दिल्ली के मेहनतकशों को बेघर करके जारी है जी-20 के जश्न की तैयारी

अजित

देश के अलग-अलग जगहों पर इस साल होने वाले  जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियाँ चल रही हैं। तमाम शहरों का सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है। आपको बताते चले कि जी-20 विश्व के प्रमुख देशों का साझा मंच है जो कि विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन,  विकास के अन्य मुद्दों पर काम करता है। हालाँकि इसकी हक़ीकत कुछ और ही है। इस वर्ष जी-20 की अध्यक्षता भारत कर रहा है और इस बार कई बैठकों के साथ शिखर सम्मेलन दिल्ली में हो रहा है। जी-20 की अध्यक्षता भी भारत के पास है साथ ही जी-20 के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी भी भारत ही कर रहा है। इस बात को भारत के लगभग हर राज्य के प्रमुख शहरों में बड़े-बड़े होर्डिंग, बैनर एवं पोस्टर लगाकर बड़ी धूमधाम से प्रचारित किया जा रहा है, हालाँकि इसमें मोदी की वाह-वाह करने वाली कोई बात नहीं है क्योंकि इसकी अध्यक्षता बारी-बारी से सभी देशों को मिलती है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस अध्यक्षता और मेज़बानी के साथ देश के अन्दर की सारी समस्याएँ खत्म हो जायेंगी। जी-20 की अध्यक्षता को विश्व स्तर पर भारत की बढ़ती शक्ति के प्रतीक के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। इस काम को भाजपा सरकार एवं उसकी चाटुकार गोदी मीडिया ज़बरदस्त तरीके़ से कर रहा है।

बहरहाल दिल्ली में सितम्बर माह में आयोजित होने वाली जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियाँ अपने ज़ोरों पर हैं। दिल्ली का सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है। यहाँ की सड़कों को चौड़ा किया जा रहा है ताकि दुनिया भर के प्रतिनिधियों को एक स्वच्छ ,सुन्दर और चमकती दिल्ली दिखाई जाये। केन्द्र और राज्य सरकार अपने स्तर पर दिल्ली को चमकाने में लगी है। लेकिन इस चमक के पीछे दिल्ली के मज़दूरों-मेहनतकशों के जीवन के रसातल का अँधेरा है।

चमचमाती दिल्ली के पीछे की कहानी

जी-20 के लिए देश की राजधानी को चमकाया जा रहा है। इसका सौन्दर्यीकरण किया जा रहा है लेकिन उसकी क़ीमत दिल्ली के ग़रीब मेहनतकश अवाम को चुकानी पड़ रही है। दिल्ली के ग़रीब मेहनतकश अवाम को उनके रहने की जगहों से उजाड़ा जा रहा है। पिछले 3 महीनों में 16,000 घर तोड़े गये है जिसमें क़रीब 2,60,000 लोगों को बेघर होना पड़ा है। जी-20 में आए हुए प्रतिनिधि, यानी अन्य देशों के लुटेरे और हुक्मरान जो इन देशों में हमारे मेहनतकश भाइयों-बहनों को लूटते हैं, राजघाट पर गाँधी के समाधि स्थल को देखने जा सकते हैं! इस कारण राजघाट के आसपास के इलाक़ों से मेहनतकशों के घरों को तोड़ दिया गया है। इसके साथ ही महरौली में भी ये प्रतिनिधि ऐतिहासिक भ्रमण के लिए जा सकते हैं इस कारण यहाँ पर दशकों से बसे घरों को तोड़ दिया गया। तुगलकाबाद में भी घरों को तोड़ा गया।

आपको बताते चलें कि दिल्ली के उपराज्यपाल ने कहा था कि झुग्गियों को नहीं तोड़ा जायेगा। यहाँ तक कि जी-20 के स्थलों पर पड़ने वाले झुग्गियों को भी नहीं तोड़ा जायेगा। इसके साथ ही नगर-निगम के क़ानून के तहत तथा हाईकोर्ट के फै़सले के अनुसार किसी भी झुग्गी को उसके पुनर्वास की व्यवस्था किये बिना नहीं तोड़ा जा सकता है। साथ ही तोड़ने से पहले उसका नोटिस जारी करना पड़ता है। लेकिन ये सारी बातें केवल काग़ज़ी ही साबित हुई हैं। आमतौर पर नोटिस बुलडोजर और पुलिस के साथ ही घर तोड़ने के ऐन मौके पर पहुँचता है जहाँ मेहनतकश अवाम को अपने ज़रूरत की चीज़ों को निकालने तक का भी मौक़ा नहीं मिल पाता। इस बार ग़रीब मेहनतकशों के घरों के साथ-साथ शेल्टर होम्स और सरायखानों को, जिसे इस सरकार ने ही बनाया था, भी तोड़ दिया गया है।

ग़रीब मेहनतकशों को उनके घरों से बेघर करने के बाद तमाम सरकारों की असलियत सामने आ जाती है। केन्द्र में बैठी भाजपा सरकार की बात करें तो इस सरकार ने ‘प्रधानमन्त्री आवास योजना’ के तहत 2022 तक सभी को पक्का मकान देने का वादा किया था लेकिन इसकी हक़ीकत यह है कि सबको पक्का मकान तो दूर की बात है जिनके पास झुग्गी है उन्हें भी बेघर किया जा रहा है। इसके साथ ही भाजपा का नारा था “जहाँ झुग्गी वहीं मकान।” इस नारे ने भी हक़ीकत में दम तोड़ दिया है। मकान देना तो दूर की बात है झुग्गियों को भी उजाड़ा जा रहा है।

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने तोड़- फोड़ की इस गतिविधि के बाद कहा कि डीडीए (DDA) जिसके द्वारा तोड़फोड़ की गतिविधि को अन्जाम दिया जा रहा है केन्द्र सरकार के अधीन है, इसमें दिल्ली सरकार कुछ नहीं कर सकती है। लेकिन इस घड़ियाली आँसुओं के पीछे की सच्चाई यह है कि आम आदमी पार्टी की सरकार भी गरीबों की उतनी ही दुश्मन है जितनी भाजपा सरकार। अभी दिल्ली सरकार ने ही जी-20 को ध्यान में रखकर अपने स्तर पर शहर के सौन्दर्यीकरण तथा फ्लाईओवर निर्माण के काम के लिए अपने बजट लगभग 1400 करोड़ रुपए ख़र्च करने की बात की है। इसके पीछे उनका तर्क है कि विश्व भर के प्रतिनिधियों के सामने दिल्ली को चमकता हुआ प्रस्तुत करने की ज़रूरत है। इसके साथ ही जब दिल्ली में ही ग़रीब मेहनतकशों के घरों को तोड़ा जाता है तब आम आदमी पार्टी का कोई भी नेता क्यों चूँ तक नहीं करता? यह बात भी उनकी असलियत को बयाँ करती है।

ग़रीब मेहनतकशों को उनके घरों से उजाड़ने की इन गतिविधियों को अलग करके नहीं देखा जा सकता क्योंकि हर साल पूरे देश में कहीं न कहीं अलग-अलग नामों पर मेहनतकशों को उनके घरों से बेघर किया ही जाता है। कभी ‘प्रधानमन्त्री आवास योजना’ के तहत तो कभी ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत। कभी ‘झुग्गी मुक्त शहर’ के नाम पर तो कभी ‘अतिक्रमण हटाओ’ के नाम पर। दिल्ली में इससे पहले हुए कामनवेल्थ खेलों के समय भी ग़रीब मेहनतकशों को उनके घरों से बेघर किया गया था। केवल इतना ही नहीं पूरे देश भर में किसी न किसी नाम पर हर राज्य की सरकार ग़रीब मेहनतकशों को आये-दिन उनके घरों से बेघर करती रहती है।

दिल्ली में हुई इस घटना और आमतौर पर पूरे देश भर में अलग-अलग कारणों से ग़रीब मेहनतकशों को उनके घरों से बेघर करने की घटनाएँ बार-बार हमें यह दिखाती है कि तमाम सरकारें चाहे जो भी वादा कर ले उसकी असलियत यही है कि किसी भी पार्टी की सरकार हो वे जनता के आवास के बुनियादी अधिकार के साथ ग़द्दारी ही करने का काम करती हैं। देश के प्रमुख शहर जिस मेहनतकश आबादी के दम पर चलते हैं उनके लिए इन सरकारों के पास कोई योजना नहीं है। सुई से लेकर जहाज़ तक बनाने और चलाने वाली इस मेहनतकश अवाम को उसी शहर के लिए गन्दा समझा जाता है जिस शहर को चमकाने का यह काम करते हैं। शहर के सौन्दर्यीकरण के नाम पर इन मेहनतकशों को बेघर करना इस बात का सबूत है कि तमाम सरकारें इस आबादी को शहर के लिए गन्दगी समझती है। ये सरकारें मुनाफ़ाखोर पूँजीपति वर्ग की ही नुमाइन्दगी करती हैं और मुनाफ़ाकेन्द्रित व्यवस्था की रक्षा का ही काम करती हैं। इस व्यवस्था से यह उम्मीद करना बेकार है कि वह आम मेहनतकश आबादी के बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित करके, उनकी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करे।  

आज ज़रूरत है मेहनतकशों को एक साथ मिलकर खड़े होने की और सबको आवास के अधिकार के लिए आन्दोलन करने की। किसी भी देश की सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि वह उस देश में रहने वाले  हर नागरिक को रहने के लिए आवास की गारण्टी दें। यह हमारा हक़ है और इसे हासिल करने के लिए आज जाति-धर्म को छोड़कर अपने वर्ग के आधार पर एकजुट होने की ज़रूरत है।


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments