मज़दूर वर्ग की मुक्ति का दर्शन देने वाले महान क्रान्तिकारी चिन्तक कार्ल मार्क्स के स्मृति दिवस (14 मार्च) के अवसर पर
मार्क्स-एंगेल्स की अमर रचना
“कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ के कुछ अंश
बुर्जुआ वर्ग ने ऐसे हथियारों को ही नहीं गढ़ा है जो उसका अन्त कर देंगे, बल्कि उसने ऐसे लोगों को भी पैदा किया है जो इन हथियारों का इस्तेमाल करेंगे – आधुनिक मज़दूर वर्ग – सर्वहारा वर्ग।
जिस अनुपात में बुर्जुआ वर्ग का, अर्थात पूँजी का विकास होता है, उसी अनुपात में सर्वहारा वर्ग का, आधुनिक मज़दूर वर्ग का, उन श्रमजीवियों के वर्ग का विकास होता है, जो तभी तक ज़िन्दा रह सकते हैं जब तक उन्हें काम मिलता जाये, और उन्हें काम तभी तक मिलता है, जब तक उनका श्रम पूँजी में वृद्धि करता है। ये श्रमजीवी, जो अपने को अलग-अलग बेचने के लिए लाचार हैं, अन्य व्यापारिक माल की तरह ख़ुद भी माल हैं, और इसलिए वे होड़ के उतार-चढ़ाव तथा बाज़ार की हर तेज़ी-मन्दी के शिकार होते हैं।
मशीनों के विस्तृत इस्तेमाल तथा श्रम विभाजन के कारण सर्वहाराओं के काम का वैयक्तिक चरित्र नष्ट हो गया है और इसलिए यह काम उनके लिए आकर्षक नहीं रह गया है। मज़दूर मशीन का पुछल्ला बन जाता है और उससे सबसे सरल, सबसे नीरस और आसानी से अर्जित योग्यता की माँग की जाती है। इसलिए मज़दूर के उत्पादन पर ख़र्च लगभग पूर्णतः उसके जीवन निर्वाह और वंश वृद्धि के लिए आवश्यक साधनों तक सीमित रह गया है। लेकिन हर माल का, और इसलिए श्रम का भी दाम उसके उत्पादन में लगे हुए ख़र्च के बराबर होता है। अतः जिस अनुपात में काम की अरुचिकरता में वृद्धि होती है उसी अनुपात में मज़दूरी घटती है। यही नहीं, जिस मात्रा में मशीनों का इस्तेमाल तथा श्रम विभाजन बढ़ता है उसी मात्रा में श्रम का बोझ भी बढ़ता जाता है, चाहे यह काम के घण्टे बढ़ाने के ज़रिए हो या निर्धारित समय में मज़दूरों से अधिक काम लेने या मशीन की रफ़्तार बढ़ाने आदि के ज़रिए।
…मध्यम वर्ग के निम्न स्तर – छोटे कारोबारी, दूकानदार, आम तौर पर किरायाजीवी, दस्तकार और किसान – ये सब धीरे-धीरे सर्वहारा वर्ग की स्थिति में पहुँच जाते हैं। कुछ तो इसलिए कि जिस पैमाने पर आधुनिक उद्योग चलता है उसके लिए उनकी छोटी पूँजी पूरी नहीं पड़ती और बड़े पूँजीपतियों के साथ होड़ में वह डूब जाती है; और कुछ इसलिए कि उत्पादन के नये-नये तरीक़ों के निकल आने के कारण उनके विशिष्टीकृत कौशल का कोई मूल्य नहीं रह जाता है। इस प्रकार आबादी के सभी वर्गों से सर्वहारा वर्ग की भर्ती होती है।
…उद्योग के विकास के साथ-साथ सर्वहारा वर्ग की संख्या में ही वृद्धि नहीं होती, बल्कि वह बड़ी-बड़ी जमातों में संकेन्द्रित हो जाता है, उसकी ताक़त बढ़ जाती है और उसे अपनी इस ताक़त का अधिकाधिक अहसास होने लगता है। मशीनें जिस अनुपात में श्रम के सभी भेदों को मिटाती जाती हैं और लगभग सभी जगह मज़दूरी को एक ही निम्न स्तर पर लाती जाती हैं, उसी अनुपात में सर्वहारा वर्ग की पाँतों में नाना प्रकार के हित और जीवन की अवस्थाएँ अधिकाधिक एकसम होती जाती हैं। बुर्जुआ वर्ग की बढ़ती हुई आपसी होड़ और उससे पैदा होने वाले व्यापारिक संकटों के कारण मज़दूरी और भी अस्थिर हो जाती है। मशीनों में लगातार सुधार, जो निरन्तर तेज़ी के साथ बढ़ता जाता है, मज़दूरों की जीविका को अधिकाधिक अनिश्चित बना देता है। अलग-अलग मज़दूरों और अलग-अलग पूँजीपतियों की टक्करें अधिकाधिक रूप से दो वर्गों के बीच की टक्करों की शक्ल अख़्तियार करती जाती हैं। और तब बुर्जुआ वर्ग के विरुद्ध मज़दूर अपने संगठन (ट्रेड यूनियनें) बनाने लगते हैं, मज़दूरी की दर को क़ायम रखने के लिए वे संघबद्ध होते हैं; समय-समय पर होने वाली इन टक्करों के लिए पहले से तैयार रहने के लिए वे स्थायी संघों की स्थापना करते हैं। जहाँ-तहाँ उनकी लड़ाई बलवों का रूप धारण कर लेती है।
जब-तब मज़दूरों की जीत भी होती है लेकिन केवल वक़्ती तौर पर। उनकी लड़ाइयों का असली फल तात्कालिक नतीजों में नहीं, बल्कि मज़दूरों की निरन्तर बढ़ती हुई एकता में है। आधुनिक उद्योग द्वारा उत्पन्न किये गये संचार साधनों से, जो अलग-अलग जगहों के मज़दूरों को एक-दूसरे के सम्पर्क में ला देते हैं, एकता के इस काम में मदद मिलती है। एक ही प्रकार के अनगिनत स्थानीय संघर्षों को केन्द्रीकृत करके उन्हें एक राष्ट्रीय वर्ग संघर्ष का रूप देने के लिए बस इसी प्रकार के सम्पर्क की ज़रूरत होती है। लेकिन प्रत्येक वर्ग संघर्ष एक राजनीतिक संघर्ष होता है। और उस एकता को, जिसे हासिल करने के लिए पुराने ज़माने में यातायात की घोर असुविधाओं के कारण मध्ययुग के बर्गरों को सदियाँ लगी थीं, रेलों की कृपा से आधुनिक सर्वहारा कुछ ही वर्षों में हासिल कर लेते हैं।
…बुर्जुआ वर्ग के मुक़ाबले में आज जितने भी वर्ग खड़े हैं, उन सबमें सर्वहारा ही वास्तव में क्रान्तिकारी वर्ग है। दूसरे वर्ग आधुनिक उद्योग के समक्ष ह्रासोन्मुख होकर अन्ततः विलुप्त हो जाते हैं; सर्वहारा वर्ग ही उसकी मौलिक और विशिष्ट उपज है।
निम्न मध्यम वर्ग के लोग – छोटे कारख़ानेदार, दूकानदार, दस्तकार और किसान – ये सब मध्यम वर्ग के अंश के रूप में अपने अस्तित्व को नष्ट होने से बचाने के लिए बुर्जुआ वर्ग से लोहा लेते हैं। इसलिए वे क्रान्तिकारी नहीं, रूढ़िवादी हैं। इतना ही नहीं, चूँकि वे इतिहास के चक्र को पीछे की ओर घुमाने की कोशिश करते हैं, इसलिए वे प्रतिगामी हैं। अगर कहीं वे क्रान्तिकारी हैं तो सिर्फ़ इसलिए कि उन्हें बहुत जल्द सर्वहारा वर्ग में मिल जाना है; चुनाँचे वे अपने वर्तमान नहीं, बल्कि भविष्य के हितों की रक्षा करते हैं; अपने दृष्टिकोण को त्यागकर वे सर्वहारा का दृष्टिकोण अपना लेते हैं।
…आज तक जिन-जिन वर्गों का पलड़ा भारी हुआ है, उन सबने अपने पहले से हासिल दरजे को मज़बूत बनाने के लिए समाज को अपनी हस्तगतकरण प्रणाली के अधीन करने की कोशिश की है। सर्वहारा वर्ग अपनी अब तक की हस्तगतकरण प्रणाली का और उसके साथ-साथ पहले की प्रत्येक हस्तगतकरण प्रणाली का अन्त किये बिना समाज की उत्पादक शक्तियों का स्वामी नहीं बन सकता। सर्वहारा वर्ग के पास बचाने और सुरक्षित रखने के लिए अपना कुछ भी नहीं है; उसका लक्ष्य निजी स्वामित्व की पुरानी सभी गारण्टियों और ज़मानतों को नष्ट कर देना है।
पहले के सभी ऐतिहासिक आन्दोलन अल्पमत के आन्दोलन रहे हैं या अल्पमत के फ़ायदे के लिए रहे हैं। किन्तु सर्वहारा आन्दोलन विशाल बहुमत का, विशाल बहुमत के फ़ायदे के लिए होने वाला चेतन तथा स्वतन्त्र आन्दोलन है। हमारे वर्तमान समाज का सबसे निचला स्तर, सर्वहारा वर्ग, शासकीय समाज की सभी ऊपरी परतों को पलटे बिना हिल तक नहीं सकता, किसी प्रकार अपने को ऊपर नहीं उठा सकता।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2021
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन