भाजपा की शातिर अफ़वाह मशीनरी की नयी घटिया हरकत और उसका पर्दाफ़ाश

कात्यायनी

अफ़वाह फैलाना सभी फ़ासिस्टों की रणनीति का एक बुनियादी हिस्सा होता है और संघी हिन्दुत्ववादी मशीनरी सरकारी प्रचार तंत्र और गोदी मीडिया के अतिरिक्त सोशल मीडिया पर भी अपने आईटी सेल के भाड़े के टट्टुओं को बैठाकर इस काम को पुराने फ़ासिस्टों के मुक़ाबले भी अधिक असरदार ढंग से अंजाम देती है। साम्प्रदायिक तनाव और दंगों के हर मामले में उनकी इस साज़िशाना कार्रवाई की अहम भूमिका होती है। अफ़वाहों के ये कारख़ाने दिन-रात काम करते हैं और लगातार साम्प्रदायिक प्रचार करके तथा झूठी ख़बरें गढ़कर मुस्लिम आबादी को निशाना बनाने और धार्मिक कट्टरपंथी उन्माद फैलाने के साथ ही अन्ध-राष्ट्रवादी लहर उभाड़ने का काम करते रहते हैं।

अभी हाल ही में उनकी एक ऐसी ही घिनौनी हरकत का पर्दाफ़ाश हुआ है। भाजपा के आईटी सेल ने हाल ही में पाँच ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किये जिनमें तस्वीरों में जालसाज़ी करके यह दिखलाया गया था कि तमिलनाडु में उत्तर भारत के मज़दूरों को डराया-धमकाया जा रहा है, उनके साथ गाली-गलौच और मारपीट की जा रही है। इसे पुष्ट करने के लिए भाजपा के तमिलनाडु के अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने भी द्रमुक के एक नेता के पुराने बयान को आधार बनाकर ट्वीट कर दिया। दिलचस्प बात यह रही कि बिना तथ्यों की जाँच-पड़ताल किये बिहार के मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार ने इसपर बयान भी जारी कर दिया! 

लेकिन ‘ऑल्ट न्यूज़’ के प्रतीक सिन्हा और मुहम्मद ज़ुबैर ने जाँच करने के बाद सभी पाँच वीडियो को जालसाज़ी बताया। इस बारे में ‘ऑल्ट न्यूज़’ की वेबसाइट पर गत 2 मार्च को पत्रकार कलीम अहमद का एक लेख भी प्रकाशित हुआ। चेन्नई की साइबर अपराध शाखा ने तमिलनाडु के भाजपा अध्यक्ष के ख़िलाफ़ झूठा प्रचार करके तनाव और वैमनस्य फैलाने के आरोप में मुक़दमा भी दर्ज कर लिया है। भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के एक प्रवक्ता के ख़िलाफ़ भी झूठी ख़बर फैलाने के लिए मुक़दमा दर्ज कराया गया है।

इस बात को समझना बहुत कठिन नहीं है कि ‘हिन्दू-मुस्लिम’ के बाद अब ‘उत्तर-दक्षिण’ के बीच तनाव और झगड़ा उकसाने के पीछे आखिर संघी फ़ासिस्टों की मंशा क्या है। दरअसल यह सब 2024 के आम चुनावों की तैयारी का ही एक हिस्सा है। काशी-मथुरा जैसे मसले, गोहत्या, मदरसे आदि जैसे ध्रुवीकरण के मुद्दे और चुनावों के ऐन पहले ‘पाकिस्तान-पाकिस्तान’ का शोर मचाकर अन्धराष्ट्रवादी लहर उभाड़ने जैसे असरदार अस्त्र तो भाजपा के तरकश में हैं ही, लेकिन मँहगाई-बेरोज़गारी की अभूतपूर्व मार झेल रही आम जनता के बीच “विकास-पुरुष’ के सारे बैलून जिस तरह फुस्स हुए हैं, उसे देखते हुए भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सबकुछ कर गुज़रना चाहती है। इसके बाद, जहाँ ज़रूरत और सम्भावना होगी वहाँ ईवीएम का खेला होगा और फिर चुनाव बाद संसदीय घोड़ा मण्डी में घोड़ों की ख़रीद के लिए अरबों-खरबों की थैलियों के मुँह खोल देने का अन्तिम विकल्प तो है ही। लेकिन फिर भी, अन्तिम विकल्पों के पहले के सारे हथकण्डों को तो आज़माया ही जायेगा।

तमिलनाडु में उत्तर भारतीय मज़दूरों पर हमलों की अफ़वाह फैलाना उसी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा जानती है कि तमिलनाडु में उसका वोटबैंक न के बराबर है और इसलिए चुनाव में कोई बड़े पैमाने की धाँधली या दूसरे किसी भी भाजपाई हथकण्डे का इस्तेमाल वहाँ मुश्किल होगा और वहाँ के चुनावी नतीजों पर इससे कोई विशेष फ़र्क़ भी नहीं पड़ेगा। हाँ, यदि उत्तर भारतीयों पर वहाँ हमलों की अफ़वाह फैलाकर ‘उत्तर बनाम दक्षिण’ के झगड़े को तूल दे दिया जाये तो उत्तर भारत, विशेषकर उ.प्र. और बिहार में वोटों की अच्छी फसल काटी जा सकती है।

अब हालाँकि इस फासिस्ट बदमाशी का पर्दाफ़ाश हो चुका है, लेकिन मुख्य धारा का मीडिया और सोशल मीडिया पर संघी फासिस्ट तन्त्र की जो पकड़ है और घर-घर तक अपना प्रचार पहुँचाने का जो आरएसएस का नेटवर्क है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इस अफ़वाह की जितने लोगों तक पहुँच होगी, उसके पचासवें हिस्से तक भी इस जालसाज़ी के भण्डाफोड़ की खबर नहीं पहुँचेगी।

ऐसी हर घटना इस बात का और भी ज़्यादा गहराई के साथ अहसास कराती है कि आम जन-समुदाय के क्रान्तिकारी संघर्षों के साथ-साथ जनता के वैकल्पिक मीडिया का निर्माण करके ही फ़ासिस्टों की ऐसी हरक़तों का जवाब दिया जा सकता है। साथ ही, जब मज़दूर वर्ग के कैडर-आधारित क्रान्तिकारी नेतृत्वकारी संगठन की पहल से, और उसकी अगुवाई में तृणमूल स्तर से मज़दूरों के विविध प्रकार के मंच, संस्थाएँ और जन-संगठन खड़ा करके फ़ासिस्टों के विरुद्ध एक दीर्घकालिक फ़ैसलाकुन संघर्ष की तैयारी आगे बढ़ेगी तो घर-घर तक अपनी बात पहुँचाने में मज़दूर वर्ग के क्रान्तिकारी पक्ष की भी वैसी प्रभाविता बन जायेगी कि वह फ़ासिस्ट प्रचारों को मुँहतोड़ उत्तर दे सकेगा!

 

मज़दूर बिगुल, मार्च 2023


 

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