मोदी के गुजरात “विकास” का सच
नमिता
भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी आजकल चुनावी रैलियों में बाक़ी पार्टियों को पानी पी-पीकर कोस रहे हैं और गुजरात में होने वाले “विकास” पर फूले नहीं समा रहे हैं। कांग्रेस, सपा, बसपा को कोसते हुए कह रहे हैं कि गुजरात में हर जगह सुख-सुविधा, अमन-चैन है। बाक़ी जगह माँएँ अपने बच्चों को लेकर आशंकित रहती हैं कि वो शाम को सही-सलामत घर लौटेगा या नहीं। गुजरात पहुँचने पर कहती हैं कि अब मुझे चैन आया कि तू गुजरात पहुँच गया अब मुझे कोई चिन्ता नहीं। अब मैं चैन से सो सकती हूँ।
लेकिन उनके शाइनिंग गुजरात की पोल खोलते हुए कैग की ताज़ा रिपोर्ट अभी सामने आयी कि गुजरात में कुपोषण और कम वज़न के बच्चे सबसे ज़्यादा हैं।
महिला एवं बाल विकास मन्त्री वासुबेन त्रिवेदी ने राज्य सभा में कहा कि इस अगस्त में राज्य के 14 ज़िलों में लगभग 6-13 लाख बच्चे ऐसे हैं जो कुपोषण और अत्यधिक कुपोषण के शिकार हैं। अकेले अहमदाबाद ज़िले में, जोकि राज्य की औद्योगिक राजधानी है, 85,000 से भी ज़्यादा बच्चे भूख और कुपोषण के शिकार हैं। मन्त्री ने संसद में बताया कि सिर्फ़ अहमदाबाद शहर में ही 54,975 बच्चे कुपोषित और 3,860 भयंकर कुपोषण के शिकार हैं। गुजरात में हर तीन में से एक बच्चा कम वज़न का है।
अर्जेण्टीना के प्रसिद्ध लेखक एदुआर्दो खालियानो का यह कथन याद आता है कि “जिस धरती पर हर अगले मिनट एक बच्चा भूख या बीमारी से मरता हो वहाँ पर शासक वर्ग की दृष्टि से चीज़ों को समझने के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाता है। लोग व्यवस्था को देशभक्ति से जोड़ लेते हैं और इस तरह व्यवस्था का विरोधी एक देशद्रोही या विदेशी एजेण्ट बन जाता है। जंगल के क़ानून को पवित्र रूप दे दिया जाता है, ताकि पराजित लोग अपनी हालत को नियति समझ बैठें।”
एक तरफ़ कुपोषण और भूख से बच्चे मर रहे हैं और दूसरी तरफ़ गोदामों में अनाज सड़ रहा है। एक तरफ़ जहाँ ग़रीबों के मुँह का निवाला छीन लिया जाता है, वहीं दूसरी तरफ़ अमीरों का एक ख़ुशहाल तबक़ा ऐसा है जो जितना खाता है, उससे ज़्यादा बर्बाद करता है।
यह सोचना कठिन नहीं है कि गुजरात में “विकास” हुआ है तो किसकी हड्डियों को चूसकर। और मोदी चाहे जितना चिल्ल-पों मचा ले जनता से यह सच्चाई छुपी नहीं है कि चाहे मोदी हो, यूपी सरकार या केन्द्र सरकार, मेहनतकशों के ख़ून से ही कुछ हिस्से को “विकास” का तोहफ़ा मिल रहा है।
“विकास” के रथ के पहिये हमेशा ही मेहनतकशों के ख़ून से लथपथ होते हैं। “विकास” के तमाम दावों का मतलब होता है मज़दूरों की लूट-खसोट में और बढ़ोत्तरी।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2013
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