मोदी के जुमलों की बारिश के बीच कैथल के मनरेगा मज़दूरों के हालात पर एक नज़र
बिगुल संवाददाता
15 अगस्त को जब पूरा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा था। इस अवसर पर सुबह 8 बजे से पीएम मोदी लाल क़िले पर चढ़कर 70-80 मिनट का लम्बा-चौड़ा भाषण दे रहे थे। जिसमें पिछले आठ बार की ही तरह एक बार फिर बड़े-बड़े वायदे किये गये, जो हर बार की तरह पूरे नहीं होने वाले, साथ ही ‘अमृत काल’ का गुणगान किया गया। उसी वक़्त दूसरी ओर कैथल (हरियाणा) के फरल गाँव के मज़दूर सुबह 8 बजे मनरेगा के तहत काम करने के लिए गाँव से रवाना हुए थे। लेकिन मोदी जी के ‘अमृत काल’ की हक़ीक़त मनरेगा मज़दूरों से कोसों दूर है। पिछले दो दिनों से फरल गाँव के मनरेगा मज़दूर बेहद असुरक्षित और गन्दे हालातों में काम करने को मजबूर हैं। असल में मनरेगा विभाग और अधिकारी जानबूझकर मज़दूरों को सबक़ सिखाने के लिए इन हालातों में काम करा रहे हैं। क्योंकि फरल गाँव के मज़दूरों ने पिछले 5 महीने से काम नहीं मिलने पर प्रदर्शन कर यह काम हासिल किया था। मज़दूरों द्वारा जारी फ़ोटो में साफ़ दिख रहा है कि वे 2-3 फुट तक चलते पानी से लेकर गन्दे कीचड़-भरे नाले (ड्रेन) में काम कर रहे हैं। यहाँ न तो कोई सुरक्षा उपकरण हैं और न ही कोई अन्य सुविधा। ये सारी तस्वीरें भारत के 80 फ़ीसदी मज़दूरों की ज़िन्दगी और कार्य परिस्थितियों को साफ़ दर्शा रही हैं। मोदी सरकार की ‘हर घर तिरंगा’ जैसी हवाबाज़ी की लाख कोशिश के बावजूद, मज़दूरों-मेहनतकशों के बदतर हालात छिपने वाले नहीं है। कैथल के गाँव फरल के मनरेगा मज़दूरों की ये तस्वीरें तमाम खाते-पीते वर्ग की आज़ादी के जश्न में खलल डाल रही होंगी। लेकिन हमें देश की मेहतनतकश आबादी का सच ज़रूर बताना चाहिए।
मनरेगा मज़दूरों ने बताया कि पिछले दो दिनों से सभी मज़दूर जान-जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं। कार्यस्थल पर लगातार साँप-बिच्छु निकलते रहते हैं, साथ ही चलते पानी और कीचड़ में भी दुघर्टना का ख़तरा बना रहता है। इस परिस्थिति की जानकारी यूनियन ने तुरन्त बीडीपीओ तथा डीसी, कैथल को दे दी है। यूनियन ने तय किया है कि अगर फरल गाँव के मनरेगा मज़दूरों को उचित न्याय नहीं मिलेगा तो व्यापक और जुझारू आन्दोलन का रास्ता अख़्तियार किया जायेगा।
उक्त घटना के दो दिन बाद क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले फरल गाँव के मज़दूरों ने ढांड बीडीपीओ कार्यालय में बेहतर कार्य परिस्थितियों को लेकर प्रदर्शन किया। गाँव के मेट विकास ने मनरेगा विभाग को कार्यस्थल पर आ रही समस्याओं से अवगत कराया। उन्होंने आगे बताया कि फरल में मज़दूरों को लगभग पाँच माह बाद काम मिला था। जिसके तहत 13 से 20 अगस्त तक मज़दूरों को ड्रेन पर काम करना था। पिछले दो दिनों से फरल गाँव के मनरेगा मज़दूर बेहद असुरक्षित और गन्दे हालातों में काम करने को मजबूर हैं। गाँव के मेट विकास ने नहर विभाग के जेई व अधिकारियों को मौखिक तौर पर सूचना दी थी कि सभी मज़दूरों ने ऐसी कार्य परिस्थितियों में काम करने से मना कर दिया था। यूनियन के अजय ने बताया कि मज़दूरों को साल में मुश्किल से 25-30 दिन ही काम मिलता है। यही आँकड़े पूरे हरियाणा और देश स्तर पर लागू होते हैं। इसलिए हमारी माँग है कि मज़दूरों को सालभर काम दिया जाये, साथ ही बीडीपीओ कार्यालय की ज़िम्मेदारी बनाती है कि वो मज़दूरों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लें। मज़दूरों ने आम सभा करके ये तय किया है कि हम इस काम का बाहिष्कार करेंगे। आगे मज़दूरों ने नये काम का आवदेन पत्र जमा कर दिया।
मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2022
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन