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(मज़दूर बिगुल के अक्टूबर 2012 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
अर्थनीति : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
भ्रष्टाचार का राजनीतिक अर्थशास्त्र – भ्रष्टाचार आदिम पूँजी संचय का ही एक रूप है / आलोक रंजन
फासीवाद
आने वाले चुनाव और ज़ोर पकड़ती साम्प्रदायिक लहर / कविता कृष्णपल्लवी
संघर्षरत जनता
हक़ और इंसाफ़ के लिए लुधियाना के मज़दूरों के आगे बढ़ते क़दम / राजविन्दर
महान शिक्षकों की कलम से
स्त्री मज़दूर
स्त्री मज़दूरों और उनकी माँगों के प्रति पुरुष मज़दूरों का नज़रिया / कविता कृष्णपल्लवी
बाल मज़दूर
लेखमाला
पेरिस कम्यून: पहले मज़दूर राज की सचित्र कथा (सातवीं किश्त)
कारखाना इलाक़ों से
रोज़ी-रोटी की तलाश में शहर आये एक मज़दूर की कहानी, उसी की ज़ुबानी / प्रस्तुतिः रामाधार
पॉलिथीन कारख़ानों के मज़दूरों की हालत / मोती, दिल्ली
मज़दूर बस्तियों से
मज़दूरों का अमानवीकरण / शिवानन्द
बस फ़ैक्ट्री ही दिखाई पड़ती है / शिवशरण, बादली
गतिविधि रिपोर्ट
कारख़ाना मज़दूर यूनियन ने लुधियाना में लगाया मेडिकल कैम्प
कला-साहित्य
दक्षिण अफ्रीकी कहानी – अँधेरी कोठरी में / अलेक्स ला गुमा
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन