हमारा प्रचार क्रान्तिकारी है
लेनिन
(‘कम्युनिस्ट पार्टी और उसका ढाँचा’ पुस्तिका के अंश। इसे 1921 में कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल की तीसरी कांग्रेस द्वारा स्वीकृत “कम्युनिस्ट पार्टियों के संगठन पर प्रस्ताव” के रूप में पारित किया गया था।)
20. खुले क्रान्तिकारी संघर्ष से जुड़ा हुआ हमारा मुख्य आम कर्तव्य है क्रान्तिकारी प्रचार (प्रोपेगेण्डा) और आन्दोलन (एजिटेशन) चलाना। यह कार्य और इस का संगठन, अभी भी मुख्यतः जनसभाओं में समय-समय पर दिये जाने वाले भाषणों के ज़रिये पुराने रस्मी ढंग से चलाया जाता है तथा भाषणों और लेखों में अन्तर्निहित क्रान्तिकारी सारतत्व पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।
मज़दूरों के आम हितों और आकांक्षाओं के आधार पर, ख़ासकर उनके आम संघर्षों के आधार पर, कम्युनिस्ट प्रचार और आन्दोलन की कार्रवाई को इस प्रकार चलाना चाहिए कि वह मज़दूरों के अन्दर अपनी जड़ें जमा ले।
याद रखने लायक सबसे अहम नुक्ता यह है कि कम्युनिस्ट प्रचार का चरित्र क्रान्तिकारी होना चाहिए; इसलिए कम्युनिस्ट नारे और ठोस प्रश्नों पर अपने समग्र कम्युनिस्ट रुख़ के बारे में हमें विशेष ध्यान देना चाहिए और ख़ासतौर पर सोचना-विचारना चाहिए।
एक सही रुख़ तक पहुँचने के लिए, न केवल पेशेवर प्रचारकों और आन्दोलनकर्ताओं को, बल्कि सभी दूसरे पार्टी-सदस्यों को भी सावधानीपूर्वक निर्देशित (शिक्षित) किया जाना चाहिए।
कम्युनिस्ट प्रचार और नारों के प्रमुख रूप
21. कम्युनिस्ट प्रचार के प्रधान रूप ये हैं: (क) व्यक्तिगत रूप से किया गया मौखिक प्रचार, (ख) औद्योगिक और राजनीतिक मज़दूर आन्दोलन में भागीदारी और (ग) पार्टी की पत्र-पत्रिकाओं और साहित्य के वितरण के द्वारा प्रचार। क़ानूनी या ग़ैरक़ानूनी पार्टी के हर सदस्य को प्रचार के इन रूपों में से किसी एक या दूसरे में नियमित रूप से भागीदारी करनी होगी।
व्यक्तिगत प्रचार की कार्रवाई कार्यकर्ताओं के विशेष ग्रुपों द्वारा सुव्यवस्थित ढंग से घर-घर जाकर बातचीत के द्वारा समझाने-बुझाने, सहमत करने की कार्रवाई के रूप में चलाई जानी चाहिए। प्रचार की ऐसी कार्रवाई इस तरह चलाई जानी चाहिए कि पार्टी-प्रभाव के क्षेत्र में एक भी घर छूटने न पाये। अपेक्षाकृत बड़े नगरों में पोस्टरों और पर्चों के वितरण का विशेष रूप से संगठित किया गया प्रचार अभियान आम तौर पर सन्तोषजनक परिणाम देता है। इसके अतिरिक्त वर्कशापों के अन्दर साहित्य के वितरण के साथ-साथ फ्रैक्शनों को नियमित रूप से व्यक्तिगत आन्दोलनात्मक प्रचार (एजिटेशन) की कार्रवाई चलानी चाहिए।
जिन देशों में आबादी में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक भी शामिल हैं, वहाँ इन अल्पसंख्यकों के सर्वहारा हिस्सों में प्रचार और आन्दोलन चलाने की दिशा में आवश्यक ध्यान देना पार्टी का कर्तव्य है। ज़ाहिर है कि प्रचार और आन्दोलन की यह कार्रवाई उक्त राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों की भाषाओं में ही चलायी जानी चाहिए जिसके लिए पार्टी को आवश्यक विशेष निकायों का निर्माण करना चाहिए।
22. उन पूँजीवादी देशों में जहाँ सर्वहारा वर्ग का विशाल बहुमत क्रान्तिकारी चेतना के स्तर पर अभी नहीं पहुँच पाया है, कम्युनिस्ट आन्दोलनकारियों को इन पिछड़े हुए मज़दूरों की चेतना को ध्यान में रखते हुए और क्रान्तिकारी क़तारों में इनका प्रवेश आसान बनाने के लिए लगातार कम्युनिस्ट प्रचार के नये रूपों की खोज करते रहना चाहिए। अपने नारों के ज़रिये कम्युनिस्ट प्रचार को उन प्रस्फुटित होती हुई, अचेतन, अपूर्ण, ढुलमुल और अर्द्धपूँजीवादी क्रान्तिकारी प्रवृत्तियों को उभारना और सामने लाना चाहिए जो मज़दूरों के दिमागों में पूँजीवादी परम्पराओं और अवधारणओं के ऊपर हावी होने के लिए संघर्ष कर रही होती हैं।
साथ ही, कम्युनिस्ट प्रचार को सर्वहारा जनसमुदाय की सीमित एवं अस्पष्ट माँगों और आकांक्षाओं तक ही सीमित रहकर सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। इन माँगों और आकांक्षाओं में क्रान्तिकारी भ्रूण मौजूद रहते हैं और ये सर्वहारा वर्ग को कम्युनिस्ट प्रचार के प्रभाव के अन्तर्गत लाने का साधन होती हैं।
मज़दूर वर्ग के रोज़मर्रा के संघर्षों का नेतृत्व करो
23. सर्वहारा जनसमुदाय के बीच कम्युनिस्ट आन्दोलन (या आन्दोलनात्मक प्रचार) का काम इस प्रकार चलाया जाना चाहिए कि संघर्षरत सर्वहारा हमारे कम्युनिस्ट संगठन को साहसी, बुद्धिमान, ऊर्जस्वी और यहाँ तक कि अपने ख़ुद के मज़दूर आन्दोलन के हर हमेशा वफ़ादार नेता के रूप में जाने।
इसे हासिल करने के लिए कम्युनिस्टों को मज़दूरों के सभी प्रारम्भिक संघर्षों और आन्दोलनों में भाग लेना चाहिए तथा काम के घण्टों, काम की परिस्थितियों, मज़दूरी आदि को लेकर उनके और पूँजीपतियों के बीच होने वाले सभी टकरावों में मज़दूरों के हितों की हिफाजत करनी चाहिए। कम्युनिस्टों को मज़दूर वर्ग के जीवन के ठोस प्रश्नों पर भी ध्यान देना चाहिए। उन्हें इन प्रश्नों की सही समझदारी हासिल करने में मज़दूरों की सहायता करनी चाहिए। उन्हें मज़दूरों का ध्यान सर्वाधिक स्पष्ट अन्यायों की ओर आकर्षित करना चाहिए तथा अपनी माँगों को व्यावहारिक तथा सटीक रूप से सूत्रबद्ध करने में उनकी सहायता करनी चाहिए। इत तरह वे मज़दूर वर्ग के भीतर एकजुटता की स्पिरिट और देश के सभी मज़दूरों के भीतर एक एकीकृत मज़दूर वर्ग के रूप में, जो कि सर्वहारा की विश्व सेना का एक हिस्सा है, सामुदायिक हितों की चेतना जागृत कर पायेंगे।
सिर्फ़ इस प्रकार के रोज़मर्रा के प्रारंभिक कर्तव्यों की पूर्ति करके तथा सर्वहारा के सभी संघर्षों में भाग लेकर ही कम्युनिस्ट पार्टी एक सच्ची कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में विकसित हो सकती है। सिर्फ़ इस प्रकार के तरीक़ों को अपनाकर ही वह घिसे-पिटे, तथाकथित शुद्ध समाजवादी प्रचार करने वाले, सिर्फ़ नये सदस्य भर्ती करने वाले तथा सुधारों और सभी संसदीय सम्भावनाओं का इस्तेमाल कर पाने की सम्भावनाओं या असम्भावनाओं की बातें करते रहने वाले प्रचारकों से अपने को अलग कर सकेगी। शोषकों के विरुद्ध चलने वाले शोषितों के रोज़मर्रा के संघर्षों और विवादों में पार्टी-सदस्यों का आत्मत्यागपूर्ण और चेतन सहयोग न केवल सर्वहारा अधिनायकत्व की विजय के लिए बल्कि उससे भी अधिक, इस अधिनायकत्व को क़ायम रखने के लिए नितान्त आवश्यक है। पूँजीवाद के हमलों के ख़िलाफ़ छोटे-छोटे संघर्षों में मेहनतकश अवाम का नेतृत्व करके ही कम्युनिस्ट पार्टी पूँजीपति वर्ग के ऊपर प्रभुत्व स्थापित करने के संघर्ष में सर्वहारा वर्ग का सुव्यवस्थित नेतृत्व कर पाने की क्षमता प्राप्त करते हुए मेहनतकश जनसमुदाय का हिरावल दस्ता बन सकेगी।
प्रत्येक संघर्ष की अगली क़तार में
24. ख़ासतौर पर हड़तालों, तालाबन्दियों और मज़दूरों की बड़े पैमाने पर बर्खास्तगी को लेकर होने वाले मज़दूर आन्दोलनों में भागीदारी के लिए, कम्युनिस्टों को पूरी ताक़त झोंककर लामबन्द होना चाहिए।
मज़दूरों द्वारा काम करने की परिस्थितियों में मामूली सुधारों की माँग को लेकर चलाये जाने वाले आन्दोलनों के प्रति तिरस्कार का रुख़ अपनाना या कम्युनिस्ट कार्यक्रम और अन्तिम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सशस्त्र क्रान्तिकारी संघर्ष की आवश्यकता के नाम पर उनके प्रति निष्क्रियता का रुख़ अपनाना कम्युनिस्टों के लिए भारी भूल होगी। मज़दूर अपनी जिन माँगों को लेकर पूँजीपतियों से लड़ने के लिए तैयार और रजामन्द हों, वे चाहे कितनी भी छोटी या मामूली क्यों न हों, कम्युनिस्टों को संघर्ष में शामिल न होने के लिए उन माँगों के छोटी होने का बहाना नहीं बनाना चाहिए। हमारी आन्दोलनात्मक गतिविधियों के ख़िलाफ़ इस तरह के इल्जाम की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए कि हम मज़दूरों को मूर्खतापूर्ण हड़तालों या अन्य नासमझी भरी कार्रवाइयों के लिए उभाड़ते और उकसाते हैं। संघर्षरत जनता के बीच कम्युनिस्टों को यह प्रतिष्ठा अर्जित करने की चेष्टा करनी चाहिए कि वे हिम्मत वाले और संघर्षो में कारगर भूमिका निभाने वाले लोग हैं।
आंशिक माँगों के लिए लड़ना सीखो
25. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के कुछ सबसे मामूली सवालों पर ट्रेड यूनियन आन्दोलन के भीतर काम करने वाले कम्युनिस्ट सेलों (या फ्रैक्शनों) ने व्यवहार में अपने आप को लगभग असहाय सिद्ध किया है। कम्युनिज़्म के सामान्य सिद्धान्तों के बारे में प्रवचन करते जाना और उसके बाद जब ठोस सवाल सामने आयें तो साधारण सिण्डिकलिस्टों (संघाधिपत्यवादियों) के नकारात्मक दृष्टिकोण के चक्कर में फँस जाना आसान तो है पर उपयोगी नहीं है। यह व्यवहार केवल पीले आम्स्टर्डम इण्टरनेशनल* के हाथों में खेलने के बराबर है।
(*”आम्स्टर्डम इण्टरनेशनल” दूसरे इण्टरनेशनल का ही एक और नाम है। यह ग़द्दार कार्ल काउत्स्की व अन्य की सामाजिक जनवाद की विचारधारा को मानने वाली यूरोपीय पार्टियों का अन्तरराष्ट्रीय संघ था जिसने प्रथम महायुद्ध के दौरान विश्व सर्वहारा क्रान्ति के लक्ष्य के साथ ग़द्दारी करके ‘पितृभूमि की रक्षा’ का अन्धराष्ट्रवादी नारा दिया था और साथ ही राज्य और क्रान्ति विषयक मार्क्सवाद की बुनियादी शिक्षाओं और सर्वहारा अन्तरराष्ट्रीयतावाद का परित्याग करके मध्यमार्गी या दक्षिणपन्थी अवसरवादी या संशोधनवादी अवस्थिति अपना ली थी। ट्रेड यूनियन आन्दोलन में ये कुलीन मज़दूरों का व मध्यमवर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे और इनकी यूनियनें महज अर्थवादी संघर्ष और सुधार-समझौते की राजनीति करके सर्वहारा वर्ग की क्रान्तिकारी चेतना और राजनीतिक संघर्ष की धार भोथरी करके पूँजीपति वर्ग की सेवा किया करती थीं और आज भी कर रही हैं। भारत में भाँति-भाँति के समाजवादी इन्हीं के वारिस हैं। ख्रुश्चेव से लेकर देघ सियाओ-पिघ मार्का “मार्क्सवाद” को मानने वाली भारत की चुनावबाज संशोधनवादी कम्युनिस्ट पार्टियाँ भी आज दूसरे इण्टरनेशनल की पार्टियों के ही नक्शेक़दम पर चल रही हैं और उनके यूनियन नेताओं का आचरण भी आम्स्टर्डमपन्थी नेताओं जैसा ही है। कम्युनिस्ट इण्टरनेशनल के ‘लाल’ सर्वहारा चरित्र के समान्तर दूसरे इण्टरनेशनल के पूँजीवादी चरित्र को नंगा करने के लिए लेनिन उसे “पीला इण्टरनेशनल” भी कहा करते थे। – संपादक)
इसके विपरीत कम्युनिस्टों को अपने व्यवहार में प्रत्येक प्रश्न के व्यावहारिक पहलू के सावधानीपूर्वक किये गये अध्ययन से ही निर्देशित होना चाहिए।
मिसाल के तौर पर, सभी कामकाजू समझौतों (वेतन और काम के हालात से सम्बन्धित) का सैद्धान्तिक रूप से या उसूली तौर पर विरोध करके अपने को सन्तुष्ट कर लेने के बजाय उन्हें आम्स्टर्डम इण्टरनेशनल के नेताओं की सिफ़ारिश के मुताबिक हुए विशेष प्रकार के समझौतों (वेतन सम्बन्धी समझौतों) को लेकर होने वाले संघर्ष का नेतृत्व करना चाहिए। बेशक यह ज़रूरी है कि सर्वहारा की क्रान्तिकारी तत्परता की राह में खड़ी की जाने वाली किसी भी बाधा की भर्त्सना की जाये और उसका प्रतिरोध किया जाये और यह भी सर्वविदित है कि पूँजीपतियों और उनके आम्स्टर्डमपन्थी भाड़े के टट्टुओं का मकसद ही यह होता है कि हर क़िस्म के कामकाजू समझौतों में मज़दूरों के हाथ बाँध दिये जायें। इसलिए यह कम्युनिस्टों का कर्तव्य है कि वे इस तरह के समझौतों की असलियत के बारे में मज़दूरों को आगाह करें। कम्युनिस्ट ऐसे समझौतों की वकालत करके, जिनसे मज़दूरों की राह में बाधा न पड़े, इस काम को सबसे अच्छे ढंग से अंजाम दे सकते हैं।
ट्रेड यूनियन संगठनों द्वारा बेरोज़गारी, बीमारी और अन्य मामलों में हासिल की गयी सुविधाओं के बारे में भी यही किया जाना चाहिए। संघर्ष-कोष की स्थापना और हड़ताली तनख़्वाह देना आदि अपने आप में ऐसे क़दम हैं जिनका समर्थन किया जाना चाहिए।
इसलिए, ऐसी कार्रवाइयों का उसूली तौर पर विरोध करना ग़लत होगा। लेकिन कम्युनिस्टों को मज़दूरों के सामने यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि इस तरह के कोषों के संग्रह करने और उनके इस्तेमाल करने के आम्स्टर्डमपन्थी नेताओं द्वारा बताये गये तरीक़े मज़दूर वर्ग के सभी हितों के ख़िलाफ़ हैं। बीमारी के लाभ (सिक बेनिफ़िट) वग़ैरह के सम्बन्ध में कम्युनिस्टों को मज़दूरों की तनख़्वाह से उसका एक हिस्सा लेने की व्यवस्था तथा स्वेच्छा के आधार पर जमा किये जाने वाले कोषों के सम्बन्ध में लागू की गयी सभी अनिवार्यता की शर्तों को ख़त्म करने पर ज़ोर देना चाहिए। फिर भी कुछ ट्रेड यूनियन सदस्य स्वयं अंशदान करके बीमारी के लाभ हासिल करने के इच्छुक हों तो इसे इस लिए सीधे रोका नहीं जाना चाहिए कि इससे लोगों द्वारा हमें ग़लत समझे जाने का अन्देशा रहेगा। घनीभूत व्यक्तिगत प्रचार द्वारा ऐसे मज़दूरों को उनकी निम्न पूँजीवादी धारणाओं से मुक्त करके अपने पक्ष में करना आवश्यक होगा।
संशोधनवादी और सुधारवादी ट्रेडयूनियन नेताओं का ठोस ढंग से पर्दाफ़ाश करो
26. सामाजिक जनवादियों और निम्न पूँजीवादी ट्रेड यूनियन नेताओं तथा विभिन्न लेबर पार्टियों के नेताओं के ख़िलाफ़ संघर्ष में समझाने-बुझाने से अधिक कामयाबी की उम्मीद नहीं की जा सकती। उनके ख़िलाफ़ संघर्ष अधिकतम ज़ोर-शोर के साथ चलाया जाना चाहिए और इसका सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि उन्हें उनके अनुयाइयों से अलग कर दिया जाये और मज़दूरों को इन ग़द्दार समाजवादी नेताओं के, जो पूँजीवाद के हाथों में खेल रहे हैं, असली चरित्र से परिचित करा दिया जाये। कम्युनिस्टों को इन तथाकथित नेताओं को बेनकाब करने की पुरज़ोर कोशिश करनी चाहिए और इन पर सर्वाधिक प्रचण्ड तरीक़े से हमले करने चाहिए।
इन आम्स्टर्डमपन्थी नेताओं को सिर्फ पीला कह भर देना किसी भी हालत में काफ़ी नहीं है। लगातार तथा व्यावहारिक उदाहरणों के द्वारा इनके “पीलेपन” को प्रमाणित करना होगा। ट्रेड यूनियनों में, लीग ऑफ़ नेशन्स के अन्तरराष्ट्रीय श्रमिक ब्यूरो में, पूँजीवादी मन्त्रिपरिषदों में तथा प्रशासनों में उनकी गतिविधियों में, सम्मेलनों और संसदों में उनके ग़द्दारी भरे भाषणों में, उनके ढेरों प्रेस वक्तव्यों और लिखित सन्देशों में झाड़े गये उपदेशों में और सबसे अधिक, (वेतन में बेहद मामूली बढ़ोत्तरी तक के संघर्ष सहित) सभी संघर्षों में उनके ढुलमुलपन और हिचकिचाहट भरे रवैये में हमें लगातार ऐसे अवसर मिल जायेंगे कि सीधे-सादे भाषणों और प्रस्तावों के द्वारा उनके ग़द्दाराना बर्ताव का पदार्फाश किया जा सके।
फ्रैक्शनों को अपनी व्यावहारिक हिरावल गतिविधियाँ सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करनी चाहिए। कम्युनिस्टों को ट्रेड यूनियनों के उन छोटे पदाधिकारियों द्वारा किये जाने वाले बहानों को अपने प्रगति अभियान में बाधा नहीं बनने देना चाहिए, जो अपने नेक इरादों के बावजूद सिर्फ अपनी कमज़ोरी के कारण नियम-क़ानूनों, यूनियन के फ़ैसलों और अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों के निर्देशों की आड़ लिया करते हैं। इसके विपरीत, उन्हें नौकरशाही मशीनरी द्वारा मज़दूरों के रास्ते में खड़ी की गयी सभी वास्तविक और काल्पनिक बाधाओं को हटाने के मामले में निचले अधिकारियों द्वारा सन्तोषप्रद कार्य पर ज़ोर देना चाहिए।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2013
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