जिम्बाब्वे के प्रमुख कवि चेन्जेराई होव की चार कविताएँ
हम
केवल हम ही नहीं थे
पीछे छूट जाने वालों में,
अंजीर का पेड़ भी खड़ा था
हमारे साथ ही।
केवल हम ही नहीं थे
पीछे छूट जाने वालों में
जब तक कि आसमान
इन्कार करता रहा था
हमें वीज़ा देने में।
शुभ रात्रि, प्रिये
हम इन्तज़ार करेंगे यों ही
किसी और फूल के खिलने तक।
सत्ता
इस तरह पहन लेते हैं हम
सत्ता को :
सीटियों और बन्दूक़ों और बारूद के साथ
सुरक्षा सैनिक
जगमगाती रोशनियाँ
काँच की धुँधली खिड़कियाँ
क़तारें मोटरगाड़ियों की
ख़िताब, पदवियाँ
कम से कम हाथ मिलाना
कम से कम मुस्कुराना
कम से कम सन्ताप
हम पहन लिया करते हैं सत्ता को
बिल्कुल महामारी की तरह
इन्कार
पुलिस जब आ ही जाये ऐन सिर पर
और उसकी लाठी नृत्य करने लगे
तुम्हारी पीठ पर
इन्कार कर देना झुकने से।
बिच्छू जब आ ही जायें
और डंक मार दें चाहे
तुम्हारी आँखों और कानों पर
इन्कार कर देना उनके वश में आने से।
दुनिया जब घूमती नज़र आये गोल-गोल
यातना-कक्ष के भीतर
साफ़ इन्कार कर देना चाहिए
तुम्हारे दिल को मुरझाने से।
तुम सुनना बच्चों की आवाज़ों को
देखना रंगत हमारे संगीत की
और नाच उठना मन ही मन
समर्पण की मौत पर।
जिस क्षण शक्तिसम्पन्न लोग
लूटने में लगे हों तमगे
और अशक्त चुन रहे हों
तिनके शासन के,
तुम इन्कार कर देना घुटने टेकने से
फ़ुटपाथ पर छल और कपट के।
एक तानाशाह से
तुम्हारे दौर में
तुमने दूर कर दिया हमसे
हमारी स्वतंत्रता के सार को।
तुम्हारे दौर में
कमज़ोर लोगों ने हिफ़ाज़त की
तुम्हारी दुर्बलताओं की,
और धरती रोती रही लगातार,
चन्द्रमा तक स्याह पड़ गया था
तुम्हारे दौर में।
(एक पाकिस्तानी कवि की याद में,
जिसे देशनिकाला दे दिया गया था)
– अंग्रेज़ी से अनुवाद :
राजेश चन्द्र
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2022
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन