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(मज़दूर बिगुल के सितम्बर 2021 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-ख़बरों आदि को यूनिकोड फ़ॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
श्रद्धांजलि
नहीं रहे कॉमरेड रामनाथ! अलविदा कॉमरेड! लाल सलाम!!
निजीकरण-उदारीकरण
नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के तीस वर्ष; जनता के हिस्से में बस दु:ख और तकलीफ़ें ही आयी हैं / लता
समसामयिक
टोक्यो ओलम्पिक में भारत का प्रदर्शन: एक समीक्षा / सार्थक
राष्ट्रीय प्रश्न
असम-मिज़ोरम विवाद के मूल कारण क्या हैं? / शिवानी
भारतीय राज्य द्वारा कश्मीरी क़ौम के दमन के इस नये क़दम से क्या बदले हैं कश्मीर के सूरतेहाल? / शिवानी
क्रान्तिकारी विरासत
तेलंगाना किसान सशस्त्र संघर्ष के 75 साल उपलब्धियाँ और सबक़ (दूसरी व अन्तिम क़िस्त) / आनन्द
ग़रीबों-मेहनतकशों की जीवन स्थितियाँ
दिल्ली के ‘मास्टरों’ के प्लान में ग़रीब मेहनतकश आबादी कहाँ है? / भारत
बाढ़, बेशर्म सरकार और संवेदनहीन प्रशासन का क़हर झेलती जनता / अविनाश
निर्माण मज़दूर की करण्ट लगने से मौत : मुआवज़े की माँग करने वालों को पुलिस ने भेजा जेल / सुमित
मनरेगा मज़दूरों के बजट को खाती अफ़सरशाही / रमन
बंगलादेश में एक बार फिर मुनाफे़ की आग की बलि चढ़े 52 मज़दूर / भारत
मुफ़्त पानी और बिजली से वंचित दिल्ली की बहुसंख्यक मज़दूर आबादी
कारख़ाना इलाक़ों से
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन