकारिक रूप से भंग किया जा चुका था। तोड़फोड़ के कार्यों में संलग्न पुराने नौकरशाही तन्त्र के स्थान पर जनता की कतारों से आये नये कर्मचारियों को नियुक्त कर दिया गया। कम्यून ने आज्ञप्तियाँ जारी करके अफसरशाही के बेहद ऊँचे वेतन पाने वाले सदस्यों को बर्ख़ास्त कर दिया और राज्य कर्मचारियों के लिए वेतन की नयी अधिकतम सीमाएँ निर्धरित कर दीं, जिनका लक्ष्य औसत सरकारी कर्मचारी के वेतन को कुशल मज़दूर के वेतन के स्तर पर ले आना था। कम्यून ने यह भी आदेश दिया कि सरकारी कर्मचारी जनता द्वारा चुने जाने चाहिए, उन्हें जनता के आगे उत्तरदायी होना चाहिए और किसी भी समय जनता की माँग पर वापस बुलाया जा सकना चाहिए।

3. राष्ट्रीय गार्ड की केन्द्रीय समिति तथा कम्यून द्वारा उठाये गये इन सभी कदमों ने एक नये ही प्रकार के राज्य की नींव डाली, जिसकी इतिहास में पहले कोई मिसाल नहीं थी।

लेकिन स्वयं पेरिस के मज़दूरों और उनके नेताओं  क़म्यून के सदस्यों  तक को इसका अहसास नहीं था कि वे किस चीज़ का निर्माण कर रहे हैं। लोग और कम्यून में उनके प्रतिनिधि ज़िन्दगी के तकाज़ों के मुताबिक काम करते हुए जनसाधारण की सृजनात्मक शक्ति को ही साकार कर रहे थे। जनता की इस रचनात्मक शक्ति की दिशा और उसके वास्तविक महत्व का पहले-पहल कार्ल मार्क्‍स ने वर्णन किया था, जिन्होंने यह बताया कि 1871 का पेरिस कम्यून वस्तुत: उस सर्वहारा अधिनायकत्व का एक उदाहरण था, जिसके आगमन की उन्होंने अपनी 1848-1850 की कृतियों में घोषणा की थी।

पहले इण्‍टरनेशनल के अध्‍यक्ष, कार्ल मार्क्‍स

पहले इण्‍टरनेशनल के अध्‍यक्ष, कार्ल मार्क्‍स

4. निस्सन्देह, पेरिस कम्यून में सर्वहारा अधिनायकत्व का अपने पूर्ण रूप में विकसित हो पाना सम्भव नहीं था। कम्यून इस प्रकार के अधिनायकत्व की स्थापना का पहला ही प्रयास था। उसके नेता प्रयोग कर रहे थे और उन्होंने कई गम्भीर गलतियाँ भी कीं। फिर भी कम्यून ने यह दिखाया कि सर्वहारा वर्ग पूँजीवादी राज्यतन्त्र को नष्ट करने और उसके स्थान पर राज्यतन्त्र के उच्चतर स्वरूप की स्थापना करने में, और इस प्रकार लोकतन्त्र के उच्चतर स्वरूप  बहुलांश के हितों में, जनता के हितों में  सर्वहारा लोकतन्त्र का पथ प्रशस्त करने में समर्थ है और उसे ऐसा करना भी चाहिए।

Paris commune 2012-08-09_Page_09_Image_0004

पेरिस कम्यून की स्थापना के अगले दिन नेशनल गार्ड की केन्द्रीय कमेटी की ओर से जारी पोस्टर। इसमें कहा गया है - “नागरिको, पेरिस की जनता ने अपने ऊपर लदे हुए ग़ुलामी के बोझ को उतार फेंका है।--- पेरिस और फ़्रांस मिलकर एक गणराज्य की बुनियाद रखेंगे, और इससे होने वाले सारे परिणामों सहित इसकी घोषणा की जायेगी, यही एकमात्र ऐसी सरकार होगी जो हमेशा के लिए हमलों और गृहयुद्धों के युग का अन्त कर देगी।”

पेरिस कम्यून की स्थापना के अगले दिन नेशनल गार्ड की केन्द्रीय कमेटी की ओर से जारी पोस्टर। इसमें कहा गया है – “नागरिको, पेरिस की जनता ने अपने ऊपर लदे हुए ग़ुलामी के बोझ को उतार फेंका है।— पेरिस और फ़्रांस मिलकर एक गणराज्य की बुनियाद रखेंगे, और इससे होने वाले सारे परिणामों सहित इसकी घोषणा की जायेगी, यही एकमात्र ऐसी सरकार होगी जो हमेशा के लिए हमलों और गृहयुद्धों के युग का अन्त कर देगी।”

पेरिस में पैंथियन की इमारत पर लहराता कम्यून का लाल झण्डा।

पेरिस में पैंथियन की इमारत पर लहराता कम्यून का लाल झण्डा।

फ़्रांस में 1830 की क्रान्ति के प्रतीक जुलाई स्तम्भ पर भी कम्युनार्डों ने लाल झण्डा फहरा दिया।  “अभूतपूर्व कठिनाइयों से भरी स्थितियों में काम करते हुए कम्यून का टिका रहना ही उसकी सफलता का सबसे बड़ा पैमाना है! पेरिस कम्यून द्वारा फहराया गया लाल झण्डा पेरिस के लिए मज़दूरों की सरकार का निशान है! उन्होंने साफ़ तौर पर, सोच-समझकर ऐलान किया है कि श्रम की मुक्ति और समाज को बदल डालना उनका लक्ष्य है।” - मज़दूर वर्ग के महान नेता और शिक्षक कार्ल मार्क्स के शब्द

फ़्रांस में 1830 की क्रान्ति के प्रतीक जुलाई स्तम्भ पर भी कम्युनार्डों ने लाल झण्डा फहरा दिया।
“अभूतपूर्व कठिनाइयों से भरी स्थितियों में काम करते हुए कम्यून का टिका रहना ही उसकी सफलता का सबसे बड़ा पैमाना है! पेरिस कम्यून द्वारा फहराया गया लाल झण्डा पेरिस के लिए मज़दूरों की सरकार का निशान है! उन्होंने साफ़ तौर पर, सोच-समझकर ऐलान किया है कि श्रम की मुक्ति और समाज को बदल डालना उनका लक्ष्य है।” – मज़दूर वर्ग के महान नेता और शिक्षक कार्ल मार्क्स के शब्द

 

 

5. मात्र 72 दिन की अपनी छोटी-सी ज़िन्दगी के बावजूद कम्यून ने दिखा दिया कि वह वास्तव में एक लोकतान्त्रिक शासन था, जिसके लिए पहला और सबसे बड़ा सवाल मेहनतकश जनसाधारण का कल्याण था। राष्ट्रीय गार्ड की केन्द्रीय समिति ने सत्ता में आने के साथ कई नये महत्वपूर्ण क़ानून बनाये थे। क्रान्ति की सफलता के अगले ही दिन, 19 मार्च को उन सभी राजनीतिक बन्दियों की सज़ा माफी की घोषणा कर दी गयी, जिन्हें शोषक वर्गों की सरकार ने गिरफ्तार किया या सज़ा दी थी। गिरवी चीज़ों की बिक्री पर पाबन्दी लगाने और 15 फ़्रांक से कम मूल्य की गिरवी रखी वस्तुएँ उनके स्वामियों को लौटाने का आदेश तुरन्त जारी कर दिया गया। इसी प्रकार किराया न दे सकने पर किरायेदारों का मकानों से निकाला जाने पर भी रोक लगा दी गयी। इन सभी क़ानूनों का मकसद ग़रीबों और मेहनतकशों के हितों की रक्षा करना था। राष्ट्रीय गार्ड के सैनिकों को नियमित वेतन दिये जाने और ग़रीबों के लिए अनुदानस्वरूप बाँटे जाने के लिए दस लाख फ़्रांक जारी करने की आज्ञप्तियों का भी यही उद्देश्य था। कम्यून ने 16 अप्रैल को एक आज्ञप्ति जारी करके उन सभी उद्यमों को मज़दूरों और उत्पादकों के संघों को हस्तान्तरित कर दिया जिनके मालिक उन्हें छोड़कर भाग गये थे। यह आज्ञप्ति वास्तविक समाजवादी स्वरूप की थी और अगर कम्यून कुछ ज्यादा चला होता, तो निस्सन्देह उसका समाजवादी चरित्र और भी अधिक स्पष्टता के साथ सामने आया होता।

Paris commune 2012-08-09_Page_09_Image_0006

कम्युनार्डों द्वारा अपनी वर्दी पर लगाया जाने वाला बिल्ला। इस पर ये शब्द लिखे हैं - स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा।

कम्युनार्डों द्वारा अपनी वर्दी पर लगाया जाने वाला बिल्ला। इस पर ये शब्द लिखे हैं – स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा।

इसी प्रकार कम्यून ने पेरिस से भागे हुए बुर्जुआ मालिकों के सभी फ्लैटों को ज़ब्त करने और उन्हें नगर के रक्षकों को और सबसे पहले उन लोगों को, जिनके आवास लड़ाई के दौरान क्षतिग्रस्त हो गये थे, बाँटने की व्यवस्था की। चर्च को राजकाज से अलग कर दिया गया। जनसाधारण के बीच शिक्षा के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गये  लूव्र, त्यूइल्येरी तथा अमूल्य कला निधियों से युक्त अन्य संग्रहालयों और महलों को सर्वसाधरण के लिए खोल दिया गया और कला की सभी विधाओं तथा सभी के लिए स्कूली शिक्षा को हर तरह से बढ़ावा दिया गया।

29 मार्च को जारी कम्यून ने यह घोषणा कीः “अब आप ख़ुद अपनी तक़दीर के मालिक हैं। आपने अभी-अभी जिन प्रतिनिधियों को चुना है, वे आपके समर्थन के बलबूते पर, सत्ता से बेदखल किये गये शासकों द्वारा की गयी तमाम बर्बादियों की भरपायी करेंगेः अस्त-व्यस्त हो गये उद्योग, ठप्प हुए काम, बन्द पड़ी कारोबारी गतिविधियों को तेज़ी से शुरू किया जायेगा।”

29 मार्च को जारी कम्यून ने यह घोषणा कीः “अब आप ख़ुद अपनी तक़दीर के मालिक हैं। आपने अभी-अभी जिन प्रतिनिधियों को चुना है, वे आपके समर्थन के बलबूते पर, सत्ता से बेदखल किये गये शासकों द्वारा की गयी तमाम बर्बादियों की भरपायी करेंगेः अस्त-व्यस्त हो गये उद्योग, ठप्प हुए काम, बन्द पड़ी कारोबारी गतिविधियों को तेज़ी से शुरू किया जायेगा।”

कम्यून की ओर से निकलने वाले एक अख़बार का मुखपृष्ठ

कम्यून की ओर से निकलने वाले एक अख़बार का मुखपृष्ठ

 

6. इन सभी उपायों से कम्यून ने अच्छी तरह से साबित कर दिया कि मेहनतकश वर्ग की सरकार जनता के कल्याण के लिए कितना ज़बर्दस्त काम कर सकती है। लेकिन कम्यून की उपलब्धियों को अमर बना देने वाले इन क़दमों के साथ-साथ कई ग़लतियाँ भी की गयीं, जो प्रतिक्रान्तिकारी पूँजीपति के विरुद्ध संघर्ष के लिए घातक सिद्ध हुईं।

कम्यून की ओर से चलाये जाने वाले एक सामूहिक भोजनालय के बाहर लोगों का समूह। कम्यून के लिए दिनों-रात काम करने वाले लोगों और ग़रीब मेहनतकशों की मदद के लिए ऐसे अनगिनत भोजनालय, चिकित्सालय और बच्चों की देखभाल के केन्द्र चलाये जा रहे थे। इनकी ज़ि‍म्मेदारी उठाने में सबसे बड़ी भूमिका औरतों की थी।

कम्यून की ओर से चलाये जाने वाले एक सामूहिक भोजनालय के बाहर लोगों का समूह। कम्यून के लिए दिनों-रात काम करने वाले लोगों और ग़रीब मेहनतकशों की मदद के लिए ऐसे अनगिनत भोजनालय, चिकित्सालय और बच्चों की देखभाल के केन्द्र चलाये जा रहे थे। इनकी ज़ि‍म्मेदारी उठाने में सबसे बड़ी भूमिका औरतों की थी।

इनमें से सबसे बड़ी ग़लतियाँ वही थीं, जो 18 मार्च की शानदार विजय के लगभग तुरन्त बाद की गयी थीं। पहली बात तो यही थी कि कम्यूनार्डों ने उन सैन्य दलों को नगर से बेरोकटोक चले जाने दिया, जो थियेर के प्रति वफादार थे। इससे भी बड़ी ग़लती यह थी कि पेरिस के लोग अपनी विजय को उसकी तर्कसंगत परिणति पर नहीं ले गये, यानी तुरन्त बढ़कर वर्साई जाने, थियेर की हतोत्साह सेना पर संहारक प्रहार करने और देशभर में क्रान्ति की विजय सुनिश्चित करने के लिए लड़ते रहने के बजाय राष्ट्रीय गार्ड की केन्द्रीय समिति निष्क्रिय बैठकर यह देखने लगी कि पाँसा किस तरफ पलटेगा। इस घातक विलम्ब ने वर्साई स्थित सरकार के लिए अपनी आरम्भिक पराजय से सँभलना, क्रान्ति को पेरिस तक ही सीमित कर देना और शहर पर जवाबी हमले की तैयारी करना सम्भव बना दिया।

इस चित्र में कम्यून को एक स्त्री के रूप में दिखाया गया है जो एक हाथ से “अज्ञान” को और दूसरे हाथ से “प्रतिक्रियावाद” नाम के दो बौने शैतानों को दबोचे हुए है। कम्यून ने दकियानूसी और राजकाज में धर्म की दखल पर कैसी चोट की थी इसकी झलक नीचे दिये गये एक नोटिस को पढ़कर मिल जाती है। पेरिस में मोन्तमार्त्र के चर्च के बन्द दरवाज़ों पर चिपकाये गये इस नोटिस में लिखा थाः “चुँकि पादरी डाकू होते हैं और चर्च उनके अड्डे जहाँ वे जनता की नैतिक हत्याएँ किया करते हैं, और फ़्रांस को बदनाम बोनापार्त, फाव्र और त्रेचू (शासक और मंत्री) के आगे घुटने टेकने को मजबूर करते हैं; इसलिए पुराने पुलिस ज़ि‍ले के पत्थर काटने वाले कारीगरों के प्रतिनिधि यह आदेश देते हैं कि सेंट-पियेर का गिरजाघर बन्द कर दिया जाये, और इसके पादरियों तथा उनके मूढ़मति चेलों को गिरफ्तार कर लिया जाये।”

इस चित्र में कम्यून को एक स्त्री के रूप में दिखाया गया है जो एक हाथ से “अज्ञान” को और दूसरे हाथ से “प्रतिक्रियावाद” नाम के दो बौने शैतानों को दबोचे हुए है।
कम्यून ने दकियानूसी और राजकाज में धर्म की दखल पर कैसी चोट की थी इसकी झलक नीचे दिये गये एक नोटिस को पढ़कर मिल जाती है। पेरिस में मोन्तमार्त्र के चर्च के बन्द दरवाज़ों पर चिपकाये गये इस नोटिस में लिखा थाः “चुँकि पादरी डाकू होते हैं और चर्च उनके अड्डे जहाँ वे जनता की नैतिक हत्याएँ किया करते हैं, और फ़्रांस को बदनाम बोनापार्त, फाव्र और त्रेचू (शासक और मंत्री) के आगे घुटने टेकने को मजबूर करते हैं; इसलिए पुराने पुलिस ज़ि‍ले के पत्थर काटने वाले कारीगरों के प्रतिनिधि यह आदेश देते हैं कि सेंट-पियेर का गिरजाघर बन्द कर दिया जाये, और इसके पादरियों तथा उनके मूढ़मति चेलों को गिरफ्तार कर लिया जाये।”

7. 18 मार्च के फौरन बाद कई और नगरों — लियों, मार्सेई, साँ-एत्येन, तुलूज़, पपीन्न्याँ, क्रेज़ो, आदि — में भी कम्यूनों की स्थापना हो गयी। यह इस बात का प्रमाण था कि पेरिस में जो जन विद्रोह फूटा था, वह फैलकर सारे देश को भी अपने घेरे में ले सकता था। लेकिन कम्यून के नेता आक्रामक कार्रवाइयों की नितान्त आवश्यकता को समझ नहीं सके। इसने पूँजीपति वर्ग के लिए देश के विभिन्न भागों में क्रान्ति के अलग-अलग केन्द्रों को कुचल देना सम्भव बना दिया। अप्रैल के आरम्भ तक प्रान्तों में इन सभी विद्रोहों को कुचला जा चुका था और बुर्जुआ प्रतिक्रान्तिकारी शक्तियों के लिए अपने सभी प्रयासों को पेरिस के विरुद्ध संकेन्द्रित कर देना सम्भव हो गया था।

इस समय तक पेरिस देश के अन्य भागों से कट चुका था। इन हालात में राजधानी के मज़दूर देहातों के किसान समुदाय के साथ आवश्यक गँठजोड़ क़ायम नहीं कर पाया। कम्यून के नेताओं को इस कार्यभार का अहसास था और क्रान्तिकारी सरकार ने किसानों को सम्बोधित बहुत-सी अपीलें भी जारी कीं। लेकिन कम्यूनार्ड किसान समुदाय के साथ मोर्चा बना पाने और उनके समर्थन का उपयोग कर सकने की स्थिति में किसी भी प्रकार नहीं थे।

कम्यून ने खेत मज़दूरों और किसानों से पेरिस कम्यून का साथ देने की अपील की। देहात में बड़ी संख्या में पर्चे बाँटे गये जिनमें यह सरल मगर शक्तिशाली सन्देश थाः “हमारे हित एक ही हैं।” मज़दूरों ने उस वक़्त विज्ञान की नयी खोज, गर्म हवा के गुब्बारे का भी लाभ उठाया और देहातों में उससे पर्चे गिराये जिनमें कहा गया थाः “गाँवों में रहने वाले लोगो, आप आसानी से देख सकते हैं कि जिन उद्देश्यों के लिए पेरिस लड़ रहा है, वे आपके भी हैं; यानी मज़दूर की मदद करके आप अपनी भी मदद कर रहे हैं। जो जनरल इस समय पेरिस पर हमला कर रहे हैं वे वही हैं जिन्होंने फ्रांस की रक्षा के साथ ग़द्दारी की थी।---अगर पेरिस की हार होती है, तो आपकी गर्दन पर रखा ग़ुलामी का जुवा आपके बच्चों की गर्दन पर भी बना रहेगा। इसलिए पेरिस को जीतने में मदद करें। हर हाल में इन लक्ष्यों को याद रखें क्योंकि जब तक ये पूरे नहीं होंगे तब तक दुनिया में क्रान्तियाँ होती रहेंगीः ज़मीन जोतने वाले को, उत्पादन के साधन मज़दूर को, हर हाथ को काम।

कम्यून ने खेत मज़दूरों और किसानों से पेरिस कम्यून का साथ देने की अपील की। देहात में बड़ी संख्या में पर्चे बाँटे गये जिनमें यह सरल मगर शक्तिशाली सन्देश थाः “हमारे हित एक ही हैं।” मज़दूरों ने उस वक़्त विज्ञान की नयी खोज, गर्म हवा के गुब्बारे का भी लाभ उठाया और देहातों में उससे पर्चे गिराये जिनमें कहा गया थाः “गाँवों में रहने वाले लोगो, आप आसानी से देख सकते हैं कि जिन उद्देश्यों के लिए पेरिस लड़ रहा है, वे आपके भी हैं; यानी मज़दूर की मदद करके आप अपनी भी मदद कर रहे हैं। जो जनरल इस समय पेरिस पर हमला कर रहे हैं वे वही हैं जिन्होंने फ्रांस की रक्षा के साथ ग़द्दारी की थी।—अगर पेरिस की हार होती है, तो आपकी गर्दन पर रखा ग़ुलामी का जुवा आपके बच्चों की गर्दन पर भी बना रहेगा। इसलिए पेरिस को जीतने में मदद करें। हर हाल में इन लक्ष्यों को याद रखें क्योंकि जब तक ये पूरे नहीं होंगे तब तक दुनिया में क्रान्तियाँ होती रहेंगीः ज़मीन जोतने वाले को, उत्पादन के साधन मज़दूर को, हर हाथ को काम।

8. कम्यून की अगुवाई में समाज की जो सामाजिक और राजनीतिक शक्ल धीरे-धीरे उभर रही थी वह निस्सन्देह समाजवादी थी। लेकिन ऐसे किसी समाज की पहले से कोई नज़ीर नहीं थी, उनके पास कोई स्पष्ट और तैयार कार्यक्रम भी नहीं था, वे चारों ओर से ख़ून के प्यासे दुश्मनों से घिरे हुए थे और घेरेबन्दी तथा युद्ध ने भारी सामाजिक तथा आर्थिक अव्यवस्था पैदा कर दी थी। ऐसे में मज़दूरों को अपने हितों के अनुरूप समाज को संगठित करने की ठोस ज़रूरतों के मुताबिक तुरन्त-तुरन्त नये-नये निर्णय लेने पड़ते थे। उन्होंने बहुत-सी ग़लतियाँ कीं, लेकिन फिर भी, मज़दूरों द्वारा उठाये गये सभी महत्वपूर्ण क़दमों की दिशा उजरती मज़दूरों के वर्ग की सम्पूर्ण सामाजिक और आर्थिक मुक्ति की ओर संकेत करती थी। मगर कम्यून की त्रासदी यह थी कि उसे वक्त बिल्कुल नहीं मिला। समाजवाद की दिशा में बढ़ने की किसी भी सम्भावना को थियेर की सेनाओं की वापसी और उसके बाद हुए भयानक ख़ून-ख़राबे ने ख़त्म कर दिया।

Paris commune 2012-08-09_Page_10_Image_0003

पेरिस कम्यून के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए ब्रिटेन, जर्मनी और यूरोप के कई अन्य देशों में आन्दोलन उठ खड़े हुए। मार्क्स के प्रस्ताव पर इंटरनेशनल की जनरल काउंसिल ने पेरिस की घटनाओं के बारे में मज़दूरों को बताने के लिए अपने सदस्य जगह-जगह भेजने का प्रस्ताव पारित किया।
लन्दन में पेरिस कम्यून के समर्थन में एक प्रदर्शन का चित्र और ऐसे ही एक अन्य प्रदर्शन का पोस्टर जिसमें मज़दूरों से हज़ारों की संख्या में इकट्ठा होकर पेरिस में अपने साथियों के साथ एकजुटता दिखाने का आह्वान किया गया है।

 

…अगले अंक में जारी


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments