मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (पॉंचवीं क़िस्त)
सनी
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इस लेख श्रृंखला की चार किस्तों में हमने मज़दूर पार्टी के क्रान्तिकारी प्रचार के स्वरूप पर बात की थी। लेनिन ने रूस में कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के समक्ष ‘कहाँ से शुरूआत करें’ लेख में निम्न क्रम में बात रखने की योजना बनायी थी: क्रान्तिकारी प्रचार पर, सांगठनिक कार्यभार, अखिल रूसी क्रान्तिकारी पार्टी बनाने की योजना। इस लेख का स्वरूप भी लेनिन की इस योजना की रोशनी में हमने तय किया है। क्रान्तिकारी प्रचार की समस्याओं पर चर्चा करने के बाद हम मज़दूर पार्टी के सांगठनिक स्वरूप पर चर्चा करेंगे। हम पहले इतिहास के ज़रिए यह समझने का प्रयास करेंगे कि किस प्रकार पार्टी की अवधारणा जन्मी और किस तरह लेनिन ने पार्टी की अवधारणा को विकसित किया।
हम इतिहास में पीछे मुड़कर देखें तो मार्क्स और एंगेल्स के नेतृत्व में बनी मज़दूर वर्ग की पार्टी के ढाँचे का पहला प्रारूप कम्युनिस्ट लीग के रूप में सामने आया। यूरोप में क्रान्तिकारी उभार के दौर में हिरावल वर्ग और उसके संगठन को बेशकीमती अनुभव प्राप्त हुए। ‘लीग ऑफ जस्ट’ से ‘कम्युनिस्ट लीग’ बनना वह पहला क़दम था जब सर्वहारा वर्ग के हिरावल दस्ते को कम्युनिस्ट सांगठनिक रूप मिला। बाद में मार्क्स व एंगेल्स ने प्रथम इण्टरनेशनल की स्थापना की, जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वहारा वर्ग का संगठन था। 1860 के दशक में मज़दूर आन्दोलन के एक बार फिर तीव्र होने पर यह संगठन एक राजनीतिक नेतृत्व, तालमेल केन्द्र तथा परामर्शदाता के रूप में काम कर रहा था। मार्क्स के बाद एंगेल्स के नेतृत्व में ही आठवें और नौवें दशक में यूरोप में कम्युनिस्ट पार्टियाँ खड़ी होने लगी थीं। कम्युनिस्ट पार्टी का ढाँचा कोई पहले से बना-बनाया सिद्धान्त नहीं था बल्कि यह पूँजीवादी राज्यसत्ता के बदलते स्वरूप के साथ विकसित हुआ।
इस पर साथी अभिनव लिखते हैं कि: ‘’मार्क्स और एंगेल्स के काल में बुर्जुआ राज्यसत्ता का पूरा ढाँचा उस कदर व्यापक, व्यवस्थित और सुदृढ़ीकृत नहीं हुआ था, जिस कदर वह लेनिन के काल में हो चुका था। एंगेल्स के जीवनकाल के उत्तरार्द्ध में ऐसी कम्युनिस्ट पार्टियाँ बनने लगी थीं, जो अगर बोल्शेविक पार्टी जैसी नहीं थीं तो जन पार्टी जैसी भी नहीं थीं। लेनिन ने पार्टी सिद्धान्त को पहली बार व्यवस्थित किया, बल्कि कहना चाहिए कि मार्क्सवाद के पार्टी सिद्धान्त के निर्माता लेनिन ही थे।’’
मार्क्स-एंगेल्स से पहले मजदूरों की पार्टी का चरित्र जनपार्टी, अध्ययन चक्रों या तख़्तापलट के लिए बनाये गुप्त संगठनों सरीखा ही था। मार्क्स और एंगेल्स ने कम्युनिस्ट लीग के ज़रिए संगठन का एक स्पष्ट ढाँचा देने का प्रयास किया। इससे पहले मजदूरों ने जो संगठन बनाये वे चार्टिस्ट पार्टी, लीग ऑफ जस्ट और एसोसिएशन यानी जनपार्टी अथवा संगठन सरीखे सांगठनिक ढाँचे थे। इनका चरित्र तख़्तापलट के लिए बने दस्तों या अध्ययन चक्र के जाल सरीखा या जनसंगठन सरीखा था। ये ढाँचे वर्ग संघर्ष की आँच में तपकर मजबूत होते गये। इस प्रक्रिया में कम्युनिस्ट सांगठनिक उसूल भी पैदा हुए। इन्हें सूत्रबद्ध करने का काम बाद में सबसे व्यवस्थित और सुसंगत रूप में लेनिन ने किया।
पूँजीवाद के अन्तिम मंज़िल में पहुँचने पर पूँजीवादी राज्य का सैन्यकरण तथा अतिकेन्द्रीकरण होता है। मज़दूर वर्ग की पार्टी की बोल्शेविक अवधारणा भी एक ज़रूरत बन जाती है। लेनिनवादी पार्टी की अवधारणा जैकोबिन दल या कम्युनिस्ट लीग से अलग था। यही हो भी सकता था। यह वर्ग संघर्ष के तीखे होने और उसके साथ ही सर्वहारा वर्ग के हिरावल के केन्द्रीकृत सांगठनिक ढाँचे की आवश्यकता के अनुरूप पैदा होने वाला सांगठनिक रूप था। सर्वहारा वर्ग की पहली सचेतन क्रान्ति को अंजाम देने वाली बोल्शेविक पार्टी का सांगठनिक ढाँचा इतिहास की एक लम्बी प्रक्रिया का उत्पाद है। संगठन के स्वरूप के इतिहास पर चर्चा की शुरुआत जैकोबिन दल से की जा सकती है।
ग़ौरतलब है कि जब लेनिन ने रूस के कम्युनिस्ट आन्दोलन में मौजूद दो प्रवृत्तियों की पहचान की तो बहुतेरी जगह अवसरवादी धड़े और क्रान्तिकारी धड़े की तुलना फ्रांसीसी क्रान्ति में बुर्जुआ वर्ग के नेतृत्व में मौजूद दो प्रवृत्तियों से किया। जैकोबिन दल ही इतिहास में संगठन का वह पहला रूप था जिसमें क्रान्तिकारी बुर्जुआ वर्ग संगठित हुआ था। इसके नेतृत्व में ही मेहनतकश वर्ग भी गोलबन्द हुए क्योंकि उस समय व्यापक मेहनतकश जनता, मध्यवर्ग, और बुर्जुआ वर्ग का एक साझा दुश्मन था: सामन्तवाद और राजशाही। इस इतिहास पर चर्चा करना वर्ग संघर्ष में हिरावल की भूमिका और सांगठनिक रूप के लिए ज़रूरी है, महज़ कोई अकादमिक क़वायद नहीं। निरंकुशता और प्रतिक्रान्ति के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले जैकोबिन्स के बरक्स जिरोंदिन दल ने समझौतापरस्ती की। लेनिन ने ‘समाजवादी जिरोंददल’ रूसी अवसरवादियों को कहा और ‘सर्वहारा जैकोबिन’ क्रान्तिकारी धड़े को। बोल्शेविक पार्टी के बीच इन दो प्रवृत्तियों की चर्चा रूसी कम्युनिस्ट आन्दोलन में कई जगह मिलती है। प्लेखानोव भी अपने क्रान्तिकारी दौर में दो धड़ों की इस तुलना का ही प्रयोग करते हैं। लेनिन जैकोबिनपंथ की चर्चा कुछ इस तरह करते हैं :
“सर्वहारा वर्ग के इतिहासकार जैकोबिनवाद को उत्पीड़ित वर्ग की स्वतन्त्रता के एक उच्चत्तम संघर्ष के रूप में देखते हैं…बीसवीं सदी में जैकोबिनवाद यूरोप और एशिया (रूस में) के सीमान्तों पर क्रान्तिकारी सर्वहारा क्रान्तिकारी वर्ग का शासन होगा जिसको किसानों का समर्थन होगा और समाजवाद की ओर अग्रसर होने का भौतिक आधार मौजूद होगा। यह न सिर्फ़ 18 वीं शताब्दी के जैकोबिन्स की क्रान्ति के महान और अमिट उपलब्धियाँ भी मुहैया देगा बल्कि यह मज़दूरों की एक विश्व-विजयी जीत की ओर रुख़ कर सकता है… वह जैकोबिन जो सच्चे मायनों में वर्ग हितों को समझा है और सच्चे अर्थों में सर्वहारा वर्ग का हिरावल है, वह एक बोल्शेविक है!”
लेनिन जैकोबिन्स की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं। जैकोबिन दल ने ही 1789 के बाद क्रान्ति को उसके अंजाम तक पहुँचाने का काम किया जिसमें उसे आम मेहनतकश जनता का समर्थन मिला। इस क्रान्ति में सचेतनता के तत्व भी थे। प्रबोधन काल के दार्शनिकों ने एक स्पष्ट राजनीतिक आधार दिया। एंगेल्स फ्रांसीसी क्रान्ति का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि:
“महान फ्रांसीसी क्रान्ति बुर्जुआ वर्ग का तीसरा और धार्मिक चोगे को उतार फेंकने के मायने में पहला उभार था जो स्पष्ट राजनीतिक समझ पर लड़ा गया; यह इस मायने में भी पहला था जहाँ एक प्रतिद्वन्द्वी यानी राजशाही का समूल नाश हुआ और दूसरे प्रतिद्वन्द्वी यानी कि बुर्जुआ वर्ग की पूर्ण विजय हुई।
“फ्रांस में क्रान्ति ने अतीत की सभी परम्पराओं से पूर्ण विच्छेद किया; क्रान्ति ने सामन्तवाद के अवशेषों को साफ़ कर दिया और कोड सिविल के रूप में रोमन क़ानून का निपुण रूपान्तरण तैयार किया जो कि मार्क्स द्वारा मालों के उत्पादन की आर्थिक मंज़िल–पूँजीवाद के क़ानूनी सम्बन्धों को लगभग पूर्णता से अभिव्यक्त करता था।”
यूरोप में 15वीं सदी में पूँजीवाद के उदय की शुरुआत हुई। सामन्ती समाज के गर्भ में ही जन्मे बुर्जुआ वर्ग ने क़दम ब क़दम अपने को मज़बूत किया और एक लम्बे ऐतिहासिक संघर्ष में सामन्ती शासन को ख़त्म किया। बुर्जुआ वर्ग ने इस संघर्ष में अपने साथ मेहनतकश वर्गों को साथ लिया। एंगेल्स बुर्जुआ वर्ग के निम्न तीन महान संघर्षों का ज़िक्र करते हैं: जर्मन किसान विद्रोह, अंग्रेज़ी क्रान्ति और फ्रांसीसी कान्ति। फ्रांसीसी क्रान्ति इनमें सबसे प्रमुख है जिसने आमूलचूल तरीके से सामन्ती शासन को उखाड़ फेंका। फ्रांसीसी क्रान्ति को अपने अंजाम तक पहुँचाने का काम जैकोबिन दल के नेतृत्व में हुआ। 1789 के बाद 1791 के गृहयुद्ध में जैकोबिन्स को आम मेहनतकश वर्गों का समर्थन मिला 1792 से 1794 तक जैकोबिन दल के नेतृत्व में क्रान्तिकारी सरकार कायम रही। मार्क्स के शब्दों में “जैकोबिन्स ने उस ज़मीन को तोड़ दिया जिसमें सामन्तवाद जड़ जमा चुका था और उसने वहाँ सालों से धँसे सामन्ती रईसों को उखाड़ फेंका।” जैकोबिन्स के नेता रॉबर्सपियेर का बुर्जुआ वर्ग ने तख़्ता पलट कर क्रान्ति के ज़्यादा ही “आगे” बढ़ाने की सज़ा के तौर पर गिलोटिन से सिर कलम कर दिया। जैकोबिन्स ने 1792 से 1794 तक क्रान्ति को आगे बढ़ाया और बड़ी बुर्जुआजी की पुराने ढाँचे के साथ समझौते की कोशिशों और प्रतिक्रान्ति को परास्त किया। जैकोबिन्स आर्थिक तौर पर निम्न बुर्जुआ वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे हालाँकि यह एक भिन्न मतों का समूह अधिक था जिसमें केन्द्रीयता का अभाव था। जैकोबिन के पास कोई क्रान्ति का बोल्शेविक पार्टी सरीख़ा कार्यक्रम नहीं था परन्तु एक स्पष्ट और निश्चित राजनीतिक समझदारी तो थी ही।
फ्रांसीसी क्रान्ति के सफ़ल होने के बाद समानता, बन्धुत्व और स्वतन्त्रता के नारे मेहनतकश जनता के लिए काग़ज़ी सिद्ध होते हैं। एंगेल्स बताते हैं कि पूँजीवाद के अस्तित्व में आने के बाद “सम्पत्ति की स्वतन्त्रता” छोटे उत्पादकों और किसानों के लिए “सम्पत्ति से वंचित होने की स्वतन्त्रता” बन गयी और सामन्ती बुराइयों की जगह पूँजीवादी बुराइयों के लेने से व्यापार अधिकाधिक धोखा और फ़रेब बनता गया। “बन्धुत्व” के क्रान्तिकारी आदर्श का स्थान व्यापारिक होड़ के छल-कपट और ईर्ष्या-द्वेष ने ले लिया। ज़ोर-ज़ुल्म-ज़बर्दस्ती की जगह भ्रष्टाचार ने ले ली और सामाजिक शक्ति का मुख्य अस्त्र तलवार की जगह रुपया हो गया। वेश्यावृत्ति इतनी बढ़ गयी कि पहले कभी ऐसा सुना भी नहीं गया था। विवाह पहले की ही तरह वेश्यावृत्ति को ढके रखने का एक आवरण, उसका एक क़ानून द्वारा स्वीकृत रूप रहा, और साथ ही साथ व्यभिचार भी खूब होता रहा। ये ही वे परिस्थितियाँ थीं जिनमें कल्पनावादी समाजवादियों (फ्रांस के सेण्ट सीमों एवं फ़ूरिये तथा इंग्लैण्ड के रॉबर्ट ओवेन) ने समाजवाद के अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किये।
मार्क्सवादी विचारधारा भी आसमान से नहीं टपक पड़ती है बल्कि इतिहास और समाज के वैज्ञानिक विश्लेषण की प्रक्रिया में अतीत के सिद्धान्तों से आलोचनात्मक सम्बन्ध क़ायम कर पैदा होती है। मज़दूर वर्ग की पार्टी के पहले रूप भी इस प्रकार ही बुर्जुआ वर्ग के संगठन के पहले प्रयोगों से आगे बढ़ते हैं। इतिहास की सबसे आमूल बुर्जुआ क्रान्ति का नेतृत्व करने वाला हिरावल दस्ता जैकोबिन दल इस दौर में ही खड़ा होता है।
जैकोबिन दल का चरित्र विभिन्न सामाजिक समूहों के एक ढीले संघ जैसा था जबकि बोल्शेविक पार्टी ने पूँजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ लड़ाई में एक केन्द्रीकृत नेतृत्व प्रदान किया। बोल्शेविक पार्टी ने सर्वहारा वर्ग के एक या दूसरे समूह का प्रतिनिधित्व नहीं किया बल्कि बुर्जुआ वर्ग के ख़िलाफ़ संघर्ष में एक वर्ग के रूप में सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व किया। जैकोबिन क्लब की तरह कम्युनिस्ट पार्टी अलग-अलग प्रवृत्तियों का “मुक्त” संघ नहीं हो सकती। फ्रांसीसी क्रान्ति का नेतृत्व जैकोबिन दल ही कर सकता था और अक्टूबर क्रान्ति का नेतृत्व बोल्शेविक पार्टी।
फ्राँसीसी क्रान्ति के बाद ल्योन शहर में औद्योगिक दंगे, जर्मनी में सिलसियाई मज़दूरों के संघर्षों और चार्टिस्ट आन्दोलन के मील के पत्थरों के जरिये इतिहास 1848 की क्रान्ति तक पहुँचता है। इस दौरान मज़दूरों की पार्टी के रूप में चार्टिस्ट पार्टी और लीग ऑफ जस्ट सरीखे संगठन खड़े होते हैं। मज़दूर आन्दोलन ने स्वत:स्फूर्त गतिविधियों से आगे बढ़कर जब देश के स्तर पर एकजुट होने का प्रयास किया तब यह दौर मज़दूर क्रान्ति का पहला दौर था जब कम्युनिज़्म का हव्वा बूढ़े यूरोप को सता रहा था। इस दौर में जो ढाँचा अस्तित्व में आया वह परिस्थतियों की रोशनी में जन्मा था।यह कम्युनिस्ट लीग था। इस दौर में मार्क्स और एंगेल्स ने प्रूधोवादियों, ब्लांकीवादियों, लासालवादियों और फिर बर्नस्टीनवादियों से संघर्ष चलाकर पार्टी उसूलों की नींव डालनी शुरू की। इन बहसों ने भी मार्क्सवाद को उन्नत किया। मार्क्स और एंगेल्स ने सर्वहारा वर्ग के संगठन के उसूलों की भी आधारशिला रखने का काम किया। इस दौर पर हम अगली कड़ी में चर्चा करेंगे।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2023
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन