“महँगाई-बेरोज़गारी भूल जाओ! पाकिस्तान को सबक सिखाओ!”
गोदी मीडिया की गलाफाड़ू चीख-पुकार, यानी चुनाव नज़दीक आ गये हैं!
लता
13 सितम्बर 2023, कश्मीर के अनन्तनाग में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में सेना के दो और पुलिस के एक अधिकारी की मौत हो गई। आतंकवादियों को खोज निकालने की सेना और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धोनचक और डीएसपी हुमाऊँ मुज़म्मिल भट्ट शामिल थे। इस दौरान ही तीनों घायल हुए और फिर उनकी मौत हो गई।
इन तीन अधिकारियों की मौत के बाद मीडिया में दो-तीन दिनों तक आतंकियों की खोज और अधिकारियों के घर परिवार के शोक और अन्तिम संस्कार की खबरें बनी रहीं। गोदी मीडिया से जैसी उम्मीद है वैसी ही रिपोर्टिंग हो रही थी। घर-परिवार वालों को उनके दुख के समय भी मुँह पर माइक लगा कर जबरदस्ती सवाल पूछे जा रहे थे।
गोदी मीडिया इस घटना के बाद जैसा माहौल बना रही थी उसे देखते हुए साफ़ लग रहा था कि एक उन्माद पैदा करने की कोशिश की जा रही है। परिजनों का रोना-बिलखना, भावविह्वल कर देता है। इसके बीच गोदी मीडिया पाकिस्तान को मज़ा चखाने, पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर को आज़ाद करने, बदला लेने की चीख-पुकार करता रहा। इन खबरों को देख कर अक्सर लोग भूल जाते हैं की चुनाव आ रहे हैं, उनके असल मुद्दे क्या हैं और इन भड़काऊ बातों में फँस जाते हैं। गोदी मीडिया अन्ध-राष्ट्रवाद का माहौल बनाती है और हम भी उनके सुर में सुर मिलाने लग जाते हैं।
लेकिन हमें यह पूछना चाहिए की जब चुनाव नज़दीक होते हैं तभी आतंकवादी हमले, सीमा पर घुसपैठ, उग्रवादियों के साथ मुठभेड़, सर्जिकल स्ट्राइक क्यों होने लग जाते हैं? हमें यह सवाल बार-बार दुहराना चाहिए क्योंकि दिन-रात गोदी मीडिया की भड़काऊ खबरों और परिजनों के विलाप, सड़कों पर बदले के नारों के बीच हम अपना विवेक खो बैठते हैं। अभी मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में विधान सभा चुनाव हैं और 2024 में लोकसभा चुनाव। याद रखें की चुनाव नज़दीक है और चुनावों में भाजपा की हालत उतनी अच्छी नहीं है और दिन-ब-दिन बिगड़ भी रही है। इसका असली कारण है: भयंकर महँगाई, अभूतपूर्व बेरोज़गारी और रिकार्डतोड़ भ्रष्टाचार। दो करोड़ नौकरी हर साल देने का वायदा करने वाली मोदी सरकार के दो कार्यकाल के दौरान देश में 32 करोड़ नौजवान बेरोज़गार हैं। भ्रष्टाचार मापने वाले बैरोमीटर के अनुसार पूरे एशिया में भ्रष्टाचार के मामले में भारत प्रथम स्थान पर है। व्यापम और रफाएल जैसे बड़े घोटालों के अलावा हम अपनी जिन्दगियों में देख सकते हैं कि छोटे-से-छोटे सरकारी काम के लिए हमें रिश्वत देनी पड़ती है। अभी तो निजी कम्पनियों की छोटी-मोटी नौकरी के लिए भी हमें बीस से तीस हज़ार रुपए ठेकेदार को देने पड़ते हैं और तब भी नौकरी रहेगी या नहीं उसकी कोई गारण्टी नहीं होती। महँगाई ने किस कदर आम जनता की कमर तोड़ दी है इसका अन्दाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी कमाई का आधे से अधिक हिस्सा मात्र खाने-पीने पर खर्च हो जा रहा है। भोजन के अलावा बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, किराया आदि भी होते हैं। इन सब का खर्च इस महँगाई में उठा पाना लोगों के लिए बेहद कठिन होता जा रहा है।
कुल मिल कर हम कह सकते हैं कि हमारा ध्यान अपनी जिन्दगी की असल समस्याओं की ओर न जाए इसलिए देश में अन्ध-राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता की राजनीति हो रही है। संघ परिवार और भाजपा की इस राजनीति को बहुत लोग समझने भी लगे हैं। लेकिन भाजपा अलग-अलग स्वांग रच कर इन्हीं पत्तों को खेलेगी। नूह में दंगों के समय यह साफ़ हो गया है की 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले भाजपा और संघ परिवार देश को दंगों की आग में झोंकने की योजना बना रही है। इन्हें हमेशा इस बात की उम्मीद रहती है कि अन्धराष्ट्रवाद का कार्ड हमेशा काम आता है। पाकिस्तान के खिलाफ़, चीन के खिलाफ़, सेना के नाम पर जनता को मूर्ख बनाने की कोशिश की जाती है। लेकिन इस बार जनता को सावधान रहना होगा।
भाजपा काल में हुए तमाम हमलों और घुसपैठ का इतिहास निकाल लें सब में दाल में कुछ काला या कहें पूरी की पूरी दाल काली मालूम पड़ती है। अब तो यह बात हम नहीं बल्कि भाजपा के करीब रहे और कई राज्यों के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक भी कह रहे हैं। चाहे कारगिल युद्ध हो, पुलवामा हमला या चीन के साथ सीमा विवाद। कारगिल के समय सीमा में हो रहे घुसपैठ को नज़रअन्दाज़ किया गया और पुलवामा की सच्चाई सत्यपाल मलिक ने एक साक्षात्कार में बात ही दिया कि चलीस कान्स्टेबलों की जान को आसानी से बचाया जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब हमें दुबारा से किसी पुलवामा या आतंकवादी हमले के बहकावे या उन्माद में नहीं फँसना होगा। यह समझ लीजिये कि ऐसी कोई घटना होती है, तो उसमें लापरवाही और सुरक्षा के इन्तज़ामात न करने के लिए सरकार को ही ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए और जनता को अपने असल मुद्दों मसलन बेरोज़गारी, महँगाई और भ्रष्टाचार से टस-से-मस नहीं होना चाहिए।
हमें कुछ चीजें गाँठ बाँध कर याद कर लेनी चाहिए। अभी से लेकर चुनावों तक ऐसी किसी भी लहर में नहीं बहना है जो धर्म पर खतरा या किसी देवी-देवता के अपमान की बात करती हो, मन्दिर-मस्जिद की बात करती हो, पाकिस्तान-चीन का हल्ला मचाती हो; ये सारे संकट, अपमान, और खतरा चुनावों के टाइम इतना बढ़ क्यों जाता है हमें यह सोचना है। आतंकवादी की परिभाषा संघ ने ‘मुसलमान’ बना दी है। भाजपा के दंगाई सांसद रमेश बिधूड़ी सांसद में खड़े होकर एक मुस्लिम सांसद को आतंकवादी कहता है, अश्लील गालियाँ देता है। मतलब अन्धराष्ट्रवाद की लहर के ज़रिये एक तीर से दो निशाना लगाना है। सेना की कुर्बानी के नाम पर राजनीति और साथ में देश के मुसलमानों को आतंकवादी और पाकिस्तान समर्थक बात कर दंगे भड़काना। जनता को इस षड्यन्त्र को समझना होगा। ये सारा साम्प्रदायिक और दंगाई खेल मोदी सरकार इसलिए खेल रही है क्योंकि पिछले 10 साल में वह हर मोर्चे पर नाकाम रही है और मेहनतकश जनता के जीवन को उसने नर्क बना दिया है।
वैसे तो गोदी मीडिया की पोल लोगों के सामने खुलने लगी है और इनकी जगह लोग स्वतन्त्र न्यूज़ चैनल और पत्रकारों को देखना ज्यादा पसन्द कर रहे हैं। लेकिन फिर भी आपको कुछ पैमाने दे रहे हैं जिसके आधार पर आप किसी भी किस्म के उन्माद को फैलाये जाने की साज़िश को पहचान सकते हैं। आम तौर पर, इत्तेफ़ाक से ऐसी घटनाएँ तब-तब हो ही जाया करती हैं, जब भाजपा की कोई सरकार अलोकप्रिय हो जाती है या संकट में होती है:
सीमा पर विवाद – हो सकता है की जल्द ही खबर आये की पाकिस्तानी सेना सीमा पर घुसपैठ का प्रयास कर रही है। फिर ज़ी न्यूज़ से लेकर आज तक, टाइम्स नाओ, रिपब्लिक टीवी आदि मोदी से बदले की माँग करने लगेंगे। भृकुटियाँ चढ़ा कर पाकिस्तान को मज़ा चखाने, सबक सीखने की बात दुहराने लगेंगे। आप समझ जाइये कि आपका ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है और अपने असल मसलों पर अड़ जाइये।
आतंकवादी हमला – किसी शहर, मन्दिर या बाज़ार पर आतंकवादी हमला हो सकता है, जिसकी आशंका खुद भाजपा के करीबी रहे सत्यपाल मलिक ने जतायी है। सत्यपाल मलिक ने खुद ही कहा है कि 2024 में अपनी हार की आशंका को देखते हुए बौखलाहट में संघ परिवार और भाजपा किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसा कुछ होने पर भी गोदी मीडिया चीख-चीख कर बदला, बदला दुहराएगी, मुसलमानों को निशान बनाएगी। लेकिन चाहे कोई कुछ भी बोले आप झाँसे में मत आइयेगा और अपने असल मसलों से मत डिगियेगा।
पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर को भारत में मिलने की बात – कश्मीर के पूरे भूभाग को अपना बनाने का उन्माद गोदी मीडिया में सीमा के विवाद और आतंकवादी हमले के दौरान उठाया जाता है। यह सीधे-सीधे युद्ध शुरू करने की माँग है। युद्ध होने की स्थिति में सीमा पर मरने वाले गरीब किसानों और मज़दूरों के बेटे-बेटियाँ ही होते हैं। लेकिन युद्ध पूँजीपतियों के लिए व्यापार होता है। अक्सर ही संकटग्रस्त शासक युद्धोन्माद के ज़रिये सत्ता में वापसी का प्रयास करते हैं। वाजपेयी की संकटग्रस्त सरकार ने भी 1999 में यही किया था। इसलिए सावधान रहिये। आप को सरकार और गोदी मीडिया द्वारा कुछ भी बता दिया जाय, उस पर नादानी से भरोसा कर लेने की आदत छोड़ दीजिये। एक नियम बना लें: अगर सरकारी भोंपू और गोदी मीडिया कुछ कह रहे हैं, तो उस पर भरोसा मत कीजिये, राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय जनपक्षधर मीडिया व पत्रकारों के चैनलों आदि से इनके दावों की जाँच-पड़ताल करिये।
देवी–देवता का अपमान या गोहत्या का फर्जी शोर – संघ परिवार का सबसे प्रिय मुद्दा जिसके नाम पर लोगों को ये सड़कों पर मरवा देते हैं। जो भी देवी-देवता के अपमान या गोरक्षा के नाम पर उन्माद फैलाने की कोशिश करे उससे पहले पूछिये कि भाजपा केरल, गोवा और उत्तर-पूर्व के राज्यों में भाजपा गोमांस की सप्लाई को बढ़ाने की बात क्यों कर रही है? समझ लीजिये कि ये भी आपको बेवकूफ़ बनाने के मसले हैं।
लव जिहाद, लैण्ड जिहाद, और अन्य भाँति-भाँति किस्म के जिहाद जिनकी खोज भाजपा और संघ करती रही है उनसे भी बचना है। इनके नाम पर होने वाले सभी उन्मादी, भड़काऊ बातों और खबरों के आने पर समझ लें चुनाव नज़दीक है और आपको आपके असली मसलों से भटका कर फर्जी उन्माद में बहाने और धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर चुनाव जीतने की साज़िश की जा रही है, जिस में आपको न तो रोज़गार मिलेगा और न ही महँगाई से छुटकारा और आपका जीवन उतना की कष्टदायी बना रहेगा जिनता है या उससे भी ज़्यादा तकलीफ़देह बन जायेगा।
फ़ासीवादी भाजपा के शासन का मतलब है आम मेहनतकश जनता की तबाही-बरबादी। आप स्वयं पिछले 10 साल के बारे में सोचिये। भाजपा के दो कार्यकाल हम मजदूरों-मेहनतकशों के लिए कैसे बीते हैं उसे हमसे बेहतर कौन जनता है? रिकार्डतोड़ महँगाई, बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार इसके अलावा शिक्षा का निजीकरण, अस्पतालों का खस्ता हाल यही है भाजपा के शासन की रिपोर्ट कार्ड। भाजपा का एक और कार्यकाल का मतलब होगा हमारी भयंकर तबाही और बर्बादी। यह भी याद रखिये कि किसी और पार्टी या गठबन्धन की सरकार भी हमारे मसलों पर कोई कदम अपने आप नहीं उठाने वाली क्योंकि सभी पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियाँ मालिकों, ठेकेदारों और धनपतियों की सेवा करती हैं। अपने रोज़गार के अधिकार और महँगाई से मुक्ति के लिए संघर्ष को हम तभी आगे बढ़ा सकते हैं जबकि अपना क्रान्तिकारी जनान्दोलन खड़ा करें जो इन मसलों पर ठोस माँगों के साथ पूँजीवादी व्यवस्था से संघर्ष करे।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2023
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन