बंग्लादेश की हत्यारी गारमेंट फैक्टरियां
जय पुष्प
गत 24 नवंबर को यूरोप और अमेरिका के बड़े-बड़े ब्रांडों के लिए कपड़े बनाने वाली बंग्लादेश की एक गारमेंट फ़ैक्टरी में लगी भीषण आग ने कम से कम 112 मज़दूरों को मौत की नींद सुला दिया। ताजरीन फैशंस लिमिटेड नामकी यह फ़ैक्टरी वाल-मार्ट, कैरेफोर और आईकेईए जैसे बड़े विदेशी ग्राहकों के लिए कपड़े बनाती थी। इसमें काम करने वाले मज़दूरों ने घटना के बाद बताया कि इस फ़ैक्टरी में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे। अग्निशमक यन्त्र केवल जांचकर्ताओं को दिखाने के लिए लगाए गए थे। पूरी फ़ैक्टरी में एकदम अव्यवस्थित तरीके से काम होता था अैर कोई आपातकालीन निकास नहीं था। वहीं सामान्य तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले निकासद्वारों को बाहर से ताला लगाकर बन्द कर दिया गया था। जब आग का अलार्म बजा तो सुपरवाइज़रों ने मज़दूरों को काम छोड़कर भागने के बजाय काम करते रहने का आदेश दिया। 2009 में स्थापित इस फ़ैक्टरी में 1500 मज़दूर काम करते थे। घटना के समय फैली अफरातफरी और मौत के मुंह में फंसे मज़दूरों की मजबूरी का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई मज़दूर इस आठ मंज़िला इमारत की ऊपरी मंजिलों की खिड़कियों से नीचे कूद पड़े।
बंग्लादेश और भारत सहित तीसरी दुनिया के अन्य देशों के लिए यह कोई नयी घटना नहीं है। सुरक्षा उपकरणों और सुरक्षा व्यवस्था की आपराधिक उपेक्षा और काम के जानलेवा हालात बंग्लादेश की लगभग सभी फैक्टरियों में स्थायी तौर पर विद्यमान रहते हैं। पिछले छह सालों में सिर्फ फैक्टरियों में लगी आग ही 300 से ज्यादा मज़दूरों की जिन्दगी लील चुकी है। हालिया घटना इस बात का सबूत है कि पिछली घटनाओं से मालिकों और सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा है बल्कि स्थितियां बद से बदतर ही होती गयी हैं।
भारत, बंग्लादेश, इंडोनेशिया, चीन, मेक्सिको, ब्राजील जैसे तीसरी दुनिया के और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की सस्ती श्रमशक्ति और लचर श्रम कानूनों और साथ ही कमज़ोर ट्रेड यूनियन आन्दोलन से उत्पन्न हुई परिस्थितियों का फ़ायदा उठाने के लिए दुनिया भर की कम्पनियों का इन देशों का रुख करना एक ट्रेंड बन गया है। इन देशों में व्यापक पैमाने पर ठेके और पीसरेट पर मज़दूरों से काम करवाया जाता है और इस तरह बड़ी-बड़ी कम्पनियां मज़दूरों के प्रति किसी भी जवाबदेही से अपने आप को बचा लेती हैं। सस्ते से सस्ता काम करवाने के लिए वे अपना काम इन देशों की कम्पनियों को आउटसोर्स करती हैं और वालमार्ट जैसी कम्पनियां इतने पर भी अपने आउटसोर्सरों पर लगातार दबाव डालती रहती हैं। इसका नतीजा होता है कि अपना मुनाफ़ा बनाए रखने के लिए तीसरी दुनिया के देशों की कम्पनियां मज़दूरों की सुविधाओं में हर तरह की कटौती करती हैं, सुरक्षा व्यवस्था को बिल्कुल ही नज़रन्दाज़ कर देती हैं और शोषण और उत्पीड़न के नित नए तरीक़े ईजाद करती रहती हैं।
कम्पनी मालिकों को इन देशों की सरकारों का पूरा समर्थन रहता है। एक्सपोर्ट से होने वाली आय पर ये देश इतने निर्भर हैं कि मालिकों के मनमानेपन पर लगाम लगाना तो दूर उल्टे वे उनका पूरा पक्षपोषण करते हैं। हैरानी की बात नहीं कि साल-दर-साल फ़ैक्टरी दुर्घटनाओं में मज़दूरों की बड़ी संख्या में मौत होने के बावजूद फ़ैक्टरी मालिकों पर आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
बंग्लादेश में लगभग 4000 गारमेंट फ़ैक्टरियां हैं जो विदेशी कम्पनियों को गारमेंट एक्सपोर्ट करती हैं। बंग्लादेश का यह व्यवसाय लगभग 20 अरब डालर का है और कहने की बात नहीं कि बंग्लादेशी पूंजीपतियों और वहां की सरकार के लिए यह सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी की तरह है। वस्त्र उद्योग का काम गहन श्रम की मांग करता है और यह बड़े पैमाने पर रोज़गार देने वाला काम है जिसमें महिलाओं का अनुपात अपेक्षाकृत काफ़ी ज़्यादा है। सस्ते माल उत्पादन के लिए बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियां बंग्लादेशी कम्पनियों को काम आउटसोर्स करती हैं और मानवाधिकारेां के लिए दुनियाभर में घड़ियाली आंसू बहाने के बावजूद वे खुद अपना काम करने वाली फ़ैक्टरियों के नारकीय हालात के बारे में अक्सर चुप ही रहती हैं। ताजरीन नामकी जिस फ़ैक्टरी में हालिया घटन घटी उसे अभी पिछले ही साल वालमार्ट ने ‘‘उच्च जोखिम’’ की रेटिंग दी थी। घटना के बाद वालमार्ट ने जल्दी यह स्वीकार भी नहीं किया कि ताजरीन में उसका काम होता था। वो तो जली हुई फ़ैक्टरी की राख उलटते-पुलटते हुए लोगों को वालमार्ट का टैग मिला जिससे इस तथ्य की पुष्टि हुई।
खुद को महान देशभक्त कहने वाले पूंजीपतियों को अपने देश के मज़दूरों का अमानवीय शोषण करने में कोई हिचक नहीं महसूस होती। उन्होंने तो पहले ही अपने देश की जनता के लिए ‘‘मानवीय संपदा’’ जैसा शब्द गढ़ लिया है जो उनके हर अनैतिक-अत्याचारी बर्ताव पर मुलम्मा चढ़ा देता है। इस काम में स्थानीय राजनेता उनका पूरा साथ देते हैं। बल्कि इससे भी आगे बढ़कर वे इन देशी-विदेशी कंपनियों के मुनाफ़े की हवस को पूरा करने के लिए उदारीकरण की नीतियां लागू करते हैं श्रम कानूनों को और भी निष्प्रभावी बनाते जाते हैं और मज़दूर वर्ग के हित के प्रति एकदम आंख मूंदे रहते हैं। उनके इस काम में संशोधानवादी वामपन्थी पार्टियां भी पूरा साथ देती हैं जिन्होंने मज़दूर आन्दोलन को आज अपने रसातल में पहुंचा दिया है। यूं ही नहीं उन्हें बुर्जुआ जनवाद की दूसरी सुरक्षा पंक्ति कहा जाता है।
इस घटना के बाद बंग्लोदश में एक दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गयी। झण्डे आधा झुका दिए गए। मृत मज़दूरों के परिवारों को आर्थिक मुआवजा देने की घोषणाएं की गईं। लेकिन इस जघन्य हत्याकाण्ड को अंजाम देने वाले अभी भी पकड़े नहीं गए हैं। मज़दूरों की स्थितियों को सुधारने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई कारगर प्रयास अभी तक शुरू नहीं किया गया है। केवल तात्कालिक खानापूरी की जा रही है।
बंग्लादेश का मज़दूर वर्ग बिल्कुल उन्हीं परिस्थितियों और परेशानियों से गुजर रहा है जिससे होकर भारत का मज़दूर वर्ग गुजर रहा है। आज दुनिया के ज़्यादातर देशों में मज़दूरों के हालात एक जैसे संगीन हैं। आज दुनिया के पैमाने पर मज़दूरआन्दोलन भी पहले की अपेक्षा कमजोर स्थिति में है। ऐसी परिस्थिति में बेहद ज़रूरी है कि दुनियाभर के मज़दूर एकसाथ मिलकर अपनी मुक्ति की लड़ाई लड़ें। आज की परिस्थितियों ने पूरी दुनिया के मज़दूरों को एक दूसरे के एकदम करीब ला दिया है। उन्हें एक अदृश्य श्रृंखला में जोड़ दिया है और इसने पूरी दुनिया के मज़दूर वर्ग के सहयोग की नयी परिस्थिति उत्पन्न कर दी हैं!
मज़दूर बिगुल, नवम्बर-दिसम्बर 2012
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन